सियासी घमासान थामने के लिए नया दांव:राजस्थान कैबिनेट में तीसरी बार विधानपरिषद का प्रस्ताव पारित, अब विधानसभा के जरिए लोकसभा में भेजा जाएगा

प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार से पहले सूबे की गहलाेत कैबिनेट ने बुधवार काे एक बड़ा सियासी फैसला लेते हुए विधानपरिषद के गठन के प्रस्ताव काे मंजूरी दे दी है। कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद अब यह प्रस्ताव विधानसभा के जरिए लोकसभा में भेजा जाएगा। सियासी तौर पर देखा जाए अगर विधान परिषद के गठन को मंजूरी मिल जाती है तो सरकार के मंत्रिमंडल का दायरा बढ़ जाता है क्योंकि विधान सभा और विधान परिषद के कुल सदस्यों के 15 प्रतिशत के बराबर सरकार मंत्री बना सकती है। 2008-2012 में भी प्रस्ताव भेजा था, केंद्र ने राय मांगी, 9 साल बाद राय दी विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव प्रदेश में पहली बार पारित नहीं हुआ है।
इससे पहले 2008 में तत्कालीन वसुंधरा सरकार ने और उसके बाद 2012 में गहलोत ने सरकार ने विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था। इसके बाद केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा 18 अप्रैल 2012 को विधानसभा में पारित हुए विधान परिषद के गठन के प्रस्ताव पर संसद की स्टैंडिंग कमेटी द्वारा दिए गए सुझावों के संदर्भ में राज्य सरकार की राय मांगी थी। उस वक्त केंद्र में यूपीए की सरकार थी लेकिन अब वहां एनडीए का शासन है। वहीं करीब 9 साल बाद राज्य सरकार इस मामले में अपनी राय भेज रही है।
मकसद सिर्फ सियासी क्योंकि एनडीए सरकार यह कदम उठाए, मुश्किल है
यह महज एक सियासी दांव ही नजर आ रहा है क्योंकि बीते 40 सालों में देश में कहीं पर भी विधान परिषद के गठन को मंजूरी नहीं दी गई है। इसके अलावा इसके गठन के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत से संशोधन पारित करना होता है। सिर्फ कांग्रेस शासित राज्य के लिए केंद्र इतना बड़ा कदम उठाएगा इसमें संशय है।
सरकार के फैसले पर राठौड़ का हमला
विधानपरिषद गठित करने के जिस प्रस्ताव पर साल 2012 में राय मांगी गई, अब भेजने का क्या तुक?
भाजपा के उप नेता राजेंद्र राठौड़ ने इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव सरकार ने अपनी खीज मिटाने के लिए पारित किया है। 2012 में जिस प्रस्ताव पर राज्य सरकार से राय मांगी गई थी उसे अब भेजने का क्या तुक है। संभावित असंतोष को दबाने के लिए गहलोत सरकार का कुत्सित प्रयास सफल नहीं होगा। बता दें कि राज्य सरकार पर लगातार कैबिनेट विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों का दबाव बनाया जा रहा है। ऐसे में दोनों गुट को संतुष्ट कर पाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है।
सियासी असंतोष की जड़- कैबिनेट विस्तार
गहलोत से 2 बार मिलकर सुलह का फाॅर्मूला लेकर दिल्ली लौटे माकन, पायलट गुट से मुलाकात नहीं
जयपुर| प्रदेश में कैबिनेट विस्तार व राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर सीएम अशोक गहलोत से मिलने आए राजस्थान कांग्रेस प्रभारी अजय माकन बुधवार को दिल्ली लौट गए। सूत्रों के मुताबिक दोनों में सहमति बन गई है। गहलोत का संदेश लेकर माकन आलाकमान से मिलेंगे और वे अगले हफ्ते फिर जयपुर आ सकते हैं।
सियासी जानकारों का कहना है कि कैबिनेट विस्तार इसी महीने हो सकता है क्योंकि इसी महीने विधानसभा सत्र बुलाया जा सकता है। माकन ने मंगलवार को ही साफ कर दिया था कि उनका दौरा कैबिनेट विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों पर चर्चा के लिए है। उन्होंने गहलोत से दो दौर की मुलाकात की। हालांकि, वे पायलट गुट के विधायकों से नहीं मिले। सूत्रों के मुताबिक आलाकमान ने भी कैबिनेट विस्तार को कह दिया है। हालांकि, पायलट समर्थकों का पोर्टफोलिया पूरी तरह गहलोत की मर्जी पर निर्भर करेगा।
सचिन पायलट बोले- कैबिनेट विस्तार पर माकन की बात को गंभीरता से लेना चाहिए
पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने भी मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर अजय माकन के बयान पर बुधवार को प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि माकन एआईसीसी प्रभारी हैं और हम सबको उनकी बात गंभीरता से लेनी चाहिए।
पायलट गुट के सोलंकी ने कहा- हक के लिए मानेसर जाना आत्महत्या है, तो बार-बार करेंगे
पायलट गुट के विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने कहा- हक की आवाज उठाने के लिए हम दिल्ली और मानेसर गए थे, अगर दिल्ली-मानेसर जाना आत्महत्या है, तो यह हम बार-बार करेंगे। अगर सुनवाई नहीं हुई तो हम फिर दिल्ली-मानेसर जाने को तैयार हैं। जिस तरह से किसान इंद्र देव का इंतजार करते हैं उसी तरह हम भी इंतजार कर रहे हैं, उम्मीद है हमारे वाले इंद्रदेव भी मेहरबान होंगे।