हिंदुस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था कोविड-19 के कारण जिस तरह बर्बाद हुई है इसे देखते हुए पूरी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए दीर्घकालिक प्रयास करने होंगे। हिंदुस्तान गांवों का देश है। आज भी लगभग पचहत्तर प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है। उनकी पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। यह सत्य है कि हिन्दुस्तान ने कृषि क्षेत्र में काफी कुछ विकास किया है।अन्न उत्पादन में हिन्दुस्तान काफी कुछ आत्म निर्भर हुआ है, लेकिन लागत एवं श्रम के हिसाब से किसानों को उनके उत्पादों का सही मूल्य नहीं मिल रहा है।
कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि, कभी ओलावृष्टि तो कभी झंझावातों एवं तूफानों के कारण उनकी फसलें एक झटके में बर्बाद हो जाती हैं। कभी जंगली जानवर तो कभी छुट्टा पशु उनकी फसलों को तहस-नहस कर देते हैं। वर्ष दर वर्ष कुछ क्षेत्रों में टिड्डों द्वारा फसलें बर्बाद हो जाती हैं। सरकारी खरीद के जो केन्द्र होते हैं वे इतनी दूर होते हैं कि किसानों को अपनी उपज को मजबूर होकर बिचौलियों के हाथों औने-पौने दामों पर बेचना पड़ता है ।इतना ही नहीं इन क्रय केन्द्रों पर जो कर्मचारी एवं अधिकारी होते हैं वे किसानों को इतना तंग करते हैं कि वे आजिज़ होकर बिचौलियों के हाथों कम दामों पर अपने गेहूं या धान या अन्य उत्पादों को घर के कामों को चलाने के लिए बेंच देते हैं ।
ये कुछ कारण हैं जो किसानों को कृषि कार्य छोड़ने को मजबूर कर रहे हैं । हिंदुस्तान का गाँव आज भी शिक्षा के क्षेत्र में काफी कुछ विकास नहीं किया है।उनके बच्चों की विशेषकर प्राथमिक शिक्षा उसी घिसी-पिटी व्यवस्था पर चल रही है। माध्यमिक शिक्षा भी बहुत बेहतर स्थिति में नहीं है।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित इन विद्यालयों में सभी प्रकार की सुविधाओं का घोर अभाव है। उन विद्यालयों में बच्चे आज भी टाट-पट्टी पर ही बैठने को मजबूर हैं। इन विद्यालयों में शिक्षकों का अभाव है। इन शिक्षकों से शिक्षण कार्य कम और गैरशिक्षण कार्य अधिक लिए जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे महाविद्यालय भी नहीं हैं। हिंदुस्तान में शायद ही कोई ग्रामीण विश्वविद्यालय होगा जहाँ ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए शिक्षा दी जाती हो। कहने को तो हिन्दुस्तान गांवों का देश है। लेकिन ग्रामीण विश्वविद्यालय नहीं हैं और न ही महिला विश्वविद्यालय। इसके अभाव में बहुत से होनहार बच्चे और बच्चियाँ इनके अभाव में अच्छी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं।
आज भी हिन्दुस्तान के गाँव-देहात एवं आदिवासी क्षेत्र सड़कों के अभाव को झेल रहे हैं। जो सड़के हैं भी तो बिल्कुल खस्ताहाल हैं। सड़कों के अभाव में कृषि उत्पादों को दूसरे बाजारों में ले जाकर किसान बेंच नहीं सकता है। रात-बिरात कोई गंभीर रूप से बीमार हो जाय तो इन सड़कों के अभाव में वह घर पर ही दम तोड़ देता है। स्वास्थ्य सेवाओं का आज भी हिन्दुस्तान के ग्रामीण इलाके तरस रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छे सुविधाओं से संपन्न अस्पतालों का अभाव है। इस कोविड-19 के काल में तो सब कुछ पोल खुल गया। आज भी अधिकांश गरीब महिलाएं घरों में ही बच्चों को जन्म देने को मजबूर हैं। ये गरीब महिलाएं एवं उनके बच्चे कुपोषण के शिकार होकर दम तोड़ देते हैं ।
ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक शुद्ध पेयजल की समस्या है। वैसे भी अनेक क्षेत्र पानी के अभाव से पीड़ित हैं। महाराष्ट्र का विदर्भ क्षेत्र हो उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़ एवं पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों में जल की घनघोर समस्या है। बिजली की अबाध आपूर्ति की समस्या आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में बनी हुई है ।
ग्रामीण विकास के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, पानी की व्यवस्था को चुस्त और दुरुस्त करना होगा । ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं को चलाने की जरूरत है। जब तक इन पाँच सुविधाओं से ग्रामीण क्षेत्रों को लैस नहीं किया जाएगा और अच्छी सड़कों का गाँव-गाँव तक जाल नहीं बिछाया जाएगा, शिक्षा सर्व सुलभ हो और ग्रामीण क्षेत्रों में इनके अच्छे तंत्र को विकसित नहीं किया जाएगा तब तक ग्रामीण विकास को नयी दिशा नहीं दी जा सकती है। ये सभी तंत्र जब मजबूत होंगे तभी गांवों से लोगों का पलायन रुकेगा। ग्रामीण क्षेत्र में ही स्वरोजगार या अन्य माध्यमों से युवाओं को रोजगार मुहैया कराने के लिए प्रयास किया जाए तो ठीक रहेगा। इन सब उपायों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी।