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गर्म हुआ सबसे ठंडा इलाका:जहां माइनस 67.8 डिग्री ठंड होती थी, वहां अब 38 डिग्री तक गर्मी

साइबेरिया का वर्कहोयांस्क गांव। इस साल की गर्मियां शुरू होने से पहले तक दुनियाभर में इस गांव की ख्याति इस बात के लिए थी कि यह आर्कटिक सर्कल के उत्तर में मानव आबादी वाला सबसे ठंडा क्षेत्र है। यहां -67.8 डिग्री सेल्सियस तक तापमान गिर जाता है।

हालांकि, गत जून में इस गांव ने उल्टा रिकॉर्ड बना दिया। तब यहां पारा 38 डिग्री सेल्सियस तक चढ़ गया और गांव आर्कटिक सर्कल के उत्तर का सबसे गर्म इलाका बन गया। यानी यहां के न्यूनतम और अधिकतम तापमान के बीच करीब 100 डिग्री सेल्सियस का अंतर पाया गया।

प्रदूषण, बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाएगा
मेडिकल जर्नल लैंसेट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक गर्म होती दुनिया में बाढ़, प्रदूषण, बीमारियों के फैलाव जैसे कई खतरे काफी बढ़ जाते हैं। लेकिन, हीट वेव (लू) सबसे खतरनाक साबित हो रही है। विशेषकर बुजुर्गों के लिए। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया का कोई भी हिस्सा हो हीट वेव से अधिक उम्र के लोगों और पहले से गंभीर बीमारी झेल रहे मरीजों की मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल (2019 में) दुनिया भर के 65 साल के लोगों ने 1986 से 2005 की तुलना में संयुक्त रूप से हीट वेव वाले 290 करोड़ दिन ज्यादा झेले हैं। इसने 2016 के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। भारत और चीन हीट वेव से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले देश हैं। इसके पीछे दो वजहें हैं। पहली यह कि इन दोनों देशों की आबादी काफी ज्यादा है। दूसरी वजह यह है कि इन इलाकों में पहले से गर्मी ज्यादा पड़ती है। दुनियाभर में गर्मी के कारण होने वाली मौत साल 2000 की तुलना में 2018 में 54 फीसदी ज्यादा हुई है। 2018 में हीट वेव के कारण 65 साल से ऊपर के 2.96 लाख लोगों की मौत हुई। चीन में 62 हजार और भारत में 31 हजार मौतें हुई हैं। अन्य सभी देशों से ज्यादा। गर्म होती दुनिया में और भी खतरे हैं।

पिछले साल 30,200 करोड़ कामकाजी घंटे हीट वेव के कारण बर्बाद हो गए। इस सदी की शुरुआत की तुलना में यह 10,300 घंटे ज्यादा हैं। बड़े कृषि उद्योग के कारण भारत की उत्पादकता सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है। देश की काफी कम कृषि जमीनें सिंचित हैं।

पर्यावरण में बदलाव भी कोरोनावायरस महामारी की तरह खतरनाक
शोधकर्ताओं का कहना है कि क्लाइमेट भी कोरोना महामारी की तरह गंभीर चुनौती पेश कर रहा है। हालांकि, इसकी तीव्रता कोरोना की तुलना में कम है। जैसे-जैसे मौसम में एक्सट्रीम उतार-चढ़ाव वाले दिनों की संख्या बढ़ेगी देशों को पहचान करनी होगी कि इसकी सबसे ज्यादा मार आबादी के किस समूह पर पड़ सकती है। इससे निबटने के लिए देशों को हेल्थकेयर पर ज्यादा निवेश करने की जरूरत होगी।

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