यूरो कप डायरी:इंग्लैंड ने जर्मनी को हराया : क्या इस बार होगी फ़ुटबॉल की घर वापसी?
इंग्लैंड और जर्मनी के बीच फ़ुटबॉल के मैदान पर ऐतिहासिक रूप से एक लम्बी प्रतिद्वंद्विता रही है। 1966 का विश्वकप फ़ाइनल इंग्लैंड और जर्मनी (तत्कालीन वेस्ट जर्मनी) के बीच इसी वेम्बले में खेला गया था, जहाँ मंगलवार शाम यूरो कप का क्वालिफ़ायर मैच खेला गया। 1966 का फ़ाइनल इंग्लैंड ने जीता था, लेकिन उसके बाद से वह कोई बड़ा अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट नहीं जीत सका है।
जर्मनी को इसके बाद इंग्लैंड से बदला लेने के बहुत मौक़े मिले। 1990 के विश्वकप सेमीफ़ाइनल में जर्मनी ने इंग्लैंड को पेनल्टी शूटआउट में हराया। उस मैच में इंग्लैंड के क्रिस वाडल की आवारा पेनल्टी बड़ी बदनाम हुई थी। 2010 विश्वकप के नॉकआउट मुक़ाबले में तो जर्मनी ने इंग्लैंड को 4-1 से रौंद दिया था। उस मैच में थॉमस म्युलर ने दो गोल किए थे, जो बीती शाम इक्वेलाइज़ करने का एक सुनहरा मौक़ा चूक गए।
1996 के यूरो कप सेमीफ़ाइनल में भी इंग्लैंड-जर्मनी की भिड़ंत हुई थी, फिर मुक़ाबला पेनल्टी शूटआउट तक गया और फिर इंग्लैंड की हार हुई। उस मैच में दोनों टीमें पाँच-पाँच पेनल्टी कर चुकी थीं, लेकिन इंग्लैंड की टीम छठी पेनल्टी चूक गई।
आप जानते हैं वो मैच कहाँ खेला जा रहा था? इसी वेम्बले स्टेडियम में। और क्या आपको पता है निर्णायक पेनल्टी चूकने वाले इंग्लैंड के खिलाड़ी का नाम क्या था? गैरेथ साउथगेट। वही गैरेथ साउथगेट- जो आज इंग्लैंड के कोच हैं, जिनके नेतृत्व में पूरे 25 साल बाद वेम्बले के एक और यूरो कप नॉकआउट मुक़ाबले में इंग्लैंड ने जर्मनी को परास्त किया और अतीत के प्रेतों को कुछ हद तक दफ़नाने में सफलता पाई, अतीत के घावों पर कुछ हद तक मरहम लगा।
इंग्लैंड ने एक पुख़्ता टैक्टिकल गेम खेला, जैसा कि किसी भी बड़े टूर्नामेंट के नॉकआउट दौर में बड़ी टीमें खेलती हैं। वो अपने पत्ते नहीं खोलतीं, रुको-देखो की नीति अपनाती हैं, मोर्चा बाँधे रखती हैं, ग़लतियाँ करने की गुंजाइश ख़ुद को नहीं देतीं। दोनों टीमों की स्टार्टिंग इलेवन में एक दिलचस्प बात थी। दोनों ने डिफ़ेंस में चार के बजाय तीन और मिडफ़ील्ड में तीन के बजाय चार खिलाड़ियों को खिलाया, जिससे यह तय हो गया कि यह गेम मिडफ़ील्ड में मैन-टु-मैन खेला जाएगा। इंग्लैंड ने 3-4-3 का फ़ॉर्मेशन उतारा था, जर्मनी ने इसी का थोड़ा-सा संशोधित रूप 3-4-2-1 खिलाया- यानी इंग्लैंड के तीन फ़ॉरवर्ड्स की तुलना में जर्मनी ने अग्रिम पंक्ति में दो विंगर और एक सेंटर-फ़ॉरवर्ड उतारे, किंतु मिडफ़ील्ड और डिफ़ेंस की मोर्चाबंदी दोनों की समान थी।
दोनों टीमों की स्टार्टिंग इलेवन में और एक बात ग़ौर करने लायक़ थी। इंग्लैंड की लगभग पूरी टीम (11 में से 10 खिलाड़ी) इंग्लिश प्रीमियर लीग के खिलाड़ियों से सजी थी, उसमें भी मैनचेस्टर यूनाइटेड और मैनचेस्टर सिटी के सर्वाधिक खिलाड़ी थे। जर्मनी के साथ ऐसा नहीं था। उसकी टीम केवल बुन्देसलीगा (जर्मन लीग) के खिलाड़ियों से नहीं बनी थी। उनका सेंट्रल मिडफ़ील्डर टोनी क्रूस स्पैनिश लीग का सितारा था।
