नई दिल्ली । डॉग बाइट के बढ़ते मामलों के बीच गुरुग्राम की जिला कंज्यूमर फोरम ने कहा कि अब पालतू कुत्तों को बाहर घुमाते वक्त गले में चेन और मुंह पर कवर बांधना होगा, वरना मालिक पर तगड़ा जुर्माना लगेगा। साथ ही विदेशी नस्ल के 11 कुत्तों पर बैन लग गया है। म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ग्रुरुग्राम अब ये पक्का करेगा कि बैन ब्रीड के पेट्स घर पर न रखे जाएं। अमेरिकन पिटबुल, डॉगो अर्जेंटिनो, रॉटवेलर, निएपॉलियन मेस्टिफ, बुअबुल, प्रेसा केनेरिओ, वोल्फ डॉग, बैंडॉग, मेरिकन बुलडॉग, फाइला ब्रेसिलाइरो और केन कॉर्सो। अगर किसी के पास पहले से ही इन नस्लों में से कोई पेट हो, तब तुरंत लाइसेंस जब्त करके कुत्ते को कस्टडी में ले लिया जाएगा। अक्टूबर में गाजियाबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन भी तीन नस्लों पर बैन लगा चुका।
बीते साल से देश के अलग-अलग हिस्सों, खासकर उत्तरप्रदेश और राजस्थान से डॉग बाइट की घटनाएं रिपोर्ट हो रही हैं। कई मामलों में लोग बुरी तरह से जख्मी हो गए, तब लखनऊ में पिटबुल डॉग के हमले से मालकिन की मौत तक हो गई। यानी कुल मिलाकर देश में कुत्तों का कहर जारी है, जबकि जापान जैसे एशियाई देश में ये इंसानी बच्चों को रिप्लेस कर रहे हैं। दरअसल जापान में बर्थ रेट घट रही है। आबादी तेजी से बूढ़ी हो रही है, दूसरी तरफ युवा जोड़े संतान पैदा करने की जगह कुत्ते-बिल्ली पाल रहे हैं।
इस देश के लोगों में काम को लेकर एक तरह का पागलपन दिखता है। यहां तक कि ओवरवर्क के कारण बहुत सी मौतें भी होने लगीं। इसके बाद भी जापान में युवा से लेकर बूढ़े तक लगातार काम किए जा रहे हैं। अब काम करना होगा, तब बच्चे कौन संभालेगा! तब उनकी जगह कुत्ते लेने लगे। इन्हें संभालना बनिस्बत आसान होता है। ये ज्यादा वक्त भी नहीं मांगते। और ऑफिस से थककर लौटो, तब होमवर्क कराने की जिद भी नहीं करते। औसत आय के मामले में ज्यादातर देशों से काफी आगे खड़े जापान में लोग पालतू पशु की देखभाल भी बढ़िया तरीके से कर पाते हैं। बेस्ट क्वालिटी खाना, और वैक्सिनेशन ही नहीं, वीकेंड पर घुमाई-फिराई भी होती है। कई बड़े इंटरनेशनल ब्रांड जापान में कुत्तों के लिए डिजाइनर कपड़े बनाने लगे हैं।
कुत्तों के वैक्सिनेशन के मामले में जापान काफी आगे है। साल 1957 के बाद से वहां कुत्तों या पालतू जानवरों के काटने पर रेबीज का कोई मामला नहीं आया। रेबीज का वैक्सीन दिलवाने के बाद पशु के मालिक को अपने घर की मेन दीवार पर वहां स्टिकर लगाना होता है, जो डॉक्टरों ने टीकाकरण के बाद दिया था। जापान में ये नियम है ताकि लोग बिना डरे गुजर सकें। कुत्ते-बिल्लियों को लेकर इस देश की दीवानगी इतनी बढ़ गई कि उनके अंतिम संस्कार पर भी भारी खर्च किया जाने लगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक बौद्ध धर्म मानने और शादी-मरण को सादगी से मनाने वाला जापानी अपने पालतू जानवर की मौत पर भारी खर्चा कर रहे हैं।
काम का जुनून और वक्त की कमी कुछ वजहें हैं, जिनके कारण जापान बच्चों से कतरा रहा है, लेकिन पेट्स पालने के लिए पीछे एक वजह और है। दरअसल इनके साथ रहने पर अकेलापन कम सताता है। इन्हें गले लगाना तनाव को काफी हद तक कम करता है। यही कारण है कि जापान में थैरेपी डॉग्स भी होने लगे हैं। ये गले लगाने और प्यार जताने में ट्रेंड होते हैं।