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सरकारी खर्च पर अपनी बेइज्जती कराना कोई हमारी सरकार से सीखे

हल्द्वानी। पैसे खर्च करके बेइज्जती कराना भला किस को पसंद होगा, लेकिन सरकार तो सरकार है। उसकी क्या इज्जत और क्या बेइज्जती। लेकिन जब खर्च किए जाने वाले पैसे आम जनता की जेब से जा रहे हों तो सवाल पूछन तो बनता है और वह भी बात जब अपने ही प्रदेश की ओर तो यह सवाल हर समझदार नागरिक के लिए अनिवार्य हो जाता है। बात ज्यादा नहीं महज चार दिन पुरानी है। यानि दस जुलाई की।

इस दिन प्रदेश के नए सीएम पुष्कर सिंह धामी के संदेश को जन जन तक पहुंचाने के लिए उना एक फुल पेज का विज्ञापन यहां ​के तमाम समाचार पत्रों में जारी किया गया। उत्तराखंड सूचना एवं लोक संपर्क विभाग द्वारा जनहित में जारी इस विज्ञापन के नीचे के आधे हिस्से में मुख्यमंत्री की फोटो के साथ उनका संदेश प्रकाशित किया गया था जिसमें कहा गया था कि कोरोना राज्य सरकार के कुशल प्रबंधन और लोगों के सहयोग से दूसरी लहर के बाद कोरोना के केस तेजी से कम हुए हैं। लेकिन अभी खतरा टला नहीं है। आगे भी सावधान रहने और कोविड नियमों का पालन करने की आवश्यकता है। इत्यादि…इत्यादि।

इस विज्ञापन के ऊपवर के आधे हिस्से में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर और ‘उत्तराखंड शासन के लोगों के साथ कोरोना से उत्तराखंड है सावधान, तेजी से चल रहा है टीकाकरण अभियान।’ स्लोगन बड़ा—बड़ा प्रकाशित किया गया था। निश्चित रूप से फुल पेज के इस विज्ञापनों को अखबारों में प्रकाशित कराने के लिए सरकार को लाखों रूपये चुकाने पड़े होंगे।

लेकिन जिन समाचारपत्रों में यह विज्ञापन प्रकाशित किए गए उन्हीं समाचार पत्रों में उसी दिन अंदर वैक्सीनेशन अभियान की जो खबरें छपीं वे साबित कर रही थी कि वैक्सीन की उपलब्धता के अभाव में प्रदेश में वैक्सीनेशन अभियान दम तोडत्र रहा है। यहां हम आपको कुछ समाचापत्रों की कटिंग दिखा रहे हैं लेकिन लगभग सभी समाचारपत्रों का लब्बोलुआब यही था। वजह भी साफ थी कि उत्तराखंड में वैक्सीन का संकट आठ या नौ जुलाई से शुरू हो गया था था जो अभी तक जारी है। ऐसे में अखबार जमीनी हकीकत पाठकों के सामने रखने का अपना धर्म कैसे छोड़ते सो उन्होंने इन समाचारों को प्राथमिकता के साथ प्रकाशित किया।

अब बात विज्ञापन या समाचार किसका प्रभाव पाठक के दिलो दिमाग पर अधिक पड़ता है इस सवाल की। एक नहीं कई सर्वेक्षणों से साबित हुआ है कि समाचारपत्रों में प्रकाशित विज्ञापन जब पाठक के सामने आते हैं तो इसे वह शत प्रतिशत सच नहीं मानता। लेकिन जब वहीं बात समाचार पत्र खबर के रूप में प्रकाशित करता है तो पाठक उसे 98 प्रतिशत सच मानता है। अब आप स्वयं कल्पना कीजिए कि प्रदेश के पाठकों पर इस विज्ञापन का प्रभाव ज्यादा पड़ा होगा या उससे कहीं छोटे आकार की खबरों का जिनमें सरकार के दावों की धज्जियां उड़ गई थी। इसके बाद से आज तक यानी चार दिन बाद तक समाचार वैक्सीनेशन की जमनी हकीकत पाठकों के समाने रखकर अपना फर्ज अदा कर रहे हैं लेकिन सरकार फिर भी नहीं मानी। सरकार ने दूसरे चरण में डिजिटल मीडिया को विज्ञापन जारी करके ‘ दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण, मुफ्त वैक्सीन …धन्यवाद मोदी जी ‘ के स्लोगन वाले विज्ञापन जारी कर दिए। जो अभी भी ​न्यूज पोर्टलों की शोभा व आमदनी दोनों बढ़ा रहे हैं। यहां भी न्यूज पोर्टल सरकारी स्तर पर वैक्सीन की अनुपलब्धता को लेकर लगातार समाचार प्रसारित करके समाज के प्रति अपना पत्रकारिता धर्म निभा रहे है। लेकिन इस उलटबासी के कारण सरकार की छवि पर जो दाग लग रहा है। उसे कैसे धोया जाएगा संभवत: सरकार को भी पता नहीं होगा।

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