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बंजर भूमि में हरियाली लौटाने के साथ ही आर्थिकी संवारने में सक्षम है सगंध खेती

देहरादून। कोरोनाकाल में आर्थिकी और पारिस्थितिकी के मध्य समन्वय के महत्व को सभी ने जाना व समझा है। पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह यहां के लिए आवश्यक है। सरकार भी इस पर जोर दे रही है। यानी, पर्यावरणीय विषयों को ध्यान रखते हुए आर्थिकी संवारने की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं। इस कड़ी में सगंध खेती बड़े विकल्प के रूप में सामने आई है, जिसे अब व्यापक रूप देने की तैयारी है। यह ऐसी फसलें हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी अच्छी आय देने में सक्षम हैं और इन्हें पारंपरिक फसलों के साथ भी किया जा सकता है। यही नहीं, बंजर हो चुकी भूमि में भी सगंध खेती से हरियाली लौटाने साथ ही पर्यावरणीय पहलुओं का भी समाधान किया जा सकता है।

उत्तराखंड में खेती की तस्वीर देखें तो यह अनेक झंझावत से जूझ रही है। पलायन, मौसम की बेरुखी के साथ ही वन्यजीवों से फसल क्षति समेत अन्य कारणों के चलते राज्य में विशेषकर पर्वतीय क्षेत्र में खेती सिमट रही है। सरकारी आंकड़ों देखें तो राज्य गठन के बाद से अब तक 72 हजार हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि बंजर में तब्दील हुई है। यद्यपि, गैर आधिकारिक आंकड़े इसे एक लाख हेक्टेयर से अधिक बताते हैं। इसे देखते हुए खेती में नए विकल्प की जरूरत पर जोर दिया गया और सगंध खेती इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

राज्य सरकार के उपक्रम सगंध पौधा केंद्र ने इसके लिए प्रयास किए और आज प्रदेशभर में डेमस्क गुलाब, लैमनग्रास, तेजपात, रोजमेरी, कैमोमाइल, तुलसी, गेंदा, थाइम, मिंट, भंगजीरा समेत अन्य सगंध फसलों के क्लस्टर तैयार हो चुके है। सगंध खेती से 21009 किसान सीधे तौर पर जुड़े हैं। सगंध फसलों का सालाना टर्नओवर 85 करोड़ पहुंच गया है। किसानों की आय दोगुना करने में सक्षम सगंध खेती को अब अधिक विस्तार देने की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं।

सगंध पौधा केंद्र के निदेशक डा नृपेंद्र चौहान के अनुसार केंद्र ने कुछ नई सगंध फसलों पर काम शुरू किया है। यह ऐसी फसलें हैं, जो सूखा या अन्य परिस्थितियों को झेलने में सक्षम हैं। साथ ही इनसे उत्पादित सगंध तेल की बाजार में अच्छी खासी मांग है। किसान को दिक्कत न हो, इसके लिए सरकार ने बाइबैक की व्यवस्था की है। उन्होंने बताया कि सगंध खेती को विस्तार देने के लिए प्रभावी कार्ययोजना पर काम शुरू कर दिया गया है।

राज्य में सगंध खेती

  • 109 कुल एरोमा क्लस्टर हैं राज्य में
  • 187 आसवन संयंत्र किए गए स्थापित
  • 7652 हेक्टेयर में हो रही सगंध खेती
  • 21009 किसान हैं इससे जुड़े
  • 85 करोड़ है सालाना टर्नओवर

सगंध खेती की विशेषताएं

  • जंगली जानवरों से सुरक्षित
  • असिंचित व बंजर भूमि के लिए उपयुक्त
  • खेत में ही उत्पाद को लो वेल्यूम में बदलना
  • परिवहन में आसानी, उचित दाम

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