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लॉकडाउन के बाद मध्यमवर्गीय परिवार के लिए आया संकटकाल, घर चलाना और ईएमआई भरना बेहद मुश्किल

लॉकडाउन के बाद अब अनलॉक फेज वन की शुरुआत हो गई है. धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सभी चीजें खुलनी शुरू हो गई हैं. कारोबार दोबारा से खोले जा रहे हैं. बाज़ार भी खुल गए हैं. लेकिन ग्राहक बिल्कुल नहीं आ रहे हैं. जिसकी वजह से कारोबार चलाना इस वक्त एक बड़ी चुनौती है. लॉकडाउन में देश पूरी तरह से बंद रहा जिसकी वजह से देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है.

कोरोना काल में हज़ारों लोगों ने अपनी नौकरी गंवा दी तो कई कारोबार बंद हो गए हैं. इस पूरी स्थिति में सबसे ज्यादा असर अगर किसी पर हुआ है तो वह मध्यमवर्गीय परिवार है. इस वक्त मिडिल क्लास के लिए एक तरफ खाई तो दूसरी तरफ कुएं वाली स्थिति है.

ईएमआई के ब्याज़ में डूबा मध्यमवर्गीय परिवार
एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए इस वक्त घर चलाना बेहद मुश्किल हो रहा है. जहां पहले एक अच्छा लाइफ स्टाइल बना हुआ था, तो वहीं अब सब कुछ उथल-पुथल हो गया है. मध्यमवर्गीय लोगों का एक बड़ा तबका जो ईएमआई और लोन और ब्याज़ में डूबा हुआ है. उनके लिए इस वक्त बैंक को घर की ईएमआई, कार की किस्त, इंश्योरेंस का पैसा देने जैसी चीजें सबसे बड़ी चुनौती है.

दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में साड़ियों का कारोबार करने वाले भगवत रस्तोगी का कारोबार लॉकडाउन में पूरी तरह से ठप हो गया है. लॉकडाउन के बाद उस कारोबार को दोबारा से शुरू करना उन के लिए एक बड़ी चुनौती है. इस परिवार के लिए लॉकडाउन से पहले, काम अच्छा चल रहा था इसलिए परिवार के खर्चे अच्छे से पूरे हो रहे थे. लेकिन अब हाल यह है कि ईएमआई देने में भी असमर्थ हैं और साथ ही साथ घर के जरूरी खर्चे पूरा करना भी मुश्किल हो रहा है.

 

लॉकडाउन ने बदल दी लाइफस्टाइल

भागवत रस्तोगी का कहना है “कोरोना काल से पहले हम बहुत अच्छे से रहते थे. हर साल घूमने भी जाते थे. अच्छे कॉलेज में बच्चे पढ़ रहे हैं. लॉकडाउन में ऑफिस, दुकान सब कुछ बंद है लेकिन हाउस टैक्स आ रहा है, पानी और बिजली का बिल भी आ रहा है. बैंक ईएमआई के लिए परेशान कर रहा है. हमारे ऊपर लोन चल रहा है. ब्याज पर ब्याज लगाया जा रहा है. दूध 1 किलो लिया करते थे, सब्जी बड़ी मात्रा में लाते थे, अच्छा खाते थे अच्छा पहनते थे. अब तो नया कपड़ा सिलवाया भी नहीं जा रहा है और खाने-पीने की चीजों में भी कटौती करनी पड़ रही है.’

उनका कहना है ‘बच्चे की पढ़ाई देखें या बाकी चीजें देखें. मध्यम वर्ग आदमी जैसे आटा पिस्ता है वैसे पिस रहा है. किसानों के कर्ज भी माफ हो रहे हैं. गरीबों के खाते में पैसे भी जा रहे हैं. हम मध्यमवर्ग लोग सरकार के साथ भी चलते हैं, टैक्स भी देते हैं, हर चीज में कटौती भी कर रहे हैं, हमारी मदद कौन करेगा? अब कम से कम सरकार हमारी तरफ देखें कि इनका भी हम कुछ भला करें.”

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