योगी सरकार का दावा- गांवों में उसके कोरोना मैनेजमेंट का WHO भी कायल; पर हकीकत में गांवों में न दवा है, न टेस्टिंग, मौतें इतनी कि गिन नहीं सकते
UP में कोरोना की दूसरी लहर से हालात बेकाबू हो गए हैं। संक्रमण शहर से गांवों में पहुंच चुका है। हर गांव के हर घर में दो से तीन लोग बुखार से पीड़ित हैं। यहां न दवा का इंतजाम है, न टेस्ट का। इसके बावजूद योगी सरकार अपनी पीठ-थपथपाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। उसका दावा है कि राज्य के गांवों में कोरोना के माइक्रो मैनेजमेंट की तारीफ पूरी दुनिया में हो रही है। यहां तक कि WHO (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन) भी योगी के कोविड मैनेजमेंट का कायल हो गया है। सरकार ने WHO का एक ट्वीट भी रीट्वीट किया है।
WHO के हवाले से क्या कहा जा रहा है
सरकार की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि WHO ने 10 हजार घरों तक पहुंचकर योगी के कोविड मैनेजमेंट का मॉडल देखा। हालात देखकर संगठन योगी सरकार के कोविड मैनेजमेंट का कायल हो गया है। ग्रामीण इलाकों में 60 हजार से ज्यादा निगरानी समितियों के 4 लाख सदस्य कोरोना के सामने दीवार बन कर खड़े हुए हैं। गांवों में घर-घर स्वास्थ्य विभाग की 1.41 लाख टीमें जाकर जांच कर रही हैं। हालांकि, इस बारे में जब भास्कर ने WHO के ऑफिस से जानकारी मांगी तो उन्होंने मना कर दिया।
‘कोरोना को रोकने लास्ट माइल तक पहुंच रही यूपी सरकार’- यह वाहवाही WHO पर भी खड़े कर रही सवाल?
- सरकार का दावा है कि 75 जिलों के 97,941 गांवों में वह घर-घर पहुंची। कोरोना की जांच के साथ आइसोलेशन और मेडिकल किट की सुविधा भी उपलब्ध कराई, फिर गांवों से इतनी संख्या में मौतें कैसे हो रही हैं? किसकी जांच की और इलाज किया, क्या WHO ने गंगा में बहते शव देखे हैं?
- सरकार का दावा है कि स्वास्थ्य विभाग की 141610 टीमें गांव में कोविड प्रबंधन का काम कर रही हैँ, स्वास्थ्य विभाग में इतने लोग कहा हैं, फिर अस्पतालों में इलाज कौन कर रहा है?
- सरकार खुद 1.41 लाख टीमों के काम करने का दावा कर रही है तो WHO ने सिर्फ 2000 हजारों टीमों के काम की निगरानी कर पूरे स्टेट के लिए सर्टिफिकेट कैसे दे दिया?
- WHO यह क्यों स्पष्ट नहीं करता कि उसने जिन 2 हजार हजारों टीमों के कामों की निगरानी की और 10 हजार घरों तक पहुंचकर फीडबैक लिया, उसने यह किया कैसे? उसके पास इतने संसाधन आए कैसे और कितने दिनों में यह काम किया?
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन WHO के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं, यूपी में भी भाजपा की सरकार है, क्या सिर्फ इस वजह से तो वह वाहवाही नहीं कर रही?
