जब नोटा को मिले सबसे ज्यादा वोट तो फिर से चुनाव कराना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से पूछा
नई दिल्ली | यदि किसी चुनाव में नोटा को ज्यादा वोट मिलते हैं तो क्या दोबारा चुनाव कराए जाने चाहिए? एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी करते हुए यह सवाल पूछा है। इस संबंध में अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें इस तरह की मांग की गई थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और आयोग से जवाब मांगा है। शीर्ष अदालत ने दोनों पक्षों को अगले 4 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। उपाध्याय का प्रतिनिधित्व करते हुए सीनियर अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि नोटा का अर्थ वोटर की ओर से उम्मीदवार को रिजेक्ट किए जाने का अधिकार होता है।
ऐसे में यदि नोटा को किसी भी उम्मीदवार से ज्यादा वोट मिलते हैं तो दोबारा चुनाव कराए जाने चाहिए। चीफ जस्टिस एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिका की सुनवाई करते हुए मेनका गुरुस्वामी से सवाल किया, ‘समस्या यह है कि यदि किसी राजनीतिक पार्टी का वोटर्स पर अच्छा प्रभाव है और उसके कैंडिडेट्स को रिजेक्ट कर दिया जाता है तो फिर संसद ही नहीं चल पाएगी। यदि कई उम्मीदवार रिजेक्ट कर दिए जाते हैं तो फिर वे निर्वाचन क्षेत्र खाली रह जाएंगे। फिर आप कैसे संसद का संचालन कर पाएंगे?’ इस पर अधिवक्ता मेनका ने कहा, ‘इस संबंध में चुनाव आयोग की ओर से भी कहा गया है कि यदि कहीं NOTA के ज्यादा वोट रहते हैं तो फिर दोबारा चुनाव कराए जाएंगे।’
गुरुस्वामी ने कहा कि अभी कोई स्पष्टता नहीं है। यदि 99 फीसदी वोट नोटा को मिलते हैं और एक फीसदी वोट किसी कैंडिडेट को मिलते हैं तो उसे विजेता घोषित कर दिया जाता है। राइट टू रिजेक्ट से राजनीतिक दलों को थोड़ा डर होना चाहिए कि वह अपनी तरफ से सही और साफ छवि वाले उम्मीदवारों का चयन करें, लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं है। शुरुआत में इस याचिका पर सुनवाई के लिए बेंच तैयार नहीं थी, लेकिन अंत में अर्जी पर कोर्ट ने केंद्र सरकार और आयोग से इस संबंध में जवाब मांगा है।
याचिका में मांग की गई थी कि चुनाव आयोग को आर्टिकल 324 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए नोटा का वोट सबसे ज्यादा होने पर चुनाव को कैंसल करना चाहिए और नए इलेक्शन कराने चाहिए। इसके अलावा अर्जी में यह मांग की गई कि जो लोग चुनाव में उतरे थे, उन्हें दोबारा चुनाव के दौरान मैदान में उतरने का मौका नहीं देना चाहिए।