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कांग्रेस का संगठन में ज्यादा कार्यकर्ताओं काे एडजस्ट करने का फाॅर्मूला, जोधपुर, जयपुर व कोटा में दो नगर निगम की तर्ज पर दो-दो जिलाध्यक्षों पर मंथन

एम अशोक गहलोत के गृहनगर जोधपुर में कांग्रेस अपना नया जिला अध्यक्ष तलाश कर रही है। लेकिन, जिला अध्यक्ष तय हो इससे पहले ही कांग्रेस इसमें उलझ गई कि नगर निगम की तर्ज पर कांग्रेस संगठन के दो हिस्से किए जाए या नहीं। इस स्थिति में कांग्रेस का जिलाध्यक्ष तक तय नहीं हो पा रहा है। यह तो तय है कि जिसे गहलोत चाहेंगे वह अध्यक्ष बनेगा, लेकिन अध्यक्ष दो बनाए या एक, इसे लेकर गहलोत भी असमंजस में हैं। इस मसले को लेकर कांग्रेस भी दो धड़ों में बंटी हुई नजर आ रही है।

मसला सिर्फ जोधपुर तक ही सीमित नहीं है। संगठन ज्यादा कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करवाने के लिए दो-दो जिला अध्यक्ष बनाने का विचार कर रहा है। प्रदेश में जयपुर, जोधपुर व कोटा में दो-दो नगर निगम है। ऐसे में मंथन चल रहा है कि इन तीनों स्थान पर कांग्रेस संगठन को भी निगम की तर्ज पर दो भागों में बांट दिया जाए। इस मसले पर पार्टी में दो धड़े बन गए है। कुछ लोग इसका समर्थन कर रहे हैं। वहीं कुछ लोग इसका विरोध । लेकिन माना यह जा रहा है कि आखिरकार पार्टी संगठन के भी दो हिस्से कर देगी। ताकि संगठन में अधिक लोगों को एडजस्ट किया जा सके।

सबसे पेचिदा मसला जोधपुर का
जोधपुर में कांग्रेस संगठन पूरी तरह से मुख्यमंत्री गहलोत पर निर्भर है। गहलोत अपने विश्वस्त व्यक्ति को एक बार इस पद पर बैठा वापस बदलने का नाम ही नहीं लेते। गहलोत का मानना है कि बार-बार अध्यक्ष बदलने से गुटबाजी बढ़ती है और इससे संगठन कमजोर पड़ता है। यहीं कारण है कि तीन दशक में जोधपुर में सिर्फ एक बदलाव देखने को मिला। इस कारण लंबे समय से पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ताओं ने जोधपुर में एक तरह से अध्यक्ष बनने का ख्वाब तक देखना छोड़ दिया।

दो संगठन के पक्ष में हैं ये तर्क
इस मसले पर संगठन के ही पदाधिकारियों के अलग-अलग तर्क हैं। यह मसला पहले भी उठा था कि नगर निगम की तर्ज पर जिला अध्यक्षों को भी दो भांगों में बांट दिया जाए। इसके पक्ष में लोगों का कहना है कि दो हिस्सों में होने से संगठन अधिक सक्रिय रहेगा। वहीं दो लोगों को अध्यक्ष बनने का अवसर मिल सकेगा। इसके साथ ही संगठन में अधिक संख्या में लोग एडजस्ट हो सकेंगे।

विपक्ष में ये तर्क
इस पर कुछ प्रबुद्ध कांग्रेसजनों ने आपत्ति जताई है। उनका मानना है इसका विकेंद्रीकरण करना उसकी ताकत को कम करना होगा। यह विकेंद्रीकरण संगठन के सशक्त स्वरूप का विरोधाभासी होगा। कुछ लोगों का कहना है कि वर्तमान दौर में नौकरशाही हावी होती जा रही है। ऐसे में इस तरह के विकेंद्रीकरण से संगठन की कौन सुनेगा। इन लोगों का कहना है कि यदि ऐसा किया जाता है तो फिर जोधपुर में कलेक्टर के भी दो पद कर दिए जाने चाहिए।