दैनिक भास्कर का रियलिटी चेक
सच्चाई पता करने के लिए भास्कर ने 9 जिलों के गांवों से रिपोर्ट की है। इसमें देखिए हालात और हकीकत क्या है। हकीकत तो ये है कि UP के गांवों में कोरोना लगातार फैल रहा है। गांवों से आ रहे मौत के आंकड़े डरावने हैं। बुखार और उसके बाद हो रही मौतों से लोग दहशत में हैं। यहां तक राजधानी लखनऊ के ग्रामीण इलाकों और पड़ोसी जिले बाराबंकी के कई गांवों में अभी तक न तो कोई सरकारी टीम पहुंची है और न कोई जांच हुई।
1. लखनऊ से: डिघारी गांव में 80% परिवार बुखार की चपेट में आ चुके हैं
लखनऊ से 40 किमी दूर डिघारी गांव की आबादी 1,500 है। यहां पिछले एक महीने में 80% परिवारों में बुखार, जुकाम, बदन दर्द और सांस में दिक्क्त जैसी समस्याएं आ चुकी हैं। गांव वाले कहते हैं कि सभी लक्षण कोरोना के थे, लेकिन जब जांच ही नहीं हुई तो हम यह दावा भी नहीं कर सकते हैं कि हम सबको कोरोना था। गांव के प्रधान कहते हैं कि अभी कुछ दिनों से बुखार आना कम हुआ है, लेकिन पिछले दो दिन में 2 लोगों की मौत हो चुकी है। गांव के ही रेनू सिंह बताते हैं कि उनके परिवार में 11 लोग हैं। टेस्ट कराने पर छह लोग पॉजिटिव आए हैं। स्वास्थ्य टीमों को इसकी जानकारी ही नहीं है।
फैजाबाद रोड से सटे सेमरा गांव की हालत कोरोना के कारण बेहद नाजुक है। गांव के बृजलाल कहते हैं कि हर घर में 2-4 बीमार जरूर हैं। बीते 15-20 दिन से रोज किसी न किसी की मौत हुई है। मेरी जानकारी में 18 मौतें हुई हैं। कई लोग ऐसे भी हैं जो घर पर ही ऑक्सीजन सिलेंडर की जुगाड़ करके उपचार करवा रहे हैं। इसके बाद भी अभी तक स्वास्थ्य विभाग की कोई टीम नहीं आई है।
ऐसा ही कुछ हाल चिनहट के खरगापुर गांव का है। गांव की प्रधान के पति किरण प्रकाश विश्वकर्मा का कहना है कि 17 दिनों में 28 मौतें हुई हैं। गांव की आबादी करीब 20 हजार है, लेकिन लोगों की शिकायत है कि मेडिकल टीमें एक बार भी नहीं आई हैं।
2. बनारस से: एक-एक कर मर रहे लोग, प्रशासन की टीम भी आ रही, लेकिन राहत नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के गांवों में कोरोनावायरस से संक्रमित होने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। सारनाथ क्षेत्र के तिलमापुर गांव में 9 अप्रैल से लेकर अब तक एक ही परिवार के 5 सदस्यों की कोरोना से मौत हो चुकी है। इसके बाद से गांव में हड़कंप मचा हुआ है। तिलमापुर के पूर्व प्रधान नागेश्वर मिश्रा का कहना है कि अब प्रशासन सक्रिय हुआ है, घर-घर स्वास्थ्य विभाग की टीम भी आ रही है।
उधर, लोहता थाना के कोरौता गांव में एक महीने में 12 लोगों की मौत हो चुकी है। गांव के आलोक सिंह कहते हैं कि स्वास्थ्य विभाग की टीम आ तो रही है, लेकिन मौतों का सिलसिला थमे तब तो कोई बात हो। सरौनी गांव निवासी अधिवक्ता संदीप सिंह ने बताया कि हमने हाल ही में अपने बड़े भाई अजीत सिंह को खोया है। दिल्ली से परिवार लेकर गांव आए हैं। कई अन्य लोगों को भी संक्रमित देख रहे हैं। वाराणसी के 8 ब्लॉक के हर गांव में कोरोना का असर है। इसके बाद भी लोगों में जांच कराने को लेकर झिझक है।
3. कानपुर से: रामनगर के हर घर में बुखार, 5 हजार की आबादी और महीने भर में 20 मौतें
