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कार्य के प्रति समर्पित एक शांतचित्त व्यक्तित्व का असमय चले जाना

आख़िर कोरोना के क्रूर पंजे कितनी प्रतिभाओं को अपना शिकार बनाएंगे ,आज सुबह सुबह सोशल मीडिया के माध्यम से जब यह खबर मिली की जनसम्पर्क विभाग के छायाकार रतिराम शाक्य नहीं रहे मन बुरी तरह व्यथित हो गया।

मेरा श्री शाक्य से कोई घनिष्ठता वाला सम्पर्क नहीं रहा लेकिन जब भी जनसम्पर्क विभाग जाना हुआ या फिर किसी सरकारी आयोजन में उन्हें फोटो खींचते देखा उन्होंने मुझे बेहद प्रभावित किया।

कार्यालय के अपने कक्ष में शांतचित्त होकर बैठना तथा वहां जारी चर्चाओं पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करना उन्हें बेहद शालीन व कार्य के प्रति पूर्ण समर्पित कर्मचारी की श्रेणी में लाकर खड़ा करता था।

आज वे नहीं हैं तब उनसे जुड़ी यादें रह रहकर दिमाग में कौंध रही हैं। प्रसंग बहुत छोटा व सामान्य कहा जा सकता है लेकिन समझने वाले के लिए श्री शाक्य ने बिन बोले ही बहुत कुछ सीख दी थी।

मैं जनसम्पर्क अधिकारी महोदय के चेम्बर में उनसे सामान्य भेंट करने गया था। चर्चा के दौरान उन्होंने घन्टी बजाई और रतीरामजी को बुलाने के लिए कहा तभी जवाब मिला वे नहीं आये हैं उन्हें बुखार है यह सुन जनसम्पर्क अधिकारी के चेहरे पर चिंता दिखाई दी बड़े सरकारी आयोजन की फोटोग्राफी कौन करेगा ? 

तभी सामने से कैमरा कंधे पर लटकाए रतीरामजी का आगमन होता है। जनसम्पर्क अधिकारी पूछते हैं अरे तुम्हारी तो तबियत खराब थी जवाब मिला जी सर थोड़ा बुखार था दवा लेकर आ गया हूँ क्यों कि कार्यक्रम की फोटो कौन खींचता । मैं यह सारा घटनाक्रम देख रहा था। रतीरामजी का कार्य के प्रति समर्पण व निष्ठा देख मैं हतप्रभ था।

सर्वविदित है की पत्रकारिता में फोटो के बिना कोई भी  खबर अधूरी कही जाती है। और जनसम्पर्क विभाग में तो प्रत्येक सरकारी आयोजन में फोटो का विशिष्ट महत्व होता है।

नेता से लेकर उच्च प्रशासनिक अधिकारियों की फोटो विशिष्ट एंगल से उतारना इसका भारी मानसिक दबाव फोटो जर्नलिस्ट पर रहता है। रतीरामजी शाक्य अपनी प्रतिभा व योग्यता के चलते सदैव इसपर खरे उतरे।

ऐसे योग्य व प्रतिभाशाली फोटो जर्नलिस्ट के असमय चले जाने से पत्रकार जगत को बड़ा झटका लगा है। पर भगवान उनकी आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दे और परिवारजनों को यह बड़ा दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करे।

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