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मोरबी पुल हादसे का सबक

गुजरात के मोरबी में केबल पुल टूटने से लगभग डेढ़ सौ लोगों की दुखद मृत्यु हो गई। बताया जा रहा है की यह पुल लगभग 150 वर्ष पुराना था और लंबे समय से बंद था। पुल की मरम्मत का काम नगर निगम ने अजंता ओरेवा कंपनी को दिया, जिसने बिना नगरपालिका को सूचित किए पुल 26 अक्टूबर को जनता के लिए खोल दिया। पुल पर प्रवेश टिकट से था जिसको इस कंपनी के लोग संचालित कर रहे थे। प्रश्न है कि जब पुल की क्षमता 100 लोगों की थी तो किस प्रकार तीन चार सौ लोगों को पुल पर जाने दिया गया ? यह एक लापरवाही नहीं बल्कि जानबूझकर लोगों को मौत के मुंह में धकेलने वाला काम ओरेवा कंपनी ने किया। य़ह लोगों की उसी प्रकार सामूहिक हत्या है जिस प्रकार दिल्ली के सिनेमा  उपहार अग्निकांड में हुई थी।

हादसे के बाद पूरा शासन-प्रशासन, मंत्रीगण मौके पर पहुंचे और बचाव कार्य में लग गए। सेना, वायुसेना, नौसेना को भी बचाव कार्य में लगा दिया गया, क्योंकि य़ह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य का मामला था और हादसे के समय मोदी जी गुजरात में उपस्थित थे।
सवाल य़ह है कि हमारा शासन प्रशासन हमेशा दुर्घटना के बाद ही क्यों जागता है? क्या य़ह बचाव कार्य आग लगने पर कुआं खोदने जैसा नहीं है। 26 से 30 तारीख तक क्या नगर निगम प्रशासन को यह जानकारी नहीं हुई कि पुल को खोल दिया गया है ? जबकि कंपनी के अधिकारियों ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके 26 अक्टूबर से पुल को खोले जाने की घोषणा की थी।  तब नगर निगम प्रशासन अनजान कैसे बन रहा है ? अपने बचाव में नगर निगम के अधिकारियों का यह कहना कि हमने तो फिटनेस प्रमाण पत्र भी नहीं दिया था बेमानी लगता है। यह तय है इसमें नगर निगम प्रशासन के अधिकारियों की मिली भगत रही। कंपनी के साथ ही नगर निगम अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
हमारे देश में आज भी लगभग डेढ़ सौ से 200 वर्ष पुराने या इससे भी ज्यादा पुराने हजारों की संख्या में छोटे बड़े पुल मौजूद हैं, जो कि अंग्रेजों के जमाने में बनाए गए या तत्कालीन पुराने राजाओं के द्वारा बनवाए गए। एक गांव से दूसरे गांव या गांव से शहर या एक शहर से दूसरे शहर जाते हुए अगर हम सड़कों पर ध्यान दें तो इस तरह के हजारों पुल हमें दिखाई दे जाएंगे। ये सभी जीर्ण शीर्ण अवस्था में है और इन पुलों पर हादसे होते रहते हैं पर बड़ा नुकसान ना होने के कारण खबर नहीं बन पाते। पर इन पुलों पर कभी भी हादसा हो सकता है।
बरसात के दिनों में आए दिन टेलीविजन पर भी ऐसी खबरें दिखाई जाती है कि गांव के लोग या स्कूल के बच्चे पानी में तैर कर गांव में एक किनारे से दूसरे किनारे जा रहे हैं। इससे पता लगता है कि शासन प्रशासन के अधिकारी या स्थानीय नेताओं को चाहे किसी भी पार्टी के हो जनता के हितों से कोई सरोकार नहीं है। सब अपने पेट भरने में लगे हुए हैं। कुछ दिन पहले टेलीविजन में दिखाया जा रहा था कि मध्य प्रदेश के एक गांव में बरसात के मौसम में बच्चे पानी में डूब कर अपने स्कूल जा रहे थे।
क्या कारण है कि आजादी के 75 वर्षों के बाद भी हम अभी भी अंग्रेजों के बनाए हुए टूटे-फूटे पुलों सहारे के जनता को छोड़े हुए हैं ? क्यों नहीं हमारी सरकारें, शासन-प्रशासन पुराने पुलों की जगह अब तक नए पुल बना पाया? सड़कों और पुलों के नाम पर लाखों करोड़ों रुपया कहां खर्च किया जा रहा है ? सरकार को चाहिए कि मोरबी पुल हादसे से सबक ले और पूरे देश में जिला स्तर पर समितियां गठित कर सभी पुराने पुलों का छोटा हो या बड़ा सर्वे करवाये। उनकी मरम्मत अगर संभव हो तो करें अन्यथा उनके स्थान पर नए पुलों के निर्माण की व्यवस्था करें। जरूरत है पूरे देश के सभी प्राचीन जीर्ण शीर्ण पुलों को तोड़कर उनकी जगह नए पुल बनाने की जिससे आमजन की जान की सुरक्षा की जा सके।
(पूर्व उपनिदेशक, रक्षा मंत्रालय मेरठ कैंट।)

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