कानपुर देहात का गांव रामनगर एक महीने से कोरोना की चपेट में हैं। यहां हर घर में बुखार और खांसी के मरीज हैं। 5 हजार आबादी वाले इस गांव में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है। गांव में इस कदर दहशत है कि लोग घर से बाहर नहीं निकल रहे। अभी तक गांव में सिर्फ 40 लोगों की टेस्टिंग हुई है।
पंचायत चुनाव ने हालात और खराब कर दिए। गांव के ही रहने वाले रजनीकांत की मां रागिनी (63) 15 अप्रैल को वोट करके आईं, इसके बाद उनकी तबीयत खराब हो गई। तेज बुखार और सांस लेने में परेशानी होने पर उनको हैलट अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन उनकी मौत हो गई।
स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन को गांव के हालात की पूरी जानकारी है। इसके बावजूद सैंपलिंग के नाम पर सिर्फ 40 लोगों का कोरोना टेस्ट हुआ है। जबकि गांव के हर व्यक्ति के कोरोना टेस्ट की जरूरत है। रामनगर के अजय पांडेय बताते हैं कि 15 अप्रैल को पंचायत चुनाव हुए। 16 अप्रैल से फीवर आना शुरू हुआ। 19 को कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई। मैंने कोरोना कंट्रोल सेंट्रल से लेकर CHC तक फोन किए पर कोई सहयोग नहीं मिला। मौतों से दहशत में आए ग्रामीण अब बुखार को छुपाने में लग गए हैं। कोई तेज बुखार को हल्का तो कोई टायफाइड बता रहा है।
4. मेरठ से: सुनसान हुईं गलियां, बाहर के व्यक्ति का यहां आना मना है
मेरठ में कोराना का कहर शहर से गांवों में पहुंच गया है। दौराला क्षेत्र के मटौर गांव में सबसे अधिक मौतें हुई हैं। 6,500 की आबादी वाले इस गांव के ज्यादातर लोगों में कोरोना जैसे लक्षण थे। और पिछले 25 दिनों में यहां 17 लोगों की जान जा चुकी है। अभी भी गांव के ज्यादातर घरों में लोगों को बुखार है। ये गांव में ही इलाज करा रहे हैं।
लोगों को बुखार है, लेकिन वे जांच नहीं करा रहे हैं। वे डरे हुए हैं। कोरोना से स्थिति भयावह होती जा रही है। ऐसे में लोग जागरूक नहीं हुए तो कोरोना संक्रमण से स्थिति बेहद खराब हो जाएगी। पंचायत चुनाव के बाद से गांवों में कोरोना के मामले बढ़ने लगे हैं।
नारंगपुर, छुर, हर्रा, सरूरपुर समेत कई गांवों में हुई मौतों को स्वास्थ्य विभाग ने कोरोना से मौत नहीं माना है। मटौर गांव में स्वास्थ्य विभाग की टीम सोमवार को गई थी। गांव की एक गली में बैनर लगा है, जिस पर लिखा है कि यहां किसी भी बाहरी व्यक्ति का आना मना है। यहां न कोई सैनेटाइजेशन है, न ही किसी को किट मिली है।
5. बाराबंकी: पॉजिटिव रिपोर्ट आने पर कोई संपर्क नहीं करता है
बाराबंकी के देवा ब्लाक के कुदलुपुर गांव के रामलाल का कहना है कि उनके गांव में आज तक न कोई सरकारी सहायता पहुंची है और न ही कोई मेडिकल टीम आई है। उन्होंने खुद अपनी मां को बुखार और खांसी होने पर बाराबंकी के सरकारी अस्पताल में ले जाकर जांच कराई। जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद भी इनसे किसी ने संपर्क नहीं किया। लिहाजा प्राइवेट डॉक्टर से इलाज कराया। आस-पास के गांवों में भी कोई टीम नहीं आई। रामलाल कहते हैं कि सरकार केवल झूठ बोल रही है। अगर हमें घर पर दवाई और सुविधा मिलेगी तो फिर कोई बाराबंकी या लखनऊ क्यों जाएगा।
6. गोंडा- शहर में हो रहा कोरोना टेस्ट, इसलिए गांव के लोग नहीं जाते
