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धामी सरकार का ये सख्त क़ानून प्रदेश में बंद कराएगा धर्म परिवर्तन की दुकान जानिए क्या है इस क़ानून में

उत्तराखंड में जबरन मत परिवर्तन कराने या ऐसी कोशिश करने वालों को अधिक समय जेल में बिताना और अधिक जुर्माना देना होगा। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की तुलना में इस कानून के प्रविधान अधिक कड़े करते हुए संशोधन किए गए हैं। कानून का उल्लंघन करने पर अब न्यूनतम एक वर्ष के स्थान पर दो वर्ष जेल की सजा काटनी होगी।

जुर्माने की राशि 15 हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार
जेल में अधिकतम पांच साल के स्थान पर सात साल रहना होगा। जुर्माने की राशि 15 हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार रुपये की गई है। इस कानून के अंतर्गत अब सभी अपराध संज्ञेय और गैर जमानती होंगे। पुष्कर सिंह धामी मंत्रिमंडल ने बुधवार को यह अहम निर्णय लेते हुए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक के मसौदे को स्वीकृति दी। मंत्रिमंडल ने अन्य अहम निर्णय में

मूल अधिनियम की धारा-चार में संशोधन
मूल अधिनियम की धारा-चार में संशोधन किया गया। इसके अंतर्गत कोई व्यथित व्यक्ति या उसके माता-पिता या भाई-बहन ऐसे मत परिवर्तन के संबंध में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर सकेंगे, जो धारा-तीन का उल्लंघन करते हों। धारा तीन के अंतर्गत प्रलोभन, परपीड़न, दुर्व्यपदेशन, बल, कपटपूर्ण साधन से किसी व्यक्ति का एक मत से दूसरे मत में परिवर्तन अथवा इसका षडयंत्र नहीं किया जा सकेगा।

एससी-एसटी महिला के मामले में जेल की सजा तीन वर्ष बढ़ाई
मूल अधिनियम में व्यक्ति की अनुमति के बगैर उसे मत परिवर्तन को विवश करने या इस संबंध में षडयंत्र रचने वाले को न्यूनतम एक साल और अधिकतम पांच साल जेल की सजा का प्रविधान किया गया। साथ में न्यूनतम जुर्माना 15 हजार रुपये रखा गया था। यही व्यवस्था उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम-2021 में भी है। उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम-2018 की धारा-पांच में संशोधन कर न्यूनतम जेल की अवधि दो वर्ष और अधिकतम सात वर्ष की गई है। साथ में जुर्माना राशि भी बढ़ाकर 25 हजार रुपये की गई है।

अव्यस्क महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के संबंध में धारा-तीन के उपबंधों का उल्लंघन करने पर न्यूनतम जेल की सजा दो वर्ष यथावत रखी गई, जबकि अधिकतम जेल की सजा सात वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष की गई है। जुर्माना भी 25 हजार रुपये से कम नहीं होगा।सामूहिक मत परिवर्तन पर अधिकतम 10 वर्ष की जेल
मूल अधिनियम में यह नया प्रविधान जोड़ा गया है कि सामूहिक मत परिवर्तन के संबंध में कारावास की अवधि तीन वर्ष से कम नहीं होगी और अधिकतम 10 वर्ष होगी। जुर्माने की राशि भी 25 हजार रुपये से कम नहीं होगी। धारा-आठ की उपधारा-पांच व छह में संशोधन कर उपधारा-एक का उल्लंघन होने पर छह माह से तीन वर्ष तक कारावास और 10 हजार रुपये जुर्माने की व्यवस्था की गई है। उपधारा-दो के उपबंधों का उल्लंघन करने पर एक वर्ष से पांच वर्ष तक कारावास व और 25 हजार रुपये जुर्माने का प्रविधान किया गया है।

मत परिवर्तन की उद्घोषणा 60 दिन पहले करनी होगी
संशोधन विधेयक में स्वेच्छा से मत परिवर्तन करने वालों पर रोक नहीं लगाई गई है। मत परिवर्तन करने पर संबंधित व्यक्ति को न्यूनतम 60 दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट को घोषणा प्रेषित करनी होगी। उत्तर प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी अब संशोधित कानून के अंतर्गत समस्त अपराध गैर जमानती होंगे और सत्र न्यायालय में विचारणीय होंगे। इसके लिए धारा-14 में संशोधन किया गया है। संशोधित विधेयक में मत परिवर्तन के उद्देश्य से किया गया विवाह शून्य होगा। न्यायालय से पीडि़त को प्रतिकर के रूप में पांच लाख की राशि देने के प्रविधान भी यथावत रखे गए हैं

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