आठ माह में तीन शावक सहित 13 बाघों की मौत, चार तेंदुए भी खोए
उमरिया। प्रदेश के वन्य प्राणी प्रेमी अगले महीने शुरू होने वाली गणना के परिणामों में मध्यप्रदेश को एक बार फिर टाइगर स्टेट बनता हुआ देखना चाहते हैं लेकिन बांधवगढ़ में जिस तरह से बाघों की मौत हो रही है उसे देखते हुए लगता नहीं है कि लोगों का यह सपना पूरा हो सकेगा। इस साल अभी तक बांधवगढ़ में दो शावकों सहित कुल 11 बाघों की मौत हो चुकी है जबकि जिले में तीन शावकों सहित 13 बाघ मौत का निवाला बन चुके हैं। इस साल अभी तक चार तेंदुए भी बांधवगढ़ खो चुका है। शर्म की बात तो यह है कि इनमें से कम से कम पांच बाघ लापरवाह अधिकारियों के कारण शिकारियों की वजह से मौत का शिकार हो गए।
गले में फंदा डालकर किया शिकारः दो दिन पहले मानपुर वन परिक्षेत्र के दमना बीट में बाघिन टी-32 का शव एक कुएं में तैरता हुआ पाया गया था। इस बाघिन का शिकार गले में फंदा डालकर किया गया था। बाद में घटना को छिपाने के लिए बोरों में पत्थर भरकर और बाघिन के शव से बांधकर उसे कुएं में डाल दिया गया था। जब कुएं में से बदबू आने लगी तो गांव के लोगों ने अंदर बाघिन का शव देखा और इसकी जानकारी वन विभाग के अधिकारियों को दी। इस घटना के बारे में जब पत्रकारों ने मानपुर रेंजर से पुष्टि करने की कोशिश की तो वे किसी भी तरह की जानकारी देने की वजह यह जानने में जुट गए कि आखिर बाघिन की मौत की खबर बाहर कैसे पहुंच गई। इतना ध्यान अगर उन्होंने जंगल की गश्त पर दिया होता तो शायद ऐसी घटना ही नहीं होती।
अगस्त में तीसरी घटनाः इसी महीने में तीन बाघों की मौत हो चुकी है। सबसे पहली मौत 16 अगस्त को हुई थी जो कि शिकार का ही परिणाम था। बाघिन का एक पैर शिकारी काट कर ले गए थे। इसके बाद 27 अगस्त को और फिर 29 अगस्त को तीसरी घटना हुई। मार्च और अप्रेल में भी दो-दो बाघों की मौत एक ही महीने में हुई है। अप्रेल में तो दो बाघों के साथ एक तेंदुए की भी मौत हो गई थी। दरअसल यह आंकड़े बांधवगढ़ के अधिकारियों की नकारेपन के हैं।
साफ-साफ शिकारः इस साल मानपुर वन परिक्षेत्र में 14 मई को एक बाघ का शव जमीन में दबा पाया गया था जो साफ-साफ शिकार का परिणाम था। इसी महीने 16 अगस्त को जिस बाघिन का शव पाया गया था उसका एक पैर गायब था और यह घटना भी शिकार का ही परिणाम थी। दो दिन पहले 29 अगस्त को कुएं में मिला बाघिन 32 का शव भी शिकार का ही परिणाम है। पिछले साल अक्टूर महीने की 17 तारीख को परासी बीट के महामन गांव के पास सोलो बाघिन 42 और उसके दो शावकों का साफ तौर पर शिकार किया गया है। बाघिन के दो शावक अभी भी लापता हैं। पिछले साल 15 नवंबर को बांधवगढ़ के पनपथा रेंज से लगे शहडोल जिले के ब्यौहारी रेंज में जमीन में दबा मिला बाघ का शव भी शिकार का ही परिणाम था। इससे पहले पिछले ही साल 22 अप्रेल को पनपथा रेंज में ही कटनी जिले की तरफ एक बाघ का शव पाया गया था जिसे मारने के बाद झाड़ियों में छिपा दिया गया था। यह भी शिकार का ही परिणाम था लेकिन इसके बाद भी बांधवगढ़ प्रबंधन हमेशा ढीला बना रहा।
पिछले साल से कहर जारीः बांधवगढ़ में पिछले पिछले साल यानी 2021 में 8 महीने के अंदर 11 बाघ, तीन तेंदुए और दो हाथियों की मौत हो गई थी। पिछले साल सिर्फ तीन बार में सात बाघों की मौत हो गई थी। इसमें छह शावक शामिल हैं। दो बार एक साथ दो-दो शावकों की मौत हुई जबकि तीसरी बार दो शावक और मां सोलो बाघिन 42 भी साथ में मौत का शिकार हो गई। यह घटनाएं 14 जून, 10 अक्टूबर और 17 अक्टूबर को हुईं। 10 और 17 अक्टूबर के बीच महज एक सप्ताह में चार शावक और एक बाघिन की मौत हो गई थी। इसके बाद भी बांधवगढ़ के आला अधिकारियों को किसी भी प्रकार का संकोच नहीं हुआ और वे बाघों की मौतों को जंगल की सामान्य घटनाएं बताते रहे।
खुफिया तंत्र बेकारः बीते पौने दो सालों में 8 बाघों का का शिकार बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के अंदर हुआ है। जबकि जिले में सात तेंदुओं का शिकार अलग-अलग तरीकों से किया गया है। इसके बावजूद एंटी पोचिंग टीम का कहीं पता नहीं चला। इस टीम के खुफिया तंत्र की कमजोरी ही सामने आई। जबकि इसके लिए अच्छा खासा पैसा खर्च किया जाता है। वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए काम करने वाली एक असफल संस्था डब्ल्यूपीएसआई ने पिछले साल शिकारियों को पकड़वाने पर 25000 का इनाम घोषित किया था।