बांसवाड़ा में मिला दुर्लभ गिरगिट!:क्षेत्र में दिखा अफ्रीका में पाया जाने वाला चेक कैमेलियन लिजर्ड, 360 डिग्री पर घुमाता है आंखें
अफ्रीका में मिलने वाला दुर्लभ चेक कैमेलियन लिजर्ड (गिरगिट) बांसवाड़ा शहर की पैराफेरी में स्थित भंडारिया हनुमान मंदिर क्षेत्र में देखने को मिला है। यहां सामान्यत: दिखने वाले गिरगिट की अपेक्षा लंबाई में छोटा होता है, जो शरीर की अपेक्षा बड़ी आंखों से 360 डिग्री एंगल पर देखता है।
सरीसृप वर्ग के इस गिरगिट की कुछ विशेषताएं कुत्ते से मिलती हैं, जो खुद को संकट में देख पूंछ को नीचे की ओर चकरीनुमा गोल कर लेता है। मंदिर परिसर में पक्षियों के लिए लगाए हुए परिंडे पर बैठे हुए इस दुर्लभ गिरगिट को पर्यावरण प्रेमी ग्रुप राहुल रावत और राहुल सेठिया ने शाम के समय देखा। गिरगिट की एक आदत होती है कि वह सूर्यास्त के समय सुस्त होने लगता है।
विशेष गिरगिट की ऐसी है शारीरिक बनावट
इस गिरगिट की आंखों की बनावट लेंस नुमा दिखती है, जिसकी फोकस क्षमता काफी अच्छी होती है। इसकी कुछ प्रजातियां दक्षिणी यूरोप, दक्षिण एशिया और ऑस्ट्रेलिया में भी मिलती हैं। इसकी रफ्तार बहुत कम है। इसके न दौड़ पाने की एक खास वजह यह है कि इसके हाथ व पैर की पांचों अंगुलियां जुड़ी हुई हैं। इंडियन कैमेलियन के शरीर पर पीले धब्बे नुमा हरा रंग और बड़ी-बड़ी सर्चलाइट नुमा आंखें होती हैं। इसकी जीभ की लंबाई 4 से 5 इंच तक होती है जो जरूरत पड़ने पर और बड़ी हो सकती है। यह मुख गुहा में स्प्रिंग की तरह गोल बनाकर रखी जाती है। अग्रभाग कूपनुमा होने के साथ जीभ पर लिलिसा पदार्थ लगा रहता है, जो कीट-पंतंगे पकड़ने के लिए मददगार रहता है।
चुटकी में रंग बदलने की क्षमता रखने वाले इंडियन कैमेलियन की पूंछ भी उतनी ही लंबी होती है, जो स्प्रिंग की तरह गोल रहती है। इसकी मदद से यह टहनियां पकड़कर लटकते हुए चलता-फिरता है। इस लिहाज से इसके शरीर व पूंछ की लंबाई कभी-कभी 14 से 16 इंच तक पहुंच जाती है। इसके मुंह में न तो विष ग्रंथियां होती हैं और न ही इसमें अंश मात्र जहर होता है। भारत में यह विलुप्ति की कगार पर है।
उल्लू, गोह और बड़े सांप दुश्मन
जीव विज्ञान के जानकारों की राय में गिरगिट रात के समय पेड़ों पर ही रहते हैं। सूर्योदय के साथ सुबह करीब 10 बजे तक गिरगिट खाने की तलाश करता है। इसके बाद शाम 4 बजे तक गिरगिट सुस्ताता है। भूखा होने की स्थिति में आराम समय में कुछ परिवर्तन संभव है। शाम 4 बजे से गिरगिट फिर एक बार भोजन की तलाश शुरू करता है। सूर्यास्त के कुछ मिनटों पहले गिरगिट की चाल धीमी हो जाती है। अंधेरा होने पर गिरगिट वृक्ष की ऊंची और नीचे की ओर झुकी हुई पतली शाखा में चपटा होकर सोता है। गोह, बड़े सांप और उल्लू गिरगिट के खास दुश्मन होते हैं। वैसे, गिरगिट आलसी और शांतिप्रिय होता है।
18 डिग्री से नीचे तापमान सहन नहीं कर पाता गिरगिट
सर्दी के मौसम में गिरगिट दीवारों, चट्टानों की दरारों में, पेड़ के खोखले हिस्से या घास-फूस में छिपकर समय बिताता है। कारण कि 18 डिग्री से नीचे के तापमान को गिरगिट सहन नहीं कर पाता है। वहीं 10 डिग्री से तापमान के नीचे आते ही यह बिल्कुल निष्क्रिय हो जाता है। कहते हैं 6 डिग्री तापमान में यह बिल्कुल अधमरा सा एक जगह पड़ा रहता है। जैसे-जैसे पारा कम होता है, वैसे वैसे यह वापस से फुर्तिला हो जाता है।