वहीं पिच पर जर्मनी के लिए प्रीमियर लीग के तीन खिलाड़ी खेल रहे थे। ना केवल प्रीमियर लीग, बल्कि चेल्सी के- वेर्नर, हावेर्ट्ज़ और रूडीगर। तक़रीबन डेढ़ महीना पहले चेल्सी और मैनचेस्टर सिटी के बीच जो चैम्पियंस लीग फ़ाइनल खेला गया था, उसमें ये तीनों खिलाड़ी स्टार्टिंग इलेवन में थे। आप कह सकते हैं कि इन खिलाड़ियों- जिन्होंने पूरा सीज़न इंग्लैंड में खेला था- के कारण जर्मनी मैदान में बेहतर स्थिति में थी- लेकिन फ़ुटबॉल में अकसर ऐसे समीकरण नाकाम सिद्ध होते हैं।
हाफ़-टाइम शून्य-शून्य पर छूटा। दोनों टीमों ने कुछ मूव बनाए, लेकिन ऑलआउट आक्रमण करने की हिम्मत नहीं ज़ाहिर की। दूसरे हाफ़ में गैरेथ साउथगेट ने फ़ैन्स-फ़ेवरेट जैक ग्रीलिश को मैदान में उतारा। ग्रीलिश एस्टन-विला के लिए खेलते हैं और लेफ़्ट-फ़्लैन्क में अपनी आक्रामक-एप्रोच के लिए इंग्लिश-समर्थकों के प्रिय हैं। इसी यूरो 2020 में वो चेक रिपब्लिक के विरुद्ध एक असिस्ट दे चुके थे। खेल के पहले गोल का श्रेय रहीम स्टर्लिंग के ख़ूबसूरत मूव को दिया जाएगा, जिन्होंने 75वें मिनट में मिडफ़ील्ड में अपनी फुर्ती से एक अवसर बनाया, ल्युक शॉ के क्रॉस पर उन्होंने एक उम्दा सेंटर-फ़ॉरवर्ड फ़िनिश किया। इंग्लैंड ने मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर ली। गोल करने से पहले रहीम ने अपनी दौड़ को रोककर ख़ुद को एक क़दम पीछे खींच लिया था, ताकि वे ऑफ़साइड क़रार नहीं दिए जाएँ। फ़ुटबॉल में एक अच्छा स्ट्राइकर वह नहीं होता, जो बहुत तेज़ दौड़े और बहुत ज़ोर का शॉट लगाए, बल्कि वह होता है, जो नपी-तुली रफ़्तार से आगे बढ़े, हमेशा ऑनसाइड रहे, सही दिशा में सही वज़न के साथ गेंद को पास करे और गोल करने के अवसर बनाए।
जीवन की ही तरह फ़ुटबॉल में भी बहुत कुछ एब्सट्रैक्ट होता है, जिसमें सांयोगिकता हावी रहती है। मसलन यही कि अगर थॉमस म्युलर इसके फ़ौरन बाद मिले सुनहरे अवसर को भुनाकर इक्वेलाइज़ कर देते तो क्या होता? यक़ीनन, पूरा खेल ही बदल जाता। बीते रोज़ हमने इक्वेलाइज़र गोलों के बाद खेल की तस्वीर बदलते देखी थी। लेकिन म्युलर चूक गए। हैरी केन अलबत्ता नहीं चूके। उन्होंने 86वें मिनट में एक बार फिर एक उम्दा सेंटर फ़ॉरवर्ड मूव के साथ हेडर गोल किया। लेफ़्ट फ़्लैन्क से उन्हें क्रॉस देने वाले खिलाड़ी का नाम? बतलाने की ज़रूरत नहीं- जैक ग्रीलिश। गैरेथ साउथगेट इसके लिए ख़ुद को शाबासी देना चाहेंगे।
विगत यूरो कप चैम्पियन सहित विगत दो विश्वविजेता टीमें टूर्नामेंट से विदा ले चुकी हैं। इंग्लैंड अंतिम आठ में पहुँच चुकी है। उसने कभी भी यूरो कप नहीं जीता है और 1996 के बाद से वह यूरो के सेमीफ़ाइनल तक भी नहीं पहुँच पाई है। 2018 के विश्वकप में इंग्लैंड की टीम सेमीफ़ाइनल तक पहुँची थी, जो 1990 के बाद की उसकी सबसे अच्छी रैंकिंग थी- लेकिन ख़िताबी जीत उससे दूर ही रही और इस दौरान उसकी एक समूची गोल्डन जनरेशन- ओवेन, बैकहम, जेरार्ड, लैम्पर्ड, स्कोल्स, रूनी- आकर ख़र्च हो गई। जब भी कोई मेजर टूर्नामेंट शुरू होता है, तो इंग्लैंड में वो कहते हैं- इट्स कमिंग होम। यानी ख़िताब अब घर लौटकर आ रहा है। पता नहीं वो ये बात भरोसे से कहते हैं या प्रश्नवाचक चिह्न के साथ कि क्या सच में ही ख़िताब इस साल घर लौटकर आएगा? इंग्लैंड मान सकता है कि भाग्य उसके साथ है, क्योंकि इसके बाद उसे मिलने जा रहे ड्रॉ अपेक्षाकृत सरल कहे जा सकते हैं। जर्मनी को परास्त करने के बाद मोमेंटम तो ख़ैर उसके साथ अब है ही। कौन जाने, सच में ही, फ़ायनली इट्स कमिंग होम।