आगरा प्रवास पर पधारे जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी
आगरा। भारत में जब तक गुरुकुल प्रणाली रही तब तक भारत जगतगुरु ही रहा किंतु जैसे ही गुरुकुल प्रणाली क्षीण होनी शुरू हुई भारत परमुखापेक्षी हो गया। इसलिए ब्रह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज ने ‘जगतगुरुकुलम’ की स्थापना का आदेश दिया।’ ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज ने अपने 1 दिन के प्रवास के दौरान मीडिया से बात करते हुए यह बातें कहीं। परमहंसी गंगा आश्रम से आते हुए डाॅ दीपिका उपाध्याय के आवास पर जगद्गुरु शंकराचार्य जी इशारों इशारों में बहुत कुछ कह गए।
ज्योतिष्पीठ को एक और आंदोलनकारी शंकराचार्य मिलने के प्रश्न पर वे बोले कि शंकराचार्यों का कार्य ही सनातन संस्कृति तथा वर्णाश्रम धर्ममूलक व्यवस्था बनाना है। उन्होंने कहा कि गंगा की धारा अविरल और निर्मल हो, भारत भूमि पर गाय का एक बूंद भी रक्त नहीं गिरना चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को गीता का ज्ञान होना चाहिए क्योंकि गीता शरणागति का ज्ञान देती है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सभी धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आ। उन्होंने कहा कि स्त्री और पुरुष में ज्ञान, भक्ति और शरणागत का कोई भेद नहीं होता अर्थात इन तीनों का अधिकार स्त्री के पास भी है।
=ढाई हजार वर्ष पुरानी शांकर परंपरा की बात करते हुए उन्होंने कहा कि जिन्हें धर्म पर पूर्ण विश्वास है, उन्हें शासन व्यवस्था से कोई फर्क नहीं पड़ता। हां, जो लोग परमुखापेक्षी हैं, वे अवश्य शासन का अनुकरण करते हैं। इसलिए धर्मनिरपेक्ष शासन उन्हें प्रभावित करता है। वर्तमान परिस्थितियों में धर्म निरपेक्ष का अर्थ ही सनातन धर्म का विरोध हो गया है। उन्होंने कहा कि यह भी गलत है कि किसी धर्म का बहुत ख्याल रखा जाए।
यह जनता को समझना होगा कि वर्तमान शासन जनता का शासन है। जनता स्वयं में आज राजा है, वह स्वयं को प्रजा समझना बंद करे।
आगरावासियों से सीधा संवाद करते हुए उन्होंने कहा कि “आगरा को मुगल कालीन नगरी ताजमहल के कारण कहा जाता है। यदि इसके मूल में जाएं तो वहीं पर तेजोमहालय के भी साक्ष्य मिलते हैं। जब आरटीआई के तहत भारत का प्रत्येक नागरिक सरकारी फाइलों को देखने का अधिकार रखता है तो आखिर तेजोमहालय बंद क्यों है? इस विषय में त्वरित सुनवाई होनी चाहिए तथा दोनों पक्षों के साक्ष्यों को देखकर निर्णय होना चाहिए, जिससे ताजमहल और तेजोमहालय दोनों के बीच का विवाद खत्म हो। आगे उन्होंने कहा कि मनुस्मृति में ‘अग्रजन्मनां’ शब्द आता है तो आगरा तो एक एडवांस सिटी है, इसलिए इसे अपने पौराणिक गौरव का स्मरण करना चाहिए।”
आगरा में 1 दिन के प्रवास के बाद जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज दिल्ली रवाना हो गए। उनके साथ ब्रह्मचारी मुकुंदानंद, ब्रह्मचारी केशवानंद, कृष्णा पाराशर, पवन मिश्रा, मनीषमणि त्रिपाठी आदि थे।
ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी के शंकराचार्य रुप में प्रथम आगरा आगमन पर गुरुदीपिका योगक्षेम फाउंडेशन द्वारा धर्मरक्षा के प्रतीक रुप में पीतल का त्रिशूल भेंट किया गया। महाराजश्री का स्वागत करने एवं व्यवस्था संभालने वालों में गुरुदीपिका योगक्षेम फाउंडेशन की निदेशक वारिजा चतुर्वेदी के साथ रवि उपाध्याय, ओपी शर्मा, पीसी गर्ग, अनुज गुप्ता आदि प्रमुख रहे।