लंका विजय के अहंकार में आकर जामवंत ने कृष्ण से किया युद्ध, जानिए किस्सा
सतयुग में दवासुर संग्राम में देवताओं की सहायता के लिए जन्में जामवंत ने श्रीराम की सेना में अपनी अहम भूमिका निभाई. रावण के साथ युद्ध में मिली जीत का अहंकार राम सेना के अग्रि पुत्र सेनापति जामवंत के सिर चढऩा शुरू हो गया था. युद्ध विराम के बाद जामवंत द्वारा श्री राम से कहे शब्द उनके घमंड को प्रकट कर गए. पौराणिक कथाओं के अनुसार लंका विजय के बाद श्रीराम अयोध्या लौटने लगे तो जामवंतजी ने कहा कि प्रभु युद्ध में सबको लडऩे का अवसर मिला, लेकिन मुझे वीरता दिखाने का अवसर नहीं मिल सका. पसीना तक नहीं आया. इस पर प्रभु ने उनकी भावनाओं को भांपते हुए वचन दिया कि द्वापर युग में वह उनसे खुद युद्ध करने कृष्ण अवतार में आएंगे.
कृष्णजी से हार के बाद बनाया दामाद
मद में कहे गए शब्द के फलस्वरूप जामवंत को द्वापर युग में कृष्ण से युद्ध करना पड़ा. इसके लिए उन्हें पछतावा भी हुआ. जामवन्तजी को अमर माना जाता है. पौराणिक कथा अनुसार स्यमंतक मणि की चोरी का आरोप श्री कृष्ण पर लगा था, जो जामवंत के पास उनकी गुफा में थी. खुद को निर्दोष सिद्ध करने के लिए श्रीकृष्ण मणि वापस लेने जामवंत गुफा में पहुंचे तो दोनों के बीच युद्ध शुरू हो गया. युद्ध में हार पर जामवंत ने श्रीराम का ध्यान किया और कृष्ण को राम रूप में आना पड़ा. राम स्वरूप के दर्शन कर जामवंत को गलती का अहसास हुआ. उन्होंने श्रीकृष्णजी से भूल के लिए क्षमा मांगी. मणि लौटाने के साथ जामवंत ने प्रभु से अपनी बेटी जाम्बवती से विवाह का आग्रह किया. विवाह के बाद जाम्बवती ने पुत्र साम्ब को जन्म दिया. जो अपने ही कुल के नाश का कारण बन गया.
राम की रीछ सेना के मुखिया थे जामवंत
माता सीता को रावण से छुड़ाने के लिए जब रामजी ने लंका पर चढ़ाई की तो उनकी सेना में वानर, रीछ और जंगलों के दूसरे जीव भी थे. इसमें जामवंतजी को रीछ सेना की अगुवाई सौंपी गई, लेकिन पौराणिक कथाओं के अनुसार पूरे युद्ध काल में जामवंतजी को कोई शस्त्र नहीं उठाना पड़ा, जिसकी इच्छा उन्होंने युद्ध जीतने के बाद श्रीराम के सामने जताई.