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ऑटो ड्राइवर की बेटी की कहानी, जिसने गोल्ड जीता:18 साल की विंका ने हॉकी छोड़कर बॉक्सिंग चुनी, ताने मिलते थे कि चेहरा खराब हुआ तो कोई शादी नहीं करेगा

भारतीय महिला मुक्केबाज विंका ने फरवरी में मोंटेनीग्रो में हुए 30वें एड्रियाटिक पर्ल टूर्नामेंट में 60 किलो वेट कैटेगरी में देश के लिए गोल्ड मेडल जीता। वे इस टूर्नामेंट की बेस्ट बॉक्सर भी चुनी गईं। विंका जिस अंदाज में रिंग में प्रतिद्वंद्वियों को ढेर करती हैं, उसी अंदाज में उन्होंने अब तक जीवन की मुश्किलों को भी मात दिया है।

पानीपत की रहने वाली विंका के पिता ऑटो चलाते हैं। इसके बावजूद विंका ने देश के लिए मेडल जीतने का बड़ा सपना देखा। शुरुआत उन्होंने हॉकी से की थी, पर बाद में बॉक्सिंग को अपनाया। विंका इन दिनों रोहतक स्थित खेलो इंडिया के सेंटर में ट्रेनिंग कर रही हैं। अब उनका लक्ष्य 10 से 24 अप्रैल के बीच पोलैंड में होने वाले AIBA यूथ वर्ल्ड कप में देश का प्रतिनिधित्व करना है। अपनी तैयारियों के सिलसिले में उन्होंने भास्कर से बातचीत की। पेश हैं इंटरव्यू के मुख्य अंश…

क्या आप शुरुआत से ही बॉक्सिंग करती थीं?

मेरा एडमिशन आर्य बालिका स्कूल में स्पोर्ट्स कोटे से हुआ था। शुरुआत मैंने हॉकी से की। मैं हॉकी में नेशनल गेम्स में हरियाणा की स्कूली टीम से खेल चुकी हूं। उस दौरान अहसास हुआ कि टीम इवेंट में आपको दूसरे की मेहनत पर भी निर्भर रहना पड़ता है। किसी दूसरे की गलती की वजह से भी आपको हार का सामना करना पड़ता है, लेकिन, इंडिविजुअल स्पोर्ट्स में आपको आपकी मेहनत का फल मिलता है। आप अगर मेहनत करेंगे तो आप जीतेंगे। इसलिए मैने इंडिविजुअल गेम में जाने का फैसला लिया। बॉक्सिंग का चयन मैंने सेल्फ डिफेंस को ध्यान में रखकर किया था।

क्या बॉक्सिंग का चयन करने पर घर में विरोध हुआ?

घर में विरोध नहीं हुआ। बाहर के लोग जरूर ताना मारते थे। जब मैने बॉक्सिंग करने का मन बनाया तो पापा मुझे पानीपत के खेल स्टेडियम में लेकर गए। वहां पर सुनील सर बॉक्सिंग की ट्रेनिंग देते थे। जब मैं वहां जाने लगी तो लोग मेरे पापा और मां को ताना मारने लगे कि बेटी को बॉक्सिंग करवा रहे हैं, अगर चेहरे पर चोट लग गई तो आगे कोई भी शादी नहीं करेगा। लेकिन मेरे पापा और मां ने तानों को तवज्जो नहीं दी। वे हमेशा मुझे बढ़ावा देते थे।

आपको किस तरह की परेशानी का सामना करना पड़ा?
हम तीन भाई-बहन हैं। पापा ऑटो चलाते थे। मां हाउस वाइफ थीं। पापा ने कभी भी हम तीनों भाई-बहनों को कोई कमी नहीं आने दी। हमेशा मेरी डाइट का ख्याल रखा। हालांकि, 2018 में खेलो इंडिया में जीतने के बाद मेरा सिलेक्शन खेलो इंडिया के सेंटर पर हो गया। मैं तब से रोहतक स्थित स्पोटर्स ऑथोरिटी ऑफ इंडिया के सेंटर में ट्रेनिंग कर रही हूं।

क्या कभी ट्रेनिंग पर गलती करने के कारण कोच ने सजा दी?
खेल परिसर मेरे गांव से दूर था। ऐसे में पापा ही ऑटो से लेकर जाते थे। कई बार पापा को पैसेंजर को लेकर भी जाना होता था। इस वजह से सेंटर पर पहुंचने में देरी हो जाती थी। कोच सर ग्राउंड में रनिंग करवाते थे। कभी-कभी रिंग पर झाड़ू लगाने की सजा भी देते थे।

लॉकडाउन के कारण ट्रेनिंग पर क्या प्रभाव पड़ा?
कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन के कारण सेंटर से सभी बॉक्सरों को घर भेज दिया गया था। मैं अपने गांव में रहकर ही अभ्यास करती थी। अपने को फिट रखने के लिए गांव की सड़कों पर रनिंग करती थी और घर की छत पर ही एक्सरसाइज करती थी। वहीं सेंटर के कोच से वॉट्सऐप पर संपर्क में थी। वे जो शेड़यूल देते थे, उस हिसाब से ही प्रैक्टिस करती थी।

आपका अगला लक्ष्य क्या है?
मेरा लक्ष्य 10 से 24 अप्रैल के बीच पोलैंड में होने वाले AIBA यूथ वर्ल्ड कप में देश के लिए मेडल जीतना है। कोच की निगरानी में अपनी कमियों को दूर कर रही हूं। मेरा प्लस पॉइंट अटैकिंग गेम है। मैं उस पर पूरा ध्यान दे रही हूं।

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