बाघिन गर्भवती है या नहीं, यह बताएगी जांच किट, अब नहीं करना होगा बेहोश
जबलपुर । बाघिन और शेरनी गर्भवती है या नहीं इस बात का पता लगाने के लिए अभी तक बाघिन और शेरनी को बेहोश किया जाता था। लेकिन अब ऐसा करने की जरूरत नहीं है। नानाजी देशमुुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने एक ऐसी किट का निर्माण किया है जिससे बाघिन या शेरनी के मल-मूत्र की जांच करके उसके गर्भवती होने का पता लगाया जा सकेगा। इसके के लिए विज्ञानी मुकुंदपुर टाइगर सफारी रीवा और वन विभाग भोपाल में किट का प्रयोग करेंगे और जानेंगे कि परिणाम क्या आते हैं।
नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एसपी तिवारी ने बताया कि अभी यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ है। मध्यप्रदेश क्योंकि टाइगर स्टेट है तो टाइगर की संख्या को बढ़ाने के लिए यह किट बहुत उपयोगी साबित हो सकती है।
यही वजह है कि इस प्रोजेक्ट के लिए 15 लाख रुपए आवंटित किए गए हैं। जिन्हें कहां और कैसे उपयोग करना है उसकी भी रूपरेखा बनाई जा रही है। यह अपनी तरह का देश का पहला प्रोजेक्ट है। अगर रीवा और भोपाल में जांच किट को सफलता मिलती है तब इसका उपयोग देश भर में किया जा सकेगा।
इस प्रोजेक्ट के प्रमुख अन्वेषक डॉ. आदित्य मिश्रा ने बताया कि एक बाघिन का गर्भावस्था का समय 100 से लेकर 105 दिन का होता है। 25 दिनों तक यह पता लगाना कठिन होता है कि बाघिन गर्भवती है या नहीं। लेकिन इस किट के उपयोग से 25वें दिन तक बाघिन के गर्भवती होने की जानकारी मिल जाएगी। किट में मल-मूत्र के नमूने लेकर उनकी एंजाइम इम्युनो तकनीक के माध्यम से जांच होगी। जिससे यह पता चल सकेगा कि बाघिन गर्भवती है या नहीं। यदि टेस्ट पॉजिटिव आता है अर्थात बाघिन गर्भवती होती है तब गर्भावस्था के बाकी के बचे दिनों में बाघिन को उचित पोषण आहार दिया जा सकेगा। अच्छे से देखरेख हो सकेगी। जिससे कि बाघिन के साथ-साथ उनके भ्रूण को भी स्वस्थ रखा जा सकता है।
बाघिन का गर्भावस्था के दौरान विशेष ध्यान देना गर्भस्थ शावक के स्वस्थ होने के लिए भी आवश्यक है। ऐसा होने से एक स्वस्थ शावक का जन्म होगा और टाइगर की संख्या में वृद्धि हो सकेगी। डॉ. मिश्रा ने बताया कि यह प्रोजेक्ट वर्ष 2021 से वर्ष 2023 तक के लिए मिला है। जिसमें उनके साथ सह अन्वेषक के रूप में डॉ. सत्यनिधि, डॉ. अमोल रोकड़े और डॉ. दीपिका काम कर रहीं हैं।