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फ्रांस ने साबित किया ये टीम किसी पर भी नहीं है निर्भर

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्लब स्तर में कितने सफल हैं क्योंकि किसी भी खिलाड़ी के लिए विश्व कप सबसे बड़ा मंच होता है। इसमें कोई शक नहीं है कि 23 वर्षीय कायलियन एमबापे ने सामने से खुद को स्थापित किया है। विश्व कप जैसे बड़े मंच पर एमबापे सफल साबित हो रहे हैं। इस उम्र में अपने लगातार दूसरे विश्व कप में इस तरह का प्रदर्शन करना कोई मामूली बात नहीं है। इस लड़के ने अबतक बहुत कुछ साबित किया है। एमबापे ने फ्रांस और डेनमार्क के बीच बराबरी के मैच में अंतर पैदा किया। हां, इसमें कोई शक नहीं कि फ्रांस ने ग्रुप-डी के मैच में गेंद काफी देर अपने पास रखी थी, लेकिन डेनमार्क की रक्षापंक्ति लंबे समय तक उन्हें रोकने में कामयाब रही थी

जब भी यूरोपीय टीमों के बीच की बात होती है तो मौके को भुना पाना इतना आसान नहीं होता। ऐसे में किसी ना किसी को विपक्षी टीम को भेदते हुए अपना रास्ता बनाना होता है और एमबापे ने ऐसा ही किया। पहला गोल एक मजबूत प्रयास के तहत किया गया, जिसमें उन्होंने बाएं ओर कट लगाया और गेंद को अंदर की ओर ढकेलते हुए सेंटर फारवर्ड की भूमिका निभाई। दूसरा गोल चतुराई से किया गया। एमबापे ने इस दौरान अपने शरीर का उपयोग स्थिति का लाभ उठाने के लिए किया। उनके लिए ऐसा करना आसान नहीं था। उन्होंने संयम बनाए रखा और महत्वपूर्ण समय में गेंद को गोल पोस्ट के पार पहुंचाया। इस लड़के की इसी बात ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया। मुझे एंटोनी ग्रीजमैन का भी उल्लेख करना चाहिए, ऐसे नि:स्वार्थ खिलाड़ी, जिन्होंने फ्रांस के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ओलिवियर जिरोड और उसमाने डेंबेले ने भी अटैकिंग मोर्चे पर अपनी भूमिका निभाई, जिसने डेनमार्क को मैच के अधिकांश समय बैकफुट पर रखा। इस मैच में मिली जीत ने फ्रांस के लिए अगले दौर के दरवाजे खोल दिए, लेकिन डेनमार्क को मुश्किल में डाल दिया, जिसे अब अपने अंतिम ग्रुप मैच में हर हाल में आस्ट्रेलिया को हराना होगा। मुझे लगता है कि डेनमार्क थोड़ा बहुत रक्षात्मक होकर खेला। इसमें कोई शक नहीं है कि वह अच्छी टीम है। उनके पास बेहतर डिफेंस और कैस्पर शमीचेल के रूप में एक शानदार गोलकीपर है। उनकी टीम भी अच्छी है। डेनमार्क को मैच में लंबे समय तक अपना ध्यान केंद्रित रखना होगा, लेकिन शायद वे थोड़े नकारात्मक हो रहे हैं। उनका ध्यान ज्यादातर रक्षात्मक रहने पर था।

जब आप फ्रांस जैसी मजबूत टीम के विरुद्ध ऐसा करेंगे तो आप खुद को परेशानी में डालेंगे, इसलिए रक्षात्मक रूप से कुछ बेहतर प्रयास करने के बावजूद डेनमार्क को नुकसान उठाना पड़ा। हां, एक समय उन्होंने बराबरी हासिल कर ली थी, लेकिन एक टीम के रूप में फ्रांस उनसे बेहतर नजर आई। किसी भी टीम के लिए पाल पोग्बा और न्गोलो कांटे के बिना खेलना मुश्किल है और जब चोटिल खिलाड़ियों में करीम बेंजेमा का नाम भी जुड़ जाए तो यह काम और भी कठिन हो जाता है, लेकिन फ्रांस की इस टीम ने अपने पहले दो मैच में साबित किया है कि उनकी टीम किसी पर निर्भर नहीं है और बिना स्टार खिलाड़ियों के भी अपनी छाप छोड़ने में सक्षम है। फ्रांस की टीम अन्य टीमों के लिए सिरदर्द बनेगी। (लेखक स्पेन के पूर्व खिलाड़ी हैं।)

 

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