ये लोग हैं दावेदार
जोधपुर में अध्यक्ष बनाने के साथ गहलोत जातीय समीकरण साधने पर विशेष ध्यान देंगे। पहले पंद्रह साल तक वैश्य और बाद के पंद्रह साल तक इस पद पर अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति काबिज रहा। अब ब्राह्मण और ओबीसी के लोग अपनी दावेदारी जता रहे है। यदि संगठन को एक ही रखा जाता है तो सबसे प्रबल दावेदार के रूप में पूर्व मेयर व गहलोत के करीबी रामेश्वर दाधिच, जेडीए के पूर्व अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह सोलंकी व संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेशा बोराणा का नाम प्रमुखता से सामने आ रहा है। दो हिस्से होने की स्थिति में सुरेश व्यास,अजय त्रिवेदी, सुरेश व्यास, अनिल टाटिया, सुपारस भंडारी व शांतिलाल लिम्बा के अलावा मजीद गौरी का नाम फिलहाल रेस में आगे चल रहा है।

जब गहलोत को मजूबरी में हटाना पड़ा काबरा को
वर्ष 2005 में जिलाध्यक्ष पद पर पंद्रह वर्ष से काबिज गहलोत के सबसे खास माने जाने वाले जुगल काबरा का मुद्दा सोनिया गांधी तक जा पहुंचा। गुजरात में जोधपुर के कुछ कार्यकर्ताओं की संयोग से सोनिया गांधी से मुलाकात हो गई। संगठन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने शिकायत कर दी कि डेढ़ दशक से अध्यक्ष तक नहीं बदल पा रही है पार्टी। इसके बाद सोनिया के निर्देश पर हलचल बढ़ी और दिल्ली से संगठन से जुड़े वरिष्ठ नेता तक को जोधपुर की यात्रा करनी पड़ी। बाद में बेमन से गहलोत ने काबरा को हटाने का फैसला किया। काफी जद्दोजहद के बाद उन्होंने सईद अंसारी को यह जिम्मेदारी सौंप दी। इसके बाद उन्होंने अभी तक अध्यक्ष बदलने का सोचा तक नहीं। अंसारी कई बार गहलोत के समक्ष पद से मुक्त करने को कह चुके हैं, लेकिन हर बार गहलोत मुस्करा कर बात को टाल जाते हैं। लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि जोधपुर में कांग्रेस का नया अध्यक्ष देखने को मिल सकता है। यह अलग बात है कि अब एक मिलेगा या दो। इसका फैसला गहलोत स्वयं ही करेंगे।

अब तक ये रह चुके हैं शहर में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष
जोधपुर में सबसे पहले वर्ष 1967 में तारक प्रसाद शहर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने। करीब तीन वर्ष पश्चात जगदीश सांखला को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया।इसके बाद जवाहरमल पुरोहित को मौका प्रदान किया गया। आपातकाल के दौर में कांग्रेस की कमान अमृतलाल गहलोत के हाथ में थी। अमृतलाल के बाद वर्ष 1979 में वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने संगठन की बागडोर थामी। वर्ष 1983 में लक्ष्मीनारायण योगानंदी अध्यक्ष बनाए गए। उनकी गहलोत गुट से पटरी नहीं बैठी। दो वर्ष पश्चात उनके स्थान पर गहलोत के करीबी भंवरलाल पंवार को अध्यक्ष बनाया गया। ढाई वर्ष पश्चात एक सड़क हादसे में निधन होने तक वे अध्यक्ष रहे। उनके बाद जुगल काबरा को पहले कार्यवाहक और बाद में स्थाई अध्यक्ष बनाया गया। वे ऐसे स्थाई हुए कि पंद्रह वर्ष तक इस पद पर काबिज रहे। वर्ष 2005 में गहलोत ने काबरा के स्थान पर सईद अंसारी को जिम्मेदारी सौंप दी। तब से लेकर अभी तक अंसारी इस पद पर जमे हुए है।

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