आइआइटी रुड़की ने प्रो. अरुण के. शुक्ला को दिया खोसला राष्ट्रीय पुरस्कार-2021
रुड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की (आइआइटी रुड़की) की ओर से आइआइटी कानपुर के प्रोफेसर अरुण के. शुक्ला को खोसला राष्ट्रीय पुरस्कार-2021 (विज्ञान) से सम्मानित किया गया है। आइआइटी रुड़की के बीएसबीआइ विभाग के आडिटोरियम में उन्हें यह पुरस्कार संस्थान के निदेशक प्रोफेसर अजीत के. चतुर्वेदी ने दिया।
प्रो. शुक्ला को यह पुरस्कार जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) की संरचना कार्य और माड्यूलेशन को समझने में दिए गए उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया है। प्रोफेसर अरुण के शुक्ला ने शोध के निष्कर्षों को स्पष्ट करते हुए कहा जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) लगभग हर शारीरिक प्रक्रिया में जटिल रूप से शामिल होते हैं
फिलहाल उपलब्ध दवाओं में से लगभग आधी दवाएं इन रिसेप्टर्स के माध्यम से ही अपना चिकित्सीय प्रभाव डालती हैं। शोध में उन्होंने इस बात को स्पष्ट किया है कि चिकित्सकीय रूप से निर्धारित दवाएं कैसे रोगों के साथ परस्पर क्रिया करती हैं और मानव शरीर में उनके (सजातीय) काग्नेट रिसेप्टर्स के कार्य को नियंत्रित करती हैं।
उन्होंने बताया कि पहले अनप्रीशीऐटिड मेकनिज्म की भी खोज की है, जिनका उपयोग जीपीसीआर कोशिकाओं के बाहर की जानकारी प्राप्त करने के लिए करते हैं और संदेश को सेल मेम्ब्रेन में प्रसारित करते हैं
उन्होंने कहा कि अभी हाल ही में एंटीबाडी के टुकड़े (फ्रैगमेंट्स) जैसे सिंथेटिक प्रोटीन तैयार किए हैं, जिनका उपयोग जीपीसीआर एक्टिवेशन और ट्रैफिकिंग को मानिटर करने के लिए किया जा सकता है।
पुरस्कार प्रदान करते हुए संस्थान के निदेशक प्रो. अजीत के चतुर्वेदी ने कहा कि प्रोफेसर अरुण कुमार शुक्ला देश के सबसे प्रतिभाशाली युवा वैज्ञानिकों में से एक है।
उन्होंने कोशिकाओं की सतह पर स्थित प्रोटीन के सबसे बड़े वर्ग जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) की संरचना, कार्य और माड्यूलेशन को समझने के लिए अपने व्यापक शोध के साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। उनके शोध से कई मानव रोगों के इलाज के लिए न्यूनतम दुष्प्रभावों के साथ नावेल थेराप्यूटिक्स को विकसित करने में मदद मिलेगी।