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गहलोत-पायलट की अंदरखाने की लड़ाई:गहलोत के करीबी सोलंकी को ACB से क्लीनचिट मिली, पायलट के समर्थक इसे हाईकोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में

जोधपुर विकास प्राधिकरण (JDA) के पूर्व चेयरमैन राजेन्द्र सोलंकी को भ्रष्टाचार के मामलों में ACB से क्लीनचिट मिलने के साथ सचिन पायलट के समर्थक सक्रिय हो गए हैं। पायलट समर्थक एक पूर्व पार्षद ने सोलंकी को क्लीनचिट दिए जाने का विरोध करते हुए कोर्ट के माध्यम से पूरी जानकारी मांगी है। करवट बदलती राजनीति को देख ऐसा लग रहा है कि आने वाले दिनों में गहलोत के गृहनगर में राजनीति की पिच पर दोनों गुटों के बीच रोमांचक मुकाबला देखने को मिल सकता है। बता दें कि सोलंकी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सबसे खास माने जाने जाते हैं। इस मामले ने एक बार फिर से परदे के पीछे चल रही गहलोत-पायलट की गुटबाजी को सामने ला दिया है।

सोलंकी को ACB से मिली राहत
गहलोत सरकार के पिछले कार्यकाल के दौरान JDA की तरफ से शहर में कराए गए विभिन्न विकास कार्यों में भाजपा के शासन काल के दौरान ACB को भ्रष्टाचार की बू आई थी और 4 अलग-अलग मामले दर्ज किए गए थे। इसके बाद का घटनाक्रम बहुत तेजी से बदला। सोलंकी सहित कई अधिकारियों की गिरफ्तारी होने से मामला गरमा गया था। आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति लंबे समय तक चली। प्रदेश में सरकार बदलते ही एक बार फिर गहलोत मुख्यमंत्री बने। इसके बाद ACB की जांच की दिशा बदल गई। अब ACB ने इन सभी कार्यों को जनउपयोगी मानते हुए कोर्ट में अपनी तरफ से एफआर यानी फाइनल रिपोर्ट पेश कर दी है।

पायलट समर्थक की गुगली
सोलंकी को ACB से क्लीनचिट मिलते ही जोधपुर में पायलट समर्थकों को भौहें तन गई। उन्होंने इस मसले पर गहलोत को उनके घर में ही घेरने की रणनीति तैयार कर ली। जोधपुर में गहलोत के धुर विरोधी और पायलट के खास माने जाने वाले पूर्व पार्षद राजेश मेहता ने सेशन न्यायालय (भ्रष्टाचार निवारण प्रकरण) में आवेदन करके इस मामले में एसीबी की ओर से पेश की गई क्लीनचिट की पूरी जानकारी उपलब्ध कराने का आग्रह किया है।

यह लगाए हैं आरोप

मेहता की ओर से कोर्ट में पेश आवेदन में कहा गया है कि इन चारों मामलों में गिरफ्तारी से बचने के लिए सभी आरोपियों ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी। उस समय हाईकोर्ट ने इन्हें राहत अवश्य प्रदान की, लेकिन यह माना कि आरोपियों के खिलाफ अपराध किए जाने के साक्ष्य उपलब्ध है। इसके बाद ACB अग्रिम जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची। सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत आवेदन को स्थगित कर दिया गया।

दोनों न्यायालयों में सुनवाई के दौरान ACB की ओर से कहा गया था कि आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। ऐसे में ACB की ओर से सत्ता के दबाव में जांच का नकारात्मक नतीजा कोर्ट में पेश किया गया है। जो किसी भी परिस्थिति में स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। मेहता की तरफ से कहा गया है कि वे इस एफआर को हाईकोर्ट में चुनौती देना चाहते है। ऐसे में उन्हें चारों मामलों में लगाई गई एफआर की सत्यापित प्रतिलिपि उपलब्ध कराई जाए। कोर्ट इस मामले में अब अपना निर्णय सुनाएगा।

यह है राजनीति

सोलंकी को एसीबी की तरफ से क्लीनचिट मिलने की भनक लगते ही पायलट खेमा सक्रिय हो गया। उनकी मंशा है कि गहलोत को उनके गृहनगर में ही घेरा जाए। ताकि गहलोत घर की राजनीति में उलझ कर रह जाए। अब देखने वाली बात यह होगी कि इस मामले में कोर्ट क्या फैसला करता है।

यह है मामला

वर्ष 2013 में गहलोत सरकार के कार्यकाल के आखिरी दौर में तत्कालीन जेडीए चेयरमैन राजेंद्रसिंह सोलंकी की अध्यक्षता वाली दो बोर्ड बैठक में अंधाधुंध स्वीकृतियां जारी हुई थी। सरकार बदलते ही वसुंधरा सरकार ने 13 अगस्त, 23 व 24 सितंबर 2013 की इन बोर्ड बैठकों में स्वीकृत किए कार्यों को घोटाला मानकर एसीबी जांच के बाद प्रकरण दर्ज करवाए गए। प्रकरणों में एसीबी ने जांच के बाद चालान तक पेश किए थे। सोलंकी सहित कई इंजीनियर्स व अफसरों की गिरफ्तारियां हुई थी। अब फिर सरकार बदली, गहलोत सरकार-3 के सत्ता में आते ही इन कार्यों की परिभाषा तय करने के लिए कमेटी बना दी गई।

कमेटी ने इन्हें घोटाला नहीं, जनहित में किए गए विकास कार्य बताया। कमेटी की रिपोर्ट को ही आधार बनाते हुए गत 12 नवंबर को जेडीए कार्यकारी समिति (ईसी) की बैठक में तीन श्रेणी के इन कार्यों के भुगतान की अनुशंषा की गई है। जेडीए बोर्ड की बैठक में रखने के बाद इन्हें स्वीकृति के लिए सरकार को भेजने का फैसला किया गया है। इसी में 545 गैर राजकीय भूमि, 436 अधिक व अतिरिक्त वित्तीय स्वीकृति तथा 18 स्थान बदलने के कार्य शामिल हैं।

तीन चेयरमैन व दो जेडीसी बदल चुके

इस बीच जेडीए में पांच आईएएस बदल चुके हैं। इनमें तीन चेयरमैन, जो संभागीय आयुक्त थे। ललित गुप्ता, बाबूलाल कोठारी व डॉ. समित शर्मा शामिल हैं। गौरव अग्रवाल व मेघराजसिंह रतनू शामिल हैं। संभवत: अग्रवाल ने ईसी में ये प्रकरण रखने से मना किया था। उनका भी कुछ ही माह में तबादला हो गया था। जबकि दिवाली से पहले रतनू को एपीओ कर दिया गया था।

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