वनकर्मी जंगलों में ढूंढने जाएंगे ‘गिद्ध”, ट्रेचिंग ग्राउंड साफ होने से घट सकती है संख्या
इंदौर। सालभर पहले गीला-सूखा कचरा शहर के जिस ट्रेचिंग ग्राउंड में खुले में पड़ा रहता था और दिनभर वहां गिद्ध और चील समेत अन्य पक्षी आसमान में मड़राते रहते थे। मगर कुछ महीनों पहले ट्रेचिंग ग्राउंड को नगर निगम ने पूरी तरह साफ कर दिया है। यहां तक कचरे को भी रियूज किया जा रहा है। कचरा का ढेर नहीं होने से वहां गिद्धों की संख्या में जबर्दस्त कमी देखने को मिली है। बस यही चिंता वन अधिकारियों को सताने लगी हैं, क्योंकि हर साल इसी जगह गिद्ध की गिनती कर आंकड़े बताए जाते थे।
गिद्धों की लगातार घटती संख्या को लेकर प्रदेश सरकार चिंतित है। सात फरवरी को एक बार फिर वन विभाग पूरे प्रदेश में एक साथ गिद्धों की गणना करेगा। जहां वनकर्मियों को इन्हें ढूंढने के लिए जंगलों और आसपास इलाकों में नजर रखना है। खास बात यह है कि इंदौर वनमंडल के अधिकारियों की इस बार गणना में इनकी संख्या कम होने का डर है, क्योंकि ट्रेचिंग ग्राउंड के नजदीक कम दिखने लगे हैं। अब वन अधिकारियों ने इनकी गिनती के लिए नया रोड मैप तैयार किया है। बुधवार को गिद्ध गणना को लेकर रालामंडल अभयारण्य में इंदौर वनमंडल की चारों रेंज के वनकर्मियों को बुलाया था। जिन्हें फरवरी में जंगलों में किस तरह गिद्धों की गिनती की जाएं। इसके बारे में बताया गया। पहली मर्तबा 15 बिंदुओं पर गिद्धों की जानकारी भी वनकर्मियों को दर्ज करना है, जिसमें फोटो, प्रजाति, स्थान, संख्या, वयस्क आदि शामिल है। मुख्य वन संरक्षक सीएस निनामा, वन संरक्षक किरण बिसेन, एसडीओ एके श्रीवास्तव, राकेश लहरी, रेंजर बीएस मौर्य, जयवीर सिंह, मुकेश अलावा समेत अन्य अधिकारी मौजूद थे।
पांच साल पहले हुई थी गणना
जनवरी 2016 में गिद्धों के संरक्षण को लेकर सरकार को चिंता हुई। 23 जनवरी को प्रदेशभर के 33 जिलों में गिद्ध गणना एक साथ की गई, जिसमें श्योपुर, शिवपुरी, नीमच, मंदसौर, भोपाल, रायसेन, सागर, पन्नाा, इंदौर, सिवनी, डिंडौरी, दमोह, ग्वालियर, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा आदि शामिल है। यहां सात प्रजातियों के 6700 गिद्ध पाए गए। अकेले इंदौर वनमंडल में 284 गिद्ध मिले थे। देवगुराड़िया क्षेत्र के ट्रेंचिंग ग्राउंड में 246, पेडमी में 36 और महू में दो शामिल थे। अधिकारियों के मुताबिक 23 प्रजाति के गिद्ध (वल्चर) पाए जाते हैं। इनमें से नौ प्रजातियों के गिद्ध भारत वर्ष में आसानी से नजर आती है। प्रदेश में सात प्रजाति के गिद्ध हैं, जिसमें से कुछ प्रजाति बिल्कुल लुप्त होने की कगार पर आ चुकी है। इंडियन वल्चर या लांग बिल्ड वल्चर (भारतीय या देशी गिद्ध), इजिप्शन या स्केवेंजर वल्चर, व्हाई बैक्ड वल्चर, किंग वल्चर या रेड हैडेड वल्चर, यूरासियन ग्रिफोन, हिमालयन ग्रिफोन, सनरियस वल्चर शामिल हैं।
12 घंटे रखना होगी नजर
इंदौर वनमंडल में पातालपानी, गिद्ध खो, तिंछाफाल, पेडमी, ट्रेचिंग ग्राउंड समेत 12 स्थान चिन्हित किए गए हैं। जहां गिद्धों पर नजर रखी जाएगी। इसके लिए वनकर्मियों को कम से कम 12 घंटे जंगलों में गिद्धों की गतिविधियां देखना है। सुबह छह से शाम छह बजे तक आसमान पर निगरानी के अलावा पूरे इलाकों की वीडियोग्राफी की जाएंगी।
इसलिए घट रही संख्या
–पशुओं को दर्द निवारक दवा डायक्लोफोनिक दी जाती है। पशु की मौत के बाद गिद्ध इन्हें खाते हैं तो उनके किडनी और लिवर खराब हो जाते हैं।
–खेती के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशक और पेस्टीसाइड के इस्तेमाल के कारण भी लंबी उम्र जीने वाले गिद्धों की असमय मौत हो रही हैं।
– पेस्टीसाइड के इस्तमाल से इनकी प्रजनन क्षमता भी कम हुई है। जबकि गिद्ध साल में एक बार एक या दो अंडे देते हैं।
– बढ़ता प्रदूषण और घटते जंगलों के कारण इनके प्राकृतिक आवास नष्ट हुए हैं।