जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय विज्ञानियों को रिसर्च पेपर लेखन में माहिर बनाएगा
रुद्रपुर : कृषि की पढ़ाई तो कर लेते हैं, मगर लेखन कला में विद्यार्थी पारंगत नहीं हो पाते हैं। ऐसे में जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय विज्ञानियों को रिसर्च पेपर लेखन में माहिर बनाएगा। इसके लिए विशेषज्ञों के माध्यम से हिन्दी व अंग्रेजी की वर्णमाला, शब्द व तथ्यों के स्रोतों को बेहतर तरीके से प्रस्तुत करने का तरीका सिखाया जाएगा। लेखन कला में दक्षता बनाने के लिए विवि स्थित राजकीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना यानी नाहेप ने कमर कसी है। इसी के तहत हर माह ऑनलाइन 10 घंटे लेखन की विशेष क्लास चलाई जाएगी। इसकी वजह यह भी है कि विवि में अच्छे विज्ञानी होने के बावजूद लेखन की गुणवत्ता अपेक्षाकृत बेहतर नहीं है। इससे इंटरनेशनल जर्नल में प्रतिभाग करना मुश्किल होता है। इससे निपटने के लिए विवि ने शोध के साथ ही शोधपत्र लेखन की कला भी सिखाने की योजना तैयार की है। जिसका नाम राइटिंग स्टूडियो दिया है।
कंप्यूटर व मोबाइल से सामान्य लेखन के प्रति विद्यार्थियों की रुचि घटी है। वैज्ञानिक लेखन तो धीरे धीरे एक विलुप्तप्राय कला हो गई है। वैज्ञानिक भी केवल शोध पत्र लिखने और प्रकाशित करने में अधिक रुचि लेते हैं जो उनके करियर से जुड़ती है। किसानों एवं सामान्य पाठकों को ध्यान में रखकर वैज्ञानिक लेखन की ओर से रुझान घटा है। इसकी वजह इंटरनेट पर सामग्री आसानी से उपलब्ध हो जाती है, मगर आम आदमी अभी इंटरनेट की सुविधा से दूर है। सरल व सुस्पष्ट भाषा में लेखन न होने से आम आदमी नहीं समझ पाता है तो कृषि तकनीकी में हुए विकास का लाभ पाने से किसान व उद्यमी वंचित हो जाते हैं। जनसामान्य के विकास से जुड़े वैज्ञानिक मुद्दे संचार माध्यमों में कम आ पाते हैं। कृषि तकनीकी से जुड़े ज्ञान को आम आदमी तक पहुंचाने के लिए लेखन कला में दक्षता होनी चाहिए, जो सरल भाषा हो और लोग आसानी से शब्दों के अर्थ को समझ सके। आइआइएम, इंदौर की फेलो डा. श्वेता गुप्ता प्रशिक्षक हैं। डा. श्वेता शोधपरक लेखन में एक्सपर्ट है। उनकी कई पुस्तकें युवाओं में बहुत लोकप्रिय हैं।
राइटिंग स्टूडियो है क्या
विद्यार्थियों में वैज्ञानिक लेखन के प्रति अभिरुचि जगाने और उत्कृष्ट वैज्ञानिक लेखन के गुर सिखाने के लिए नाहेप सौ घंटे की अवधि की कार्यशाला तैयार की है। राइङ्क्षटग स्टूडियो में ऑनलाइन लखन कला में दक्ष बनाया जाएगा। इसके लिए 10 घंटे प्रति माह के हिसाब से 10 माह कार्यशाला चलेगी। उपयुक्त एवं विश्वस्त सन्दर्भ चयन, संदर्भित सामग्री का लेखन, विकासात्मक लेखन, शोध पत्र लेखन, किसानों के लिए लेखन, आत्मकथ्य लेखन, वैज्ञानिक लेखन की भाषा प्रयोग, वैज्ञानिक शब्दावली का सरलीकरण, प्रभावी लेखन कला जैसे विषयों का गहन प्रशिक्षण दिया जाएगा ।
समय के साथ अच्छे विकासात्मक लेखों की कमी
नाहेप के परियोजना अधिकारी डा. शिवेंद्र कुमार कश्यप बताते हैं कि विकासात्मक संचार एक विशिष्ट कला है। जिसके लिए संवेदना, खोजपरकता, अन्वेषण, सन्दर्भ अध्ययन एवं लेखन कला की आवश्यकता होती है। समय के साथ अच्छे विकासात्मक लेखों की कमी हो रही है। ऐसे में छात्रों में यह गुण उत्पन्न करना आवश्यक है। उन्होंने इस अभ्यास आधारित कार्यशाला को अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण बताया। वैज्ञानिक लेखन के प्रति सामान्य अभिरुचि बढ़ाना और उस ²ष्टि से गहन प्रशिक्षण देकर क्षमता और दक्षता भी बढ़ाना इन कार्यशाला का उद्देश्य है। आइआइएम इंदौर की फेलो डा. श्वेता गुप्ता बताती हैं कि सोशल मीडिया के युग में उचित एवं प्रामाणिक श्रोतों से सूचना लेकर लेखन में प्रयोग करना भी एक कला है। अप्रामाणिक श्रोतों के मध्य नए लेखकों को सिद्ध एवं सत्य संदर्भों का चयन करना सीखाना एवं उसके प्रयोग से लेखन को समृद्ध करना भी इन प्रयोगशालाओं का मुख्य उद्देश्य है। प्रशिक्षु छात्र इस विधा का प्रयोग करते हुए अपने लेखन का अभ्यास करते हैं और कोई समस्या के आने पर उसे दूर किया जाता है