मानसून की बेइमानी का नतीजा:मौसम विभाग का दावा था- 15 जून के बाद अच्छी बारिश होगी, किसानों ने बाेई धान, बखरने पड़े खेत

माैसम विभाग की फाेरकास्टिंग पर भराेसा करना किसानाें काे महंगा पड़ गया है। इटारसी के एक दर्जन से ज्यादा गांव में किसानाें काे सीडिल से धान की बाेवनी करने के बाद खेत बखरकर या ताे दूसरी बार बाेवनी करना पड़ रही है या फिर फसल बदलकर लगाना पड़ रही है। माैसम विभाग की फाॅरकास्टिंग के हिसाब से 15 जून से दाेनाें दिशाओं का मानसून एक्टिवेट हाेना था।
हाेशंगाबाद जिला भी ऑरंज अलर्ट में शामिल था। इसके चलते जून के अंतिम सप्ताह में किसानाें ने धान की बाेवनी की। हल्का पानी गिरने से धान का बीज जमीन के नीचे दब गया और अंकुरित नहीं हुआ। जाे अंकुरित हुआ वह धूप के कारण मुरझा गया। किसानों काे दोबारा बोवनी करनी पड़ रही है।
इन गांवाें में धान की फसल काफी खराब
तराेंदा, भट्टी, नयागांव, कलमेसरा, छीरपानी, तीखड़, जमानी, टांगना, पारछा, जुझारपुर, पथराेटा, दमदम, खटामा, पीपलढाना
इन गांवाें में धान की फसल काफी खराब
तराेंदा, भट्टी, नयागांव, कलमेसरा, छीरपानी, तीखड़, जमानी, टांगना, पारछा, जुझारपुर, पथराेटा, दमदम, खटामा, पीपलढाना
- छीरपानी के रामेश्वर मेहताे ने 3 एकड़ खेत में लगी धान की बढ़त सहीं नहीं हाेने के कारण खेत बखर दिया। लागत डूब गई है। अब दूसरी फसल के लिए खेत तैयार कर रहे हैं। बारिश नहीं होने से आर्थिक नुकसान हाे रहा है। समय खराब हुआ वह अलग।
- अर्पित रावत ने साेनासांवरी के 4 एकड़ खेत में सीडिल से 22 जून काे धान की बाेवनी की। बीज अंकुरित ही नहीं हुआ। जाे हुआ वह तेज धूप के कारण आड़ा पड़ गया। 40 हजार की लागत भी हाथ से गई। खरपतवार बढ़ने के कारण खेत काे बखरना पड़ा।
एक्सपर्ट व्यू- एस तिवारी कृषि विशेषज्ञ; पानी नहीं ताे धान नहीं
धान पानी की फसल है। सिंचित क्षेत्राें या निजी संसाधनाें की उपलब्धता वाले किसान राेपा पद्धति से धान लगाते हैं। जबकि सीडिल से लगी धान माैसम पर ही निर्भर रहती है। यदि समय पर बारिश ना हाे ताे बीज जर्मिनेट नहीं हाेता। हाे भी जाए ताे उत्पादन नहीं देता। बोवनी के 10 दिन में बीज अंकुरित हाे जाता है। इसी समय धान में पानी जरूरी है। पानी नहीं मिलने से खराब होती है