प्रद्युम्न सिंह को राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाया, राजेश पायलट के साथ एयरफोर्स में रहे लक्ष्मण सिंह रावत और भाजपा के MLA लाहोटी को सदस्य

गहलोत सरकार बनने के 2 साल 5 महीने बाद राजस्थान में छठे राज्य वित्त आयोग का गठन कर दिया गया है। राज्यपाल कलराज मिश्र की मंजूरी के बाद वित्त विभाग ने वित्त आयोग अध्यक्ष और दो सदस्यों की नियुक्ति की अधिसूचना जारी कर दी है। पूर्व वित्त मंत्री प्रद्युम्न सिंह को राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। सांगानेर से भाजपा विधायक अशोक लाहोटी और भीम से पूर्व कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह रावत को सदस्य नियुक्त किया गया है। इनका कार्यकाल 18 महीने का होगा।
भाजपा राज में सरकार के गठन के डेढ़ साल बाद मई 2015 में राज्य वित्त आयोग अध्यक्ष की नियुक्ति हुई थी। मौजूदा गहलोत सरकार ने दो साल पांच माह बाद वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की है। वित्त आयोग के अध्यक्ष बने प्रद्युम्न सिंह पिछली भाजपा सरकार के समय आयोग में सदस्य थे। राज्य वित्त आयोग में एक सदस्य विपक्षी दलों से बनाने की परंपरा रही है। राज्य वित्त आयोग संवैधानिक संस्था है। लेकिन नियुक्तियां सियासी आधार पर ही होती हैं। राज्य वित्त आयोग की तीनों नियुक्तियों के जरिए गहलोत ने सियासी समीकरण साधे हैं। राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष और एक सदस्य के विधायक पिता हैं जबकि लाहोटी खुद विधायक हैं।
पायलट समर्थक रावत को सदस्य बनाने की भी खास वजह
राज्य वित्त आयोग के सदस्य बनाए गए लक्ष्मण सिंह रावत सचिन पायलट समर्थक हैं। लक्ष्मण सिंह रावत सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट के साथ एयरफोर्स में फाइटर पायलट रहे हैं। इसलिए उनकी पायलट परिवार से पुरानी दोस्ती रही है। लक्ष्मण सिंह रावत भीम से कांग्रेस विधायक रहे हैं और पूर्व में गृह राज्य मंत्री भी रह चुके हैं। लक्ष्मण सिंह रावत के पुत्र सुदर्शन सिंह रावत अभी भीम से विधायक हैं। यह अलग बात है कि सचिन पायलट की बगावत के समय सुदर्शन सिंह रावत पायलट के साथ नहीं जाकर गहलोत की बाड़ेबंदी में थे। प्रद्युम्न सिंह के विधायक पुत्र रोहित बोहरा पहले पायलट के साथ थे, लेकिन बगावत के वक्त पाला बदलकर वे भी गहलोत के साथ आ गए थे।
तीनों नियुक्तियों में पायलट-वसुंधरा राजे फैक्टर
राज्य वित्त आयोग की तीनों नियुक्तियों में सचिन पायलट और वसुंधरा राजे फैक्टर की झलक देखी जा सकती है। वित्त आयोग सदस्य बनाए गए सांगानेर से भाजपा विधायक अशोक लाहोटी एबीवीपी से भाजपा में आए, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रति उनका झुकाव रहा है। राजे विरोधी खेमे के किसी विधायक को सदस्य नहीं बनाने के पीछे भी इंटर-पार्टी सियासी समीकरण हैं। प्रद्युम्न सिंह के भी वसुंधरा राजे से अच्छे संबंध हैं। सियासी गलियारों में इन तीनों नियुक्तियों के राजनीतिक मायने और इसके पीछे भावी सियासी समीकरणों की आहट देखी जा रही है। वित्त आयोग में एक सदस्य विपक्ष का होता है, इसके लिए नेता प्रतिपक्ष से नाम मांगा जाता है, गुलाबचंद कटारिया ने अशोक लाहोटी का नाम भेजा था।
प्रद्युम्न सिंह बोले- कोविड से सरकारों की आर्थिक हालात खराब इसलिए काम चुनौतीपूर्ण
प्रद्युम्न सिंह ने कहा कि हमें ऐसे वक्त जिम्मेदारी मिली है जब राज्य सरकारों की आमदनी लगातार गिर रही है। कोविड के कारण राज्य के जो आर्थिक हालात हैं वे किसी से छिपे नहीं हैं। हमें वास्तविक हालात को ध्यान में रखकर ही काम करना होगा। सबकी सलाह और राय मशविरे के आधार पर काम करेंगे। समयबद्ध तरीके से काम करके रिपोर्ट तैयार करने की प्राथमिकता रहेगी।
रोहित बोहरा-सुदर्शन रावत अब मंत्री या सियासी नियुक्तियों की दौड़ से बाहर
इन दोनों नियुक्तियों का एक मतलब यह भी है कि दो विधायक अब मंत्री बनने या सियासी नियुक्तियों की दौड़ से बाहर हो गए हैं। रोहित बोहरा पहले मंत्री बनने की दावेदारी कर रहे थे। उनके पिता वित्त आयोग अध्यक्ष बन गए हैं इसलिए अब वे उस दौड़ से बाहर हो गए हैं। मौजूदा हालात में पिता-पुत्र को एक साथ पद नहीं मिल सकते। बोहरा हालांकि पहली बार के विधायक हैं। इसलिए मंत्री बनने में यह भी अड़चन थी। सुदर्शन सिंह रावत के साथ भी यही फैक्टर लागू होता है।