ट्विटर पर सख्त सरकार, भड़काऊ कंटेंट पर कार्रवाई करो वरना होगी कार्रवाई
नई दिल्ली । तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान संगठनों द्वारा 26 जनवरी को निकाली गई ट्रैक्टर परेड के लाल किले पर भड़की हिंसा मामले में अब ट्विटर भी निशाने पर है। केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया कंपनी को साफ बता दिया है कि जिन आपत्तिजनक ट्विटर हैंडल की लिस्ट कंपनी को सौंपी गई है, उन्हें ट्विटर को सेंसर करना ही होगा, वरना भारत में ट्विटर कंपनी के आला अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो सकती है। सरकारी अधिकारियों ने साफ कह दिया है कि भड़काऊ कंटेट वाले अकाउंटस्, विशेषकर नरसंहार हैशटैग वाले ट्विट पर कोई बातचीत नहीं होगी। सरकार ने कहा कि आईटी एक्ट की धारा 69-ए के तहत दिए आदेश में कंपनी के इनकार पर अब धैर्य जवाब दे सकता है।
ट्विटर ने आंशिक रूप से लागू किया था सरकार का आदेश
गौरतलब है कि दिल्ली में भड़की हिंसा के मामले में केंद्र सरकार ने आपत्तिजनक ट्विटर खातों को बैन करने के लिए ट्विटर को आदेश दिया था, लेकिन ट्विटर ने सभी खातों को बैन करने के बजाय कुछ ही खातों पर पाबंदी लगाई है। ऐसे में अब सरकार का रुख सख्त हो गया है। सरकार यदि सख्त कार्रवाई करती है तो ट्विटर को कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ सकता है। कंपनी ने एक ब्लॉग पोस्ट में कहा है कि जिन लोगों की हम सेवा करते हैं, उनकी अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा हम जरूर करेंगे।
इससे पहले बुधवार को केंद्रीय आईटी सचिव अजय प्रकाश साहनी और ट्विटर के आला अधिकारियों मोनिक मेशे व जिम बेकर की ऑनलाइन मुलाकात हुई थी। तब केंद्रीय आई सचिव साहनी ने साफ कहा कि विवादित हैशटैग का इस्तेमाल करना पत्रकारिता की स्वतंत्रता थी और न ही ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। गैर जिम्मेदार कंटेट और भड़काऊ पोस्ट हालात को और अधिक गंभीर बना सकता है। साथ ही साहनी ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि ट्विटर कैपिटल हिल और लाल किले में हुई घटनाओं के मामले में अलग-अलग रुख अपना रहा है, जो सही नहीं है।
ट्विटर को मानना होगा सरकार का आदेश वरना कार्रवाई तय
सरकार से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ट्विटर को सरकार के आदेशों का पालन करना ही होगा, वरना कड़ी कार्रवाई हो सकती है। वहीं ट्वटिर के ब्लॉग पोस्ट पर भी सरकार ने नाराजगी जताई है। जिसमें ट्विटर ने लिखा था कि उसने ‘न्यूज मीडिया संस्थानों, पत्रकारों, ऐक्टिविस्ट्स और नेताओं के अकांउट्स पर कोई कार्रवाई नहीं की है। हमें लगता है कि ऐसा करना, भारतीय कानून के तहत उन्हें मिले अभिव्यक्ति के मूल अधिकार का उल्लंघन होगा।’