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वन्यजीव प्रेमियों के लिए सुकून देने वाली है यह खबर, बाघ की चहलकदमी से राजाजी का चीला-मोतीचूर गलियारा जीवंत

देहरादून। राजाजी टाइगर रिजर्व के साथ ही वन्यजीव प्रेमियों के लिए यह खबर सुकून देने वाली है। राज्य गठन के बाद पहली बार इस रिजर्व का चीला-मोतीचूर गलियारा बाघ की चहलकदमी से जीवंत हो उठा है।हाल में रिजर्व के पूर्वी हिस्से के चीला क्षेत्र से एक नर बाघ इसी गलियारे से होकर पश्चिमी हिस्से के मोतीचूर क्षेत्र में पहुंचा है।

गलियारे के निर्बाध होने को वन, राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण समेत अन्य संस्थाओं के समन्वित प्रयासों का सुफल बताया जा रहा है। इस गलियारे के खुलने से मोतीचूर, धौलखंड क्षेत्र में न केवल बाघों के कुनबे में वृद्धि होगी, बल्कि चीला से यहां इनकी निरंतर आवाजाही भी बनी रहेगी।

वर्ष 2015 में अस्तित्व में आया राजाजी टाइगर रिजर्व

वर्ष 2015 में अस्तित्व में आया राजाजी टाइगर रिजर्व देश का 48 वां टाइगर रिजर्व है। इसके अंतर्गत राजाजी नेशनल पार्क का 820 वर्ग किमी का कोर और लगभग 250 वर्ग किमी का बफर क्षेत्र है। रिजर्व के पूर्वी हिस्से में स्थित चीला रेंज बाघों का मुख्य घर है, जबकि गौहरी समेत आसपास के क्षेत्रों में भी इनकी मौजूदगी है

इस दृष्टि से देखें तो रिजर्व के पश्चिमी हिस्से का मोतीचूर, धौलखंड क्षेत्र बाघों के लिहाज से सूना ही था। वहां वर्षों से दो बाघिनें अकेली रह रही थीं। चीला व मोतीचूर के मध्य से गुजर रहे राष्ट्रीय राजमार्ग के अलावा अन्य कारणों से चीला-मोतीचूर गलियारा बाधित था। ऐसे में चीला से बाघ यहां आ-जा नहीं पा रहे थे। इस सबको देखते हुए ही मोतीचूर क्षेत्र में कार्बेट टाइगर रिजर्व से दो बाघ लाए गए।

गलियारे को सुरक्षित और आवाजाही लायक बनाया

यद्यपि, इस बीच चीला-मोतीचूर गलियारे को निर्बाध करने के प्रयास किए गए। इस क्रम में राष्ट्रीय राजमार्ग पर फ्लाईओवर का निर्माण कराया गया तो रिजर्व प्रशासन ने जगह-जगह बाधित इस गलियारे को सुरक्षित और आवाजाही लायक बनाया। साथ ही वासस्थल विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया। अब इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। हाल में चीला क्षेत्र से एक नर बाघ मोतीचूर क्षेत्र में पहुंचा। वहां लगे कैमरा ट्रैप में इसकी तस्वीर कैद हुई है। साथ ही रिजर्व प्रशासन उस पर नजर रखे है। माना जा रहा है कि अब इस गलियारे में बाघों की निरंतर आवाजाही होने लगेगी।

चीला-मोतीचूर गलियारा एक दौर में वन्यजीवों की आवाजाही का प्रमुख रास्ता था। अविभाजित उत्तर प्रदेश में यह बाधित हो गया था, लेकिन इसकी मानीटरिंग नहीं हो रही थी। उत्तराखंड बनने के बाद इस गलियारे को निर्बाध करने के प्रयास किए गए, जिसमें अब जाकर सफलता मिली है।

 

चीला-मोतीचूर गलियारे का निर्बाध होने के साथ ही इसमें बाघ की आवाजाही सुखद है। इस गलियारे पर पडऩे वाले राजमार्ग पर राजमार्ग प्राधिकरण ने फ्लाईओवर का निर्माण कराया तो भारतीय वन्यजीव संस्थान, विश्व प्रकृति निधि ने भी तमाम तरह से सहयोग दिया। रिजर्व प्रशासन ने गलियारे को सुरक्षित बनाने के साथ ही वासस्थल विकास को कदम उठाए। समन्वित प्रयासों से गलियारा निर्बाध हो पाया है।

-साकेत बडोला, निदेशक राजाजी टाइगर रिजर्व

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