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हार को जीत बताने वाला जादूगर!:वोट पर्सेंट ज्यादा बताकर साख बचाने में जुटी गहलोत-डोटासरा की जोड़ी; सरकार-संगठन की नियुक्तियों में दोनों नहीं चाहते थर्ड पार्टी क्लेम

पंचायत चुनाव में पिछड़ने के बाद राजस्थान कांग्रेस और गहलोत सरकार के लिए फेस सैविंग की स्थिति बन गई है। बावजूद राजनीति के ‘जादूगर’ गहलोत ने हार स्वीकारने के बजाय वोटिंग पर्सेंटेज को आधार बनाकर सबकुछ ठीक बता दिया। गहलोत खुद बता चुके हैं कि कांग्रेस को 40.87 प्रतिशत वोट मिले हैं जबकि 40.58 प्रतिशत भाजपा को मिले। इस लिहाज से भाजपा कांग्रेस से पीछे रही। यह आंकड़े बताकर वे बताना चाह रहे हैं कि सरकार के कामकाज से जनता खुश है।

हाल ही में 21 जिलों के पंचायत चुनाव में 1835 सीट भाजपा ले गई जबकि कांग्रेस को 1718 पर सिमटना पड़ा। जिला परिषद में भी 13 से 14 सीटों पर स्पष्ट बढ़त भाजपा की ही रही, कांग्रेस 5 पर ही थी। बावजूद वोटिंग पर्सेंटेज को आधार बनाकर राजस्थान कांग्रेस बताना चाह रही है कि वह किसी तरह इस मुद्दे पर खुद को दबाव में नहीं लाने देगी। जोड़ी यह भी संदेश दे रही है कि वह तीसरे किसी पक्ष को सरकार-संगठन में दखल नहीं देने देगी।

इसकी सबसे बड़ी वजह है आने वाले समय में प्रदेश संगठन का विस्तार और सरकार में राजनीतिक नियुक्तियां। गहलोत और डोटासरा कभी नहीं चाहते कि उनकी पसंद में किसी भी बाहरी पक्ष का दखल हो और खासकर इसके लिए पंचायत चुनाव में पिछड़ने का आधार बनाया जा सके।

डोटासरा को गहलोत का खास माना जाता है। इस कारण सत्ता और संगठन में किसी प्रकार का विवाद नहीं है। ऐसे में यह जोड़ी यदि एक बार कमर कस कर मैदान में आ जुटे तो पार्टी में नई जान फूंक सकती है। लेकिन सरकार बचाने के बाद गहलोत के समक्ष कोरोना से निपटने के साथ ही प्रदेश की कमजोर होती आर्थिक स्थिति से निपटने की भी बहुत बड़ी चुनौती है। ऐसे में वे संगठन की तरफ ध्यान देने की स्थिति में नहीं है।

सुप्त अवस्था में संगठन

प्रदेश में कांग्रेस संगठन इन दिनों सुप्त अवस्था में है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तो है, लेकिन कोई जिलाध्यक्ष नहीं है। सचिन पायलट के बगावत के बाद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के साथ सभी जिला कार्यसमितियों को भंग कर दिया गया था। उसके बाद पार्टी ने गोविन्द सिंह डोटासरा को अपना अध्यक्ष तो बना दिया, लेकिन गुटबाजी के कारण जिलाध्यक्षों की नियुक्ति नहीं हो पाई। ऐसे में जिलों में संगठन बिलकुल सुप्त अवस्था में है। जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के साथ एक बार फिर विवादों का पिटारा खुल सकता है। लेकिन पार्टी को इन नियुक्तियों को अब ज्यादा समय तक रोक कर भी नहीं रख सकती। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि पार्टी इस चुनौती से किस तरह निपटती है।

गहलोत के हौसले बुलंद

सचिन पायलट की बगावत को विफल कर अपनी सरकार बचाने में सफल रहने के बाद गहलोत के हौसले बुलंद हैं। पार्टी के भीतर फिलहाल उन्हें चुनौती देने वाला कोई नेता दूर तक नजर नहीं आ रहा है। पार्टी आलाकमान के सबसे विश्वस्त गहलोत अब अगले एक माह के भीतर प्रदेश में राजनीतिक नियुक्तियां करने जा रहे हैं। इन नियुक्तियों के माध्यम से वे लंबे अरसे से इंतजार में बैठे विधायकों व कार्यकर्ताओं को विभिन्न पद देकर खुश करने का प्रयास करेंगे। इन नियुक्तियों में उन्हीं को तव्वजो मिलेगी जिन्होंने संकट के दौर में गहलोत का मजबूती से साथ निभाया। ऐसे में वे अपने समर्थकों को आगे करेंगे। वहीं प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा भी गहलोत के खास माने जाते हैं। ऐसे में जिलाध्यक्षों की नियुक्तियों में भी गहलोत समर्थकों का दबदबा रहने के उम्मीद है।

मुख्यमंत्री के घर में यह है संगठन की स्थिति

मुख्यमंत्री गहलोत के गृह नगर जोधपुर शहर में कांग्रेस पूरी तरह से उनके ऊपर ही निर्भर है। हालात यह है कि शहर जिला कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पद पर डेढ़ दशक से अधिक समय से गहलोत के खास माने जाने वाले सईद अंसारी काबिज रहे। लंबे अरसे से बीमार चल रहे अंसारी ने पद त्यागने की कई बार घोषणा की, लेकिन गहलोत उनके स्थान पर किसी दूसरे को नियुक्त कर अंसतोष को हवा देना नहीं चाहते। अब पायलट की अध्यक्ष पद से विदाई के बाद से सभी जिला कार्यकारिणी भंग करने के बाद नए अध्यक्ष का चुनाव होना है, लेकिन फिलहाल मामला अधर में लटका है। जिला अध्यक्ष बनने का ख्वाब पाले कई वरिष्ठ कार्यकर्ता अब निराश हो चुके हैं और उनकी सक्रियता दोनों दिन कम होती जा रही है।

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