सऊदी अरब और यूएई समेत पांच खाड़ी देशों ने इजराइल से फोन हैकिंग सॉफ्टवेयर खरीदा, नेतन्याहू सरकार ने कराई प्राइवेट कंपनी से डील
इजराइल और खाड़ी देशों के रिश्ते बेहतर होते जा रहे हैं। हाल ही में यूएई और इजराइल ने एक शांति समझौता किया था। अब खबर है कि खाड़ी के पांच देशों ने इजराइल की टेक कंपनी एनएसओ से फोन हैकिंग और जासूसी में इस्तेमाल किए जाने वाला सॉफ्टवेयर ‘पेगासुस’ और दूसरे उपकरण खरीदे हैं। यूएई और सऊदी अरब में इनका इस्तेमाल विरोधियों पर नजर रखने के लिए किया जा रहा है।
माना जाता है कि सऊदी अरब किसी दूसरे चैनल के जरिए तीन साल पहले ही यह स्पाईवेयर हासिल कर लिए थे। आरोप है कि 2018 में इनका इस्तेमाल सऊदी सरकार के विरोधी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या में किया गया था।
कैसे हुआ डील का खुलासा
इजराइल और पांच गल्फ कंट्रीज के बीच फोन हैकिंग स्पाईवेयर की डील का खुलासा इजराइली अखबार हेराट्ज ने किया। रिपोर्ट के मुताबिक- सऊदी अरब, यूएई, ओमान, बहरीन और कतर ने एनएसओ के यह जासूसी उकरण लाखों डॉलर में खरीदे हैं।
इसमें क्या नया और चौंकाने वाला है?
दो बातें जाननी बहुत जरूरी हैं। पहली- एनएसओ प्राइवेट कंपनी है। आमतौर पर इसके एग्जीक्यूटिव्स ही ट्रेड डील करत हैं। पहली बार ऐसा हुआ, जब इजराइल की नेतन्याहू सरकार ने मामले में दखल दिया। खाड़ी देशों और कंपनी के बीच मध्यस्थ की तरह काम किया। दूसरी- डील का खुलासा किसी भी पक्ष ने नहीं किया। इसका मतलब कुछ छिपाए जाने की कोशिश हो रही थी।
सीक्रेट डील का मकसद क्या?
सऊदी अरब हो या यूएई या फिर बहरीन। यहां सरकार के नाम पर शाही परिवार ही हैं। इनके कई विरोधी होते हैं। लिहाजा, इन पर नजर रखने के लिए ये उपकरण खरीदे गए। कहा जाता है कि एनएसओ के सॉफ्टवेयर फोन हैकिंग में सबसे बेहतरीन हैं। ये कैमरा और ऑडियो कंट्रोल तक कर सकते हैं। कंटेंट तो बड़ी आसानी से चुरा लेते हैं। हालांकि, एनएसओ इन बातों से इनकार करती रही है। कंपनी को किसी भी डील से पहले सरकार की मंजूरी लेनी होती है। ताकि, किसी दुश्मन देश के पास यह तकनीक न पहुंचे।
आगे क्या होगा?
यूएई के बाद सऊदी और दूसरे देश इजराइल के करीब आएंगे। हालांकि, इस तरह की खबरें आती रही हैं कि इजराइल बैक डोर डिप्लोमैसी के तहत कई देशों के संपर्क में है। सऊदी ने भले ही इजराइल-यूएई पीस डील का खुले तौर पर विरोध किया हो, लेकिन वो भी इजराइल के संपर्क में रहता है। इजराइल और अमेरिका मिलकर खाड़ी देशों में अपनी पैठ ज्यादा मजबूत कर सकेंगे। तुर्की और ईरान के साथ पाकिस्तान के लिए भी यह बड़ा झटका होगा।