कांग्रेस जिलाध्यक्ष की प्रस्तावित नियुक्ति:पूर्व मंत्री राजेन्द्र चौधरी ने शांत पानी में कंकर उछाल पैदा की हलचल, आने लगे कई नाम सामने
प्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार के साथ ही कांग्रेस संगठन में फेरबदल व नियुक्तियों को लेकर हलचल तेज हो गई है। जोधपुर में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष के नाम को लेकर न केवल दवेदार बल्कि सभी कार्यकर्ता टकटकी लगा देख रहे है कि अशोक गहलोत के पिटारे में से किसका नाम सामने आता है। गहलोत हमेशा अपने पत्ते आसानी से खोलते नहीं है। जबकि कभी गहलोत के और वर्तमान में सचिन पायलट के खास पूर्व मंत्री व प्रदेश उपाध्यक्ष राजेन्द्र चौधरी ने कुछ नए नाम उछाल कर शांत पड़े पानी में कंकर फेंक दिया है। अब वे पानी में उठने वाली लहरों को देख रहे है।
जोधपुर शहर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद पर सईद अंसारी वर्ष 2005 से काबिज रहे। अब पार्टी नया अध्यक्ष तलाश रही है। अगले कुछ दिन में जिलाध्यक्ष की घोषणा होना तय है। ऐसे में पार्टी के लोगों की उत्सुकता बढ़ गई है कि गहलोत अपने घर में पार्टी की बागडोर किसे सौंपते है। इतना तय है कि जोधपुर में गहलोत जिसे पसंद करेंगे वहीं अध्यक्ष बनेगा।
इनका नाम है चर्चा में
अध्यक्ष पद के लिए जातिगत समीकरणों को देखते हुए ब्राह्मण लॉबी ने अपना दावा कर रखा है। उनकी तरफ से सुरेश व्यास व अजय त्रिवेदी का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। सुरेश व्यास 16 वर्ष तक युवक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहने के बाद 17 वर्ष से महासचिव है। वहीं अजय के पास भी संगठन का लंबा अनुभव है। पूर्व महापौर रामेश्वर दाधिच को भी गहलोत आगे कर सकते है। ओबीसी कोटे से यदि जिलाध्यक्ष बनाया जाता है तो गहलोत के खास माने जाने वाले रमेश बोराणा, शांतिलाल लिम्बा व अनिल टाटिया का नाम भी लिया जा रहा है। इसके अलावा कई और भी दावेदार है।
चौधरी ने उछाला सुनील व्यास का नाम
पूर्व मंत्री राजेन्द्र चौधरी ने यकायक लंबे अरसे से पार्षद सुनील व्यास का नाम आगे कर दिया। उनका कहना है कि इस बार यह पद ब्राह्मण को दिया जाना चाहिये। ऐसे में सुनील व्यास के नाम में कोई बुराई नहीं है। व्यास विषम हालात में हर बार पार्षद चुनाव जीतते रहे है। साथ ही ब्लॉक अध्यक्ष के रूप में संगठन चलाने का अनुभव भी है। व्यास का नाम आगे करते ही कांग्रेस में हलचल बढ़ गई। चौधरी भी यहीं चाहते थे कि कुछ हलचल बढ़े।
अब नहीं बनती गहलोत और चौधरी में
गहलोत व चौधरी के बीच बरसों पुरानी दोस्ती रही। छात्र राजनीति से दोनों की दोस्ती चर्चा में रही। वर्ष 1998 में पहली बार मुख्यमंत्री बने गहलोत ने चौधरी को मंत्री बनाया। बाद में किसी मसले पर दोनों के रिश्तों में खटास पैदा हो गई। इसके बाद चौधरी का राजनीति में कद सिमटने लग गया। उनका चुनाव क्षेत्र बिलाड़ा आरक्षित सीट हो गई। चौधरी नया ठिकाना तलाशते रहे, लेकिन गहलोत का सपोर्ट नहीं मिलने के कारण कहीं पांव जमाने का मौका तक नहीं मिल पाया। ऐसे में चौधरी ने प्रदेश में तेजी से उभर रहे सचिन पायलट का हाथ थाम लिया। गत विधानसभा चुनाव में चौधरी ने ही टोंक में पायलट के चुनाव की बागडोर थाम रखी थी। हालांकि दोनों खुलकर एक-दूसरे के खिलाफ कुछ नहीं बोलते, लेकिन दोनों के बीच की तल्खी जगजाहिर है।