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फाइजर और मॉडर्ना जैसी विदेशी वैक्सीन का भारत में आने का रास्ता साफ, नहीं होगा ट्रायल

नई दिल्ली: फाइजर और मॉडर्ना जैसी विदेशी वैक्सीन का भारत आने का रास्ता अब साफ हो गया है. दोनों कंपनियों की वैक्सीन को लोकल ट्रायल से नहीं गुजरना होगा. ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीजीसीआई) ने फाइजर और मॉडर्ना जैसी विदेशी वैक्सीन पर अलग से लोकल ट्रायल कराने की शर्तों को हटा दिया है. यानी कि अगर किसी विदेशी वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन या अमेरिकी एफडीए से इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिल चुकी है, तो भारत में ट्रायल से नहीं गुजरना होगा.
DCGI के एक पत्र में कहा है कि विदेशी कंपनियों के लिए ‘पोस्ट-लॉन्च ब्रिजिंग ट्रायल’ करने और भारत में अपने टीकों की गुणवत्ता का परीक्षण करने की आवश्यकता को खत्म कर दिया है, अगर उनके पास विशिष्ट देशों या स्वास्थ्य निकायों से अप्रूवल है. डीजीसीआई प्रमुख वीजी सोमानी ने पत्र में कहा है कि यह निर्णय भारत में कोविड मामलों की बढ़ोतरी और टीकों की उपलब्धता बढ़ाने की आवश्यकता के मद्देनजर लिया गया है.

उसने कहा, ‘‘आपात स्थिति में सीमित इस्तेमाल के लिए भारत में टीकों को स्वीकृति दिए जाने का फैसला किया जाता है. ऐसे टीकों की मंजूरी दी जाती है जो अमेरिकी एफडीए, ईएमए, यूके एमएचआरए, पीएमडीए जापान द्वारा स्वीकृत हैं या डब्ल्यूएचओ के आपात इस्तेमाल सूची में सूचीबद्ध हैं और जिनका इस्तेमाल पहले ही लाखों लोगों पर किया जा चुका है. सीडीएल, कसौली द्वारा टीके की जांच करने और ब्रिजिंग ट्रायल से छूट दी जा सकती है.’’

मॉडर्ना ने FDA से अपनी वैक्सीन के लिए मांगी पूर्ण मंजूरी
अमेरिका की दवा कंपनी मॉडर्ना ने कहा है कि उसने व्यस्कों पर कोविड वैक्सीन के इस्तेमाल को अमेरिकी नियामक की पूर्ण मंजूरी दिलाने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है. मॉडर्ना ने मंगलवार को घोषणा की कि दो डोज वाली वैक्सीन पर की गई रिसर्च का डेटा एफडीए को देना शुरू कर दिया है. एफडी और दूसरे कई देशों के नियामक मॉडर्ना की वैक्सीन के आपात इस्तेमाल को पहले ही मंजूरी दे चुके हैं. अमेरिका में अब तक इसकी 12 करोड़ 40 लाख से अधिक खुराकें दी जा चुकी हैं.

आपात इस्तेमाल को मंजूरी मिलने के बाद भी मॉडर्ना के टीके पर बड़े पैमाने पर शोध जारी है. एफडीए इस बात की जांच करेगा कि टीका पूर्ण मंजूरी दिए जाने के मानदंडों को पूरा करता है या नहीं. मॉडर्ना वैक्सीन के लिए पूर्ण मंजूरी मांगने वाली दूसरी दवा कंपनी है. इससे पहले, फाइजर और जर्मनी की उसकी साझेदार कंपनी बायोएनटेक मंजूरी मांग चुकी हैं.

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