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मुख्य सचिव के बाद अब डीजीपी की भी बीच कार्यकाल में विदाई, राजस्थान में तीन महीने के भीतर दूसरे बड़े ब्यूरोक्रेट को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ रही है

राजस्थान की ब्यूरोक्रेसी में भी तूफान मचा हुआ है। महज तीन महीने के भीतर राज्य के दो बड़े ब्यूरोक्रेट की अपने पद से विदाई हो रही है। तत्कालीन मुख्यसचिव डीबी गुप्ता को जुलाई में हटा दिया गया था। गुप्ता भी 30 सितंबर को रिटायर हो जाएंगे। उसके बाद अब पुलिस महानिदेशक भूपेंद्र यादव ने पद से हटने के लिए वीआरएस लेने के लिए आवेदन कर दिया है।

ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि जिस भूपेंद्र यादव को डीजीपी बनाए रखने के लिए राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट तक तक लडाई लड़ी। उसे भूपेंद्र यादव को अचानक क्या हुआ कि उन्हें अचानक वीआरएस लेने के लिए आवेदन करना पड़ा। इसको लेकर भी सियासी गलियारे में कई तरह की चर्चाएं की जा रही है।

एक तबका यह कह रहा है कि कानूनी व्यवस्था के मोर्चे पर फेल होने के कारण सरकार ने उनसे वीआरएस लेने के लिए कह दिया] क्योंकि यदि सरकार हटाएगी तो वे कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं। ऐसे में वे सहमति से वीआरएस ले लें, जबकि दूसरा तबका यह कह रहा है कि उन्हें आरपीएससी या मुख्यसूचना आयुक्त बनाया जा सकता है। इसलिए वीआरएस लेने के लिए सरकार ने कह दिया।

यादव की नियुक्ति का मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित
डीजीपी पद पर भूपेन्द्र यादव की नियुक्ति व सेवाकाल बढ़ाने वाला अवमानना का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इस मामले में पिछले सात महीने से सुनवाई नहीं हो पाई है। डीजीपी पद पर यादव की नियुक्ति को नागरिक संरक्षण समिति के अध्यक्ष डॉ. कौस्तुभ दाधीच ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है।

दाधीच का कहना है कि उन्होंने सर्वोच्च अदालत में पांच बार मामले की जल्द सुनवाई की अर्जी लगाई थी। लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते सुनवाई नहीं हो पाई है। उनका कहना है कि राज्य सरकार ने डीजीपी भूपेन्द्र यादव की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश व अन्य सीनियर अफसरों को दरकिनार करते हुए की थी। मामला लंबित होने के कारण डीजीपी बनने वाले पैनल में शामिल रहे, पुलिस अफसर डीजीपी नहीं बन पाए। वहीं सीनियर पुलिस अफसर एनआरके रेड्‌डी भी 31 मई को रिटायर हो गए।

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