गोंडा के रुपईडीह ब्लॉक के बनगाई गांव के ज्ञानेंद्र मिश्रा बताते हैं कि उनके गांव में पिछले 14 दिनों में 4 से 5 मौतें हुई हैं। गांव में कोई जांच नहीं होती, लिहाजा पता नहीं चल सकता कि मौत की वजह क्या है, लेकिन गांव के अधिकतर लोगों को बुखार या खांसी की समस्या है। लोग लोकल डॉक्टर से इलाज करवा रहे हैं। गांव में कोई मोबाइल वैन आज तक नहीं आई। स्वास्थ्य विभाग की कोई टीम भी नहीं आई है। ऐसे में ट्रेसिंग और ट्रैकिंग का सरकारी दावा गलत है। गोंडा शहर में RT-PCR टेस्ट हो रहा है, लेकिन गांव के लोग डर की वजह से वहां नहीं जा रहे।
7. जौनपुर से: पिलकिछा गांव में एक महीने में करीब 25 लोगों की मौत
उत्तर प्रदेश के जौनपुर के पिलकिछा गांव में एक महीने के अंदर करीब 25 लोगों की जान गई है। इनमें अधिकतर लोग सांस लेने में दिक्कत, सर्दी-जुकाम से परेशान थे। लोगों का कहना है कि इसके बावजूद जिला प्रशासन ने गांव में सैनेटाइजेशन का काम नहीं कराया है। हालांकि, गांव में मीडियाकर्मियों के पहुंचने के बाद आनन-फानन में आशा कार्यकर्ताओं को भेजकर मेडिसिन किट बंटवाने का काम शुरू किया गया। गांव में लगातार हो रही मौतों से लोगों में दहशत का माहौल है, डर के चलते लोग एक-दूसरे के घर आना-जाना बंद कर दिए हैं।
पिलकिछा गांव के रहने वाले अभिषेक शर्मा के घर में 3 लोगों की मौत हो चुकी है। अभिषेक बताते हैं कि गांव में एक महीने में करीब 25 लोगों की मौत हो चुकी है, इसके बावजूद खुटहन CHC का OPD बंद है। ऐसे में लोग झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज करा रहे हैं। गांव में प्रशासन का कोई अधिकारी अभी तक नहीं आया है।
8. मथुरा से: गांव के लोग झोलाझाप डॉक्टरों से करा रहे इलाज
पंचायत चुनाव के बाद जिले के ग्रामीण इलाकों में हालात बिगड़ रहे हैं। गोवर्धन ब्लॉक के गांव अडींग में सड़कों पर सन्नाटा है। दुकानों पर ताले पड़े हैं। करीब 18 हजार की आबादी वाले इस गांव में 10,689 वोटर हैं। हाल ही में प्रधान बनीं सनहेलता रावत खुद बीमार हैं। गांववालों ने बताया कि यहां 10 दिन में करीब 20 मौत हुईं हैं, लेकिन यह कोविड से हुईं या अन्य बीमारियों से कह नहीं सकते। गांव में स्थित अस्पताल के हर बेड पर मरीज है।
जिलाधिकारी नवनीत चहल का कहना है कि गांवों में निगरानी के लिए तहसील स्तर पर कंट्रोल सेंटर बनाए गए हैं। गांवों में निगरानी समिति भी बनाई हैं। लेकिन ये निगरानी समित और सेंटर के कर्मचारी कहीं दिखाई नहीं देते हैं।
9. झांसी से: पंचायत चुनाव के बाद अब भेजी जा रहीं स्वास्थ्य टीमें
झांसी शहर से लगे रक्सा समेत आसपास के 5 से अधिक गांवों में कोरोना से लोगों का बुरा हाल है। राक्सा गांव के प्रधान राजेंद्र राजपूत ने बताया कि गांव में कोरोना से पिछले एक महीने में 18 से 20 लोगों की जान जा चुकी है, मगर अब स्थिति में कुछ सुधार है। कोविड मरीजों की सबसे ज्यादा संख्या मऊरानीपुर, मोंठ और बंगरा ब्लॉक से मिली है। सिर्फ इन्हीं तीन ब्लॉकों से ही तीन हजार3,000 से अधिक मरीज सामने आ चुके हैं।
चिरगांव, बबीना और बामौर ब्लॉक में कोविड मरीजों की संख्या अच्छी-खासी है, लेकिन यहां गांववाले जांच के लिए सामने आने से कतरा रहे हैं। बड़ागांव ब्लॉक में करीब 1,300 मरीज मिले हैं। पंचायत चुनाव के बाद जिला प्रशासन हरकत में आया है और अब घर-घर जांच के लिए टीम भेजी जा रही है और दवाएं बांटी जा रही हैं।