17 साल से साथ, पर समलैंगिक शादी मान्य नहीं:स्पेशल मैरिज एक्ट से गे-लेस्बियन कपल बन सकते हैं पति-पत्नी, अब सुप्रीम फैसले से आस
सेम सेक्स मैरिज को कानूनी दर्जा देने की मांग से जुड़ी याचिकाओं पर अब सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मुद्दे पर अलग-अलग राज्यों के उच्च न्यायालयों में पेंडिंग याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया है। इसके साथ ही चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने याचिकाकर्ताओं को सुनवाई में ऑनलाइन शामिल होने की छूट भी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट अब 13 मार्च को इस मुद्दे पर सुनवाई करेगा।
इनमें से एक याचिका पश्चिम बंगाल के सुप्रियो चक्रवर्ती और दिल्ली के अभय डांग ने दायर की है। वे दोनों लगभग 10 साल से एक साथ रह रहे हैं और दिसंबर 2021 में हैदराबाद में शादी कर चुके हैं। अब वे चाहते हैं कि उनकी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता मिले।
दूसरी याचिका पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज की है, जो 17 साल से रिलेशनशिप में हैं। उनका दावा है कि वे दो बच्चों की परवरिश एक साथ कर रहे हैं, लेकिन कानूनी रूप से उनकी शादी पूरी नहीं हुई है। इसके चलते ऐसी स्थिति बन गई है, जहां वे अपने बच्चों के कानूनी तौर पर पेरेंट्स नहीं कहला सकते।
असल में भारतीय कानून के हिसाब से महिला और पुरुष के बीच ही शादी हो सकती है। लेकिन इसी कानून में सेम-सेक्स मैरिज को शामिल करने की गुंजाइश तलाश रहे लोगों का तर्क है कि कानून में पत्नी की परिभाषा में उसका जेंडर स्पष्ट नहीं किया गया है।
अगर ‘पत्नी’ शब्द को जेंडर न्यूट्रल मानने की मांग को मंजूरी मिलती है तो समलैंगिकों के बीच शादी को ही कानूनी मान्यता नहीं मिलेगी बल्कि उनके बीच प्रॉपर्टी के अधिकार, बच्चे को गोद लेने के अधिकार जैसे उलझे कानूनी सवालों पर संशय साफ हो सकेगा।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिलने से समलैंगिक कपल्स की प्रॉपर्टी, ग्रेच्युटी, गोद लेने, सरोगेसी जैसे मूल अधिकारों पर असर पड़ता है। उन्हें जॉइंट बैंक अकाउंट खुलवाने तक में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
याचिका में कहा गया है कि स्पेशल मैरिज एक्ट का सेक्शन 4 किसी भी दो व्यक्तियों को विवाह करने की इजाजत देता है, लेकिन सब-सेक्शन (C) के तहत सिर्फ पुरुष और महिला ही शादी के लिए आवेदन कर सकते हैं। इसलिए याचिकाओं में मांग की जा रही है कि स्पेशल मैरिज एक्ट को जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए।
देश की अदालतों में कई याचिकाएं पेंडिंग
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने समलैंगिक विवाह पर देश के अलग-अलग हाई कोर्ट्स में पेंडिंग मामलों को भी संज्ञान में लिया है। इससे पहले भी ऐसी कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार से जवाब मांग चुका है। स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए केवल दिल्ली हाईकोर्ट और केरल हाईकोर्ट में ही 9 याचिकाएं दायर हैं।
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया था 158 साल पुराना कानून
6 सितंबर 2018 सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाले 158 साल पुराने कानून को रद्द कर दिया था। मौजूदा चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ उस समय कानून रद्द करने वाली बेंच में शामिल थे। इस कानून के रद्द होने के बाद होमोसेक्शुएलिटी के बारे में लोगों का नजरिया बदला और सेम सेक्स मैरिज के लिए मजबूत जमीन तैयार हो सकी।
मैरिज रजिस्ट्रेशन नहीं करा सकते सेम सेक्स कपल
भारत में अधिकतर लोग अपने धार्मिक रीति-रिवाजों के मुताबिक शादियां करते हैं। कानून भी उनकी धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक बनाए गए हैं। इन कानूनों में समलैंगिक विवाह का कोई जिक्र नहीं है।
ऐसे में सेम सेक्स मैरिज करने की चाहत रखने वाले जोड़े शादी नहीं कर पाते। अगर वे रीति-रिवाजों के मुताबिक शादी कर भी लें, तो उसे कानूनी तौर पर रजिस्टर्ड नहीं करवा सकते। ऐसे में इस शादी को कोई कानूनी मान्यता नहीं मिलती।
अधिकतर देशों में सर्वोच्च अदालत ने सेम सेक्स कपल्स को दिया शादी का अधिकार
ऑस्ट्रिया में गे और लेस्बियन कपल्स को सिविल पार्टनरशिप में जाने का हक 2010 में ही मिल गया था, लेकिन 2017 में वहां के सुप्रीम कोर्ट ने इसे भेदभाव वाला कानून माना और सरकार को समलैंगिक कपल्स की शादी के लिए अलग से कानून पास करने का आदेश दिया और कहा कि कानून पास नहीं होने पर 1 जनवरी 2019 से समलैंगिक कपल शादी कर सकेंगे।
ताईवान की संवैधानिक कोर्ट के आदेश पर 17 मई 2019 को वहां की पार्लियामेंट ने सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने के लिए एक अलग से कानून पास किया। वहीं, 12 जून 2019 को इक्वाडोर की संवैधानिक कोर्ट ने भी आदेश दिया कि सेम सेक्स कपल्स को शादी करने का अधिकार है, जिसके बाद इक्वाडोर में गे और लेस्बियन कपल्स को शादी करने का हक मिल गया। 2020 में कोस्टा रिका में सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज को बैन करने वाले कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। जिसके बाद वहां भी समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा मिल गया। इसी तरह, कोलंबिया, अमेरिका, ब्राजील, फ्रांस जैसे कई देशों में कोर्ट के दखल के बाद समलैंगिक विवाह को लीगल स्टेटस मिल सका।