हिमालयन ग्रिफ़ॉन गिद्ध दिखना अच्छा संकेत
रामनगर (नैनीताल)। कॉर्बेट लैंडस्केप में बुधवार को 100 से ऊपर हिमालयन ग्रिफ़ॉन गिद्ध नजर आए तो यह उम्मीद जगी है कि यहां गिद्धों की संख्या अब बढ़ेगी। वन विभाग के मुताबिक यहां गिद्धों का झुंड नजर आना जैव विविधता को उत्साहित करने वाला है क्योंकि मानवजनित गतिविधियों के चलते इनका अस्तित्व लगभग समाप्ति की ओर पहुंच चुका है।
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर दीप रजवार को हिमालयन ग्रिफॉन गिद्ध का यह झुंड नजर आया। वन विभाग के मुताबिक 1990 के दशक तक यह गिद्ध पूरे एशिया में काफी संख्या में पाए जाते थे। 1992 से 2007 तक इनकी संख्या में काफी गिरावट आ गई। यह घोर संकटग्रस्त स्थिति में पहुंच चुके हैं और अब कम ही नजर आते हैं। हिमालयन ग्रिफ ॉन वल्चर (जिप्स हिमालयेंसिस) एसीपीट्रिडी परिवार से संबंधित है।
वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर दीप रजवार बताते हैं कि एक समय इनकी अच्छी खासी तादाद थी। लेकिन पिछले दो दशकों में इनकी संख्या घटती गई। गिद्ध को आहार शृंखला के सर्वोच्च स्थान पर आंका गया है और 90 के दशक में लगभग 40 लाख गिद्ध भारत में थे। जो अनुमानित 14 लाख टन मांस को वार्षिक दर से समाप्त किया करते थे, पर आज इनकी 99 फीसद आबादी खत्म हो चुकी है। इसका प्रमुख कारण खेतों में फर्टिलाइजर के अधिक प्रयोग व पालतू जानवरों को बीमारियों से बचाने के लिए दी जाने वाली डाइक्लोफेनेक दवा है जिसने गिद्धों को विलुप्ति की कगार पर पहुंचा दिया। मृत मवेशी के शरीर से यह रसायन गिद्ध तक पहुंचकर उसकी किडनी पर गंभीर असर करता है, जिससे उसकी मौत हो जाती है।
बैलपड़ाव रेंज के दाबका नदी में जिस स्थान पर गिद्ध दिखाई दे रहे है, उसके आसपास के क्षेत्रों में वन कर्मियों को विशेष गश्त को बढ़ाया है। वन कर्मी लगातार उन पर नजर बनाए हुए है।
प्रकाश चंद्र आर्य, डीएफओ तराई पश्चिमी वन प्रभाग
गिद्धों पर इसलिए संकट
– डाइक्लोफेनाक जो पशुओं के लिये दवा के रूप में प्रयोग होता है।
– जंगल में मानव के दखल के चलते प्राकृतिक आवासों का नुकसान।
– भोजन की कमी और दूषित भोजन से मौत।
– बिजली लाइनों से करंट लगना।