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उत्तराखंड के जंगलों की आग बुझाएगा डीआरडीओ द्वारा तैयार किया गया खास तरह का जैल, ये है फायर सप्रेसिंग की खासियत

उत्तराखंड के जंगलों में भड़की आग को अब विशेष प्रकार के जैल से काबू किया जाएगा। दिल्ली से आई रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की एक टीम ने वन विभाग के साथ दून में दो जगहों पर इसका ट्रायल किया है। इसके नतीजे अच्छे रहे। डीआरडीओ के सेंटर फॉर फायर, एक्सप्लोसिव एंड इंवायरमेंट सेफ्टी (सीएफईईएस) ने ये फायर सप्रेसिंग (अग्नि शमन) जैल तैयार किया है। यह जैल दुनिया के कई देशों में आग बुझाने में इस्तेमाल होता है। सीएफईईएस के एसोसिएट डॉयरेक्टर डॉ. केसी वाधवा ने बताया कि अभी कुआंवाला और लाडपुर के जंगल में इसका ट्रायल किया गया।

इसमें लाडपुर में तो जंगल में एक प्लॉट बनाकर आग लगाई गई और इस जैल को पानी में मिलाकर बुझाई गई। कुआंवाला में जंगल में लगी एक भीषण आग पर भी इसका ट्रायल किया गया, जो काफी सफल रहा। डॉ. वाधवा के अनुसार, ये जैल पानी की खपत को 60 प्रतिशत तक कम करता है। साथ ही पानी को जल्द भाप बनने और बहने से रोकता है। जिस आग में ये जैल पानी में मिलाकर डाला जाता है, वहां काफी समय तक नमी बनी रहती है। रायपुर रेंजर राकेश नेगी ने बताया कि वन विभाग और डीआरडीओ की टीम ने लाडपुर में इसका ट्रायल किया, जो काफी अच्छा रहा। ये बेहद कारगर है।

सात दिन तक जंगल को बना सकता है अग्निरोधक
डॉ. वाधवा के अनुसार यह ईको फ्रेंडली पालीमर बेस्ड जैल है, जो आग पानी में घुलने वाले खास तरह के अग्निरोधी पदार्थों से बनाया गया है। इसको पानी में प्वाइंट 6 से प्वाइंट 8 प्रतिशत तक मिलाते हैं। ये पानी में मिलकर छोटे से छोटे अग्निशमन उपकरण से डाला जा सकता है। अगर संवेदनशील इलाकों में इस जैल से फायर लाइन बना दी जाए या उस पूरे इलाके में पहले ही छिड़काव कर दें तो आग लगने की आशंका काफी कम हो जाएगी। इसका प्रभाव कम से कम सात दिन तक रहेगा। ये जमीन में नमी को बनाए रखने में भी मदद करता है। इससे आग लगने की संभावन भी काफी कम हो जाती है। इसकी एक्सपायरी का समय पांच साल तक है।

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