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केंद्र सरकार ने कहा- गूगल जैसी टेक कंपनियों को पब्लिशर्स को रेवेन्यू का उचित हिस्सा देना चाहिए

भारत सरकार ने कहा कि बड़ी टेक कंपनियां जो अपने सर्च रिजल्ट और फीड में न्यूज को दिखाकर (फ़नल) प्रॉफिट कमाती हैं, उन्हें पब्लिशर्स को रेवेन्यू का उचित हिस्सा देना चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर और सूचना और प्रसारण सचिव अपूर्वा चंद्रा दोनों ने पत्रकारिता के भविष्य और न्यूज इंडस्ट्री की फाइनेंशियल हेल्थ के लिए इस मुद्दे के महत्व पर जोर दिया। दोनों ने प्रमुख भारतीय समाचार प्रकाशकों के संगठन डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (डीएनपीए) की आयोजित एक कॉन्फ्रेंस में ये बात कही।

चंद्रशेखर ने कहा, ‘डिजिटल मीडिया में एडवर्टाइजमेंट की ताकत बढ़ी है। इससे होने वाली आमदनी ने पूरे तंत्र में असंतुलन पैदा किया है। छोटे ग्रुप और डिजिटल कंटेंट बनाने वाले लाखों लोगों को इससे नुकसान हो रहा है। अभी डिजिटल कंटेंट बनाने वालों का कंटेंट मॉनेटाइजेशन पर कंट्रोल नहीं है। कंटेंट से होने वाली कमाई को लेकर उनकी जरूरतों और बड़ी टेक कंपनियों के पास जो ताकत है, उसे लेकर असंतुलन है।

हमें उम्मीद है कि डिजिटल इंडिया कानून इस समस्या को हल करेगा।’ उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में दो साल पहले पारित कानून का जिक्र किया जहां फेसबुक और गूगल जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्मों को मीडिया आउटलेट के कंटेंट का इस्तेमाल करने के लिए सही रेवेन्यू शेयर करना पड़ता है। भारत और दुनिया के कई हिस्सों में पारंपरिक न्यूज इंडस्ट्री की डिजिटल ब्रांच बड़ी टेक कंपनियों की एंटीट्रस्ट मोनोपोलिस्टिक प्रैक्टिसेस पर सवाल उठाती आई हैं।

डिजिटल मीडिया पूरी तरह से बदल जाएगा
चंद्रशेकर ने ये भी कहा कि उन्होंने तीन दशक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में गुजारे हैं, लेकिन अभी सबसे दिलचस्प दौर में जी रहे हैं। चैट जीपीटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी चीजें कई मायनों में डिजिटल मीडिया को बदलकर रख देंगी। आज भारत में 80 करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़े हुए हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा इंटरनेट जमावड़ा है। 2025-26 तक हो सकता है कि देश में 100 करोड़ लोग इंटरनेट जुड़े जाएंगे। इंटरनेट भी अब बदल चुका है। यह 10 साल पहले जैसा इंटरनेट नहीं है। भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्लाउड, डिजिटल इकोनॉमी से इंटरनेट का विकास होगा।

कनाडा के बार्गेनिंग कोड जैसे कानून बनने चाहिए
बीते दिनों पब्लिशर-प्लेटफॉर्म रिलेशनशिप को डिकोड करने के तरीकों पर मंथन के लिए डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) के दूसरे डायलॉग का आयोजन भी किया गया था। इसमें कनाडा और अमेरिका के लीडिंग एक्सपर्ट्स ने कहा था कि भारत सहित दुनिया भर के देशों को कनाडा के बार्गेनिंग कोड जैसे कानून अपने यहां भी बनाना चाहिए। दरअसल, गुगल, फेसबुक जैसी बिग टेक कंपनियों को दुनिया के कई हिस्सों में मीडिया हाउस उनके कंटेंट के इस्तेमाल को लेकर चुनौती दे रहे हैं। मीडिया हाउसेज चाहते हैं कि उन्हें उनके कंटेंट के बदले बिग टेक कंपनियां सही रेवेन्यू दें।

कानून बनाना ही एकमात्र तरीका
कनाडा के एक्सपर्ट टेलर ओवेन, पॉल डेगन और अमेरिका के डॉ. कर्टनी रैड्श इस बात पर सहमत हुए थे कि टेक कंपनियां जो वॉलंटरी डील्स मीडिया आउटलेट्स के साथ करती हैं वो काफी नहीं है। बिग टेक कंपनियों के साथ सही डीलिंग के लिए कानून बनाना ही एकमात्र तरीका है। ओवेन, रैडश, और डीगन ने भारत को उन देशों में गिना, जिसे बाकी दुनिया को दिखाना चाहिए कि रेवेन्यू शेयरिंग ट्रांसपिरेंसी और जवाबदेही को लेकर पब्लिशर-प्लेटफ़ॉर्म रिलेशन को कैसे रिबैलेंस किया जाए।

कनाडा के कानून से सही रेवेन्यू शेयर का अधिकार
कनाडा के ऑनलाइन न्यूज एक्ट का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि गूगल, फेसबुक जैसे बिग टेक डिजिटल न्यूज मीडिया के कंटेंट से जनरेट रेवेन्यू की सही शेयरिंग करें। यह एक्ट टेलीकॉम कमीशन को यह निगरानी करने का अधिकार देता है कि बिग टेक कंपनियां न्यूज आउटलेट्स के साथ कैसे डील करती हैं। मसौदा कानून, जिसे बिल सी-18 कहा जाता है, को 2022 की शुरुआत में संसद में पेश किया गया था।

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