आने वाले पर्यटकों का नया ठिकाना बनेंगे पांच प्रकृति अधारित डेस्टिनेशन, ये है वन विभाग का प्लान

देहरादून : वन विभाग प्रदेश में प्रकृति आधारित पर्यटन को बढ़ावा देने की तैयारी कर रहा है। इस कड़ी में पांच नए डेस्टिनेशन बनाए जाएंगे, जिन्हें अगले पांच वर्षों में विकसित किया जाएगा।
गुरुवार को मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक अकादमी में चल रहे सशक्त उत्तराखंड चिंतन शिविर में विभिन्न विभागों ने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से भविष्य की योजनाओं को साझा किया। वन विभाग के प्रमुख वन संरक्षक अनूप मलिक ने अपने प्रस्तुतिकरण में बताया कि पांच वर्षों की तरह ही अगले 10 वर्षों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में संपर्क बढ़ाकर नए डेस्टिनेशन चिह्नित और विकसित किए जाएंगे।
उन्होंने बताया कि मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए स्टेट एक्शन प्लान बनाने पर काम किया जा रहा है। संवेदनशील स्थानों पर रैपिड रिस्पांस टीमें का गठन किया जाएगा। इसके लिए स्थानीय निवासियों को भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में बंदरों के आतंक को कम करने के लिए उनकी नसबंदी की जा रही है। हाथी एवं बाघ के पारंपरिक गलियारों को फिर से पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे हैं
चिंतन शिविर में सचिव आयुष डा पंकज कुमार पांडेय ने बताया कि उत्तराखंड को आयुष और योग का हब बनाना है। इस क्षेत्र में निजी निवेश को प्रोत्साहित किया जा रहा है। आयुष ढांचे को अपग्रेड करने के प्रयास किए जा रहे हैं। अभी 300 वेलनेस सेंटर राज्य में संचालित हो रहे हैं। योग एवं नेचुरोपैथी का सेल भी बनाया जा रहा है।
सचिव उद्योग डा पंकज कुमार पांडेय ने बताया कि उद्योग क्षेत्र में काफी कार्य हो रहा है। हरिद्वार एवं पंतनगर सिडकुल में अच्छा काम हो रहा है। आर्थिक विकास के लिए स्वरोजगार के लिए जोर दिया जा रहा है। जीआई टैगिंग के बाद बाजार में लाभ मिलता है। इसे बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। पर्यटन व सेवा क्षेत्र में विशेष ध्यान जा रहा है। औद्योगिक समूहों को राज्य में निवेश को प्रेरित किया जा रहा
सचिव कौशल विकास विजय कुमार यादव ने कहा कि उद्योगों की मांग के हिसाब से कौशल विकास विभाग युवाओं को विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण दे रहा है। लघु व दीर्घकालीन कौशल विकास प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है। आइटीआइ में विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
इस दौरान नैनीताल के जिलाधिकारी डीएस गर्ब्याल ने पहाड़ी भवन निर्माण शैली को संरक्षित करने और रोजगार देने के उद्देश्य से पहाड़ों में हुनरशाला खोलने का सुझाव दिया।