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जब प्रधानमंत्री नेहरु काफल खाने आए थे देवभूमि

देहरादून।  चैत और बैसाख के महीने में देवभूमि में उगने वाले काफल  के कई  लोग मुरीद हैं। भारत के पहले प्रधानमंत्री इस औषधीय फल का स्वाद चखने के लिए अपने दौर पर देवभूमि आए थे और इसका स्वाद चखा था। नेहरू खाफल के स्वाद के मुरीद हो गए थे। काफल के पेड़ ठंडी जलवायु में पाया जाता हैं। काफल का वानस्पतिक नाम मेरिका एस्कुलाटा है। देश के विभिन्न इलाकों में इसे भिन्न नामों से जाना जाता है।  संस्कृत में कट्फल, सोमवल्क , हिन्दी में कायफर, कायफल, काफल, उर्दू में कायफल कहा जाता है। यह उत्तरी भारत, दक्षिणी भूटान और नेपाल की पहाड़ियों का मूल निवासी माना जाता है और इन जगहों में बहुतायत में पाया जाता है। लगातार जंगलों में लग रहे आग से रसीले, खट्टे और मीठे औषधीय स्वाद से भरपूर इस फल के स्वाद को  कम कर दिया है और अब इस औषधीय पेड़ पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। चैत के महीने में जब काफल पक कर तैयार होता है तो एक चिड़िया ‘काफल पाको कहती हुई सुनाई देती है। जंगलों में पाया जाने वाले काफल के नाम में ही  औषधीय गुण छुपा हुआ है। काफल यानि कफ और वात को हरने वाला फल माना जाता है । काफल के फल की खासियत ये होती है कि यह गरमी से सिकुड़ जाता है और ठंड होने पर वह अपने वास्तविक रूप में लौट आता है।  भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू खासतौर पर काफल खाने के लिए उत्तराखंड दौरे पर आए थे।  कहा जाता है कि नेहरू को काफल बेहद पसंद आया था। काफल कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है। साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। काफल फल के बारे में कहा जाता है कि सदियों पहले  पहले देवभूमि एक गांव में एक गरीब महिला अपने बेटी के साथ रहती थी।  वह खेतीबाड़ी कर महिला अपने परिवार का गुजारा किया करती थी। एक दिन महिला जंगल से काफी काफल तोड़ घर लाई और टोकरी में रखकर खेत में काम करने चली गई। महिला ने काफल की रखवाली के लिए बेटी को घर पर छोड़ दिया। महिला ने बेटी से काफल न खाने को कहा।  काफल की रखवाली करते-करते बेटी गहरी नींद में सो गई और गर्मी के चलते काफल सूख गए। जब महिला घर वापस लौटी तो टोकरी में उसे काफल कम दिखे। जिस पर महिला ने समझा कि उसकी बेटी ने काफल खा लिये। गुस्से में आकर महिला ने  बेटी को इतना पीटा की बेटी की  उसकी मौत हो गई। जब शाम को मौसम ठंडा हुआ तो काफल फिर से बड़े हो गए जिसके बाद महिला को काफल  अधिक दिखाई दिये। उसको पूरा यकीन हो गया कि बेटी ने काफल नहीं खाए हैं, जिसके बाद महिला को अपने किए पर काफी पछतावा हुआ और बेटी के वियोग में महिला ने भी अपने प्राण त्याग दिए। कहा जाता है कि मां बेटी ने बाद में चिड़िया के रूप में जन्म लिया। अगले जन्म में बेटी चिड़िया के रूप में जन्म लिया और कहती है कि काफल पाको ,मैनि चाखो यानी काफल पक गए हैं, लेकिन मैंने नहीं चखे। वहीं, लड़की की दूसी चिड़िया के रूप में जन्म हुआ।  चिड़िया रुपी माँ  बेटी से कहती है (पुर पुतै पुर पुर) कहती हैं। यानी कि पूरे हैं बेटी पूरे हैं। काफल की ये कहानी उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में काफी प्रचलित है। स्वादिष्ट होने के साथ ही काफल को आयुर्वेद में इसे कई बीमारियों की अचूक दवा बताई गई है। आयुर्वेद में काफल को भूख की अचूक दवा बताया गया है। साथ ही मधुमेह रोगियों के लिए भी यह रामबाण है। इसके फलों में एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के होते हैं, जिनसे शरीर में ऑक्सीडेटिव तनाव कम होता है और दिल सहित कैंसर एवं स्ट्रोक होने की संभावना कम हो जाती है। वहीं ये पेड़ अनेक प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर है। इसकी छाल जहां विभिन्न औषधियों में प्रयोग किया जाता है। वहीं, मानसिक बीमारी, अस्थमा, डायरिया, जुकाम, दस्त, आंख की बीमारी, मूत्र और त्वचा रोगों के साथ ही कैंसर जैसे असाध्य रोगों के इलाज में भी काफल उपयोग में लाया जाता है। इसके साथ ही।  चरक संहिता में भी इसके अनेक गुणकारी लाभों के बारे में वर्णन है। काफल के छाल, फल, बीज, फूल सभी का इस्तेमाल आयुर्विज्ञान में किया जाता है। काफल सांस संबंधी समस्याओं, डायबिटीज, पाइल्स, मोटापा, सूजन, जलन, मुंह में छाले, मूत्रदोष, बुखार, अपच, शुक्राणु  वृद्धि के लिए फायदेमंद और दर्द निवारण में उत्तम  माना गया है।  काफल  सिरदर्द ,रतौंधी, आँख में दर्द आदि।‌ काफल से बना काजल इन विकारों को दूर करने में उपयोगी है। नाक संबंधी समस्याओं से निजात के लिए भी काफल का प्रयोग किया जाता है। कान के दर्द , खांसी-जुखाम दांत दर्द से भी निजात मिलता है। दस्त से राहत के लिए काफल के चूर्ण को शहद‌ के मिलाकर खाने से से दस्त में लाभ मिलेगा। साथ ही काफल का पेस्ट मस्सों पर लगाने से तुरन्त आराम मिलता है। काफल छाल के तेल का प्रयोग करने नपुंसकता दूर होती है। काफल चूर्ण को एक चुटकी नमक के साथ सेवन करने से गैस से उपजे पेट में दर्द से लाभ मिलता है।  काफल के तेल को शरीर पर मलने से पक्षाघात (लकवा) में भी लाभ मिलता है। काफल चूर्ण में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर  शहद के साथ चाटने से बुखार में राहत मिलता है। काफल चूर्ण कि पानी में पीसकर सूजन पर लगाने से सूजन में राहत मिलती है। औषधीय गुणों से भरपूर काफल  देहरादून के बाजार में 400 रुपये किलो बिक रहा है।

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