हल्द्वानी। सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी (सीईसी) ने टाइगर रिजर्व में सफारी न बनाने की सिफारिश की है। अगर टाइगर सफारी बनानी है तो उसे टाइगर रिजर्व के बाहर और बाघ के प्राकृतिक वास के बाहर बनाने के लिए कहा गया है। ऐसे में पाखरो समेत देश में पांच अन्य जगहों पर टाइगर रिजर्व क्षेत्र में सफारी बनाने की योजना को झटका लग सकता है।
कार्बेट पार्क के टाइगर कंजर्वेशन प्लान (2015-2016 से 2024-2025) में टाइगर रेस्क्यू सेंटर कम टाइगर सफारी बनाने का उल्लेख है। इसे नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी (एनटीसीए) ने भी अनुमति प्रदान की थी। योजना के तहत पाखरो और ढेला में टाइगर सफारी तैयार किया जाना था। बाद में पाखरो में योजना के तहत हुए निर्माण कार्य को लेकर भारी गड़बड़ी सामने आयी। इस मामले में सीईसी ने रिपोर्ट तैयार की है जिसमें अनियमितता का उल्लेख करने की सिफारिश भी की गई है। इसमें टाइगर रिजर्व के अधिसूचित क्षेत्र में सफारी न बनाने की बात कही गई है। बताया गया कि टाइगर रिजर्व में सफारी बनाने से पेड़-पौधों को नुकसान होता है, इसके साथ ही भारी संसाधनों के उपयोग से वन्यजीव वास स्थल भी प्रभावित होंगे। पर्यटक टाइगर रिजर्व में बाघ देखना ज्यादा पसंद करेंगे ना कि सफारी में।
सीईसी ने सिफारिश की है कि एनटीसीए की 2019 की टाइगर सफारी स्थापित करने की गाइडलाइन है उसमें संशोधन किया जाए। उसके तहत टाइगर सफारी को टाइगर रिजर्व के बाहर बनाया जाए इसके साथ ही टाइगर कॉरिडोर का ध्यान रखा जाए। इसके अलावा एनिमल रेस्क्यू सेंटर व प्रस्तावित (सफारी स्थल) के लिए न्यूनतम क्षेत्र लिया जाए। जिन स्ट्रक्चर की जरूरत नहीं है उन्हें ध्वस्त किया जाए। यह भी सुनिश्चित किया जाए कि यहां कोई भी टूरिज्म से जुड़ी गतिविधि ना हो। रेस्क्यू सेंटर का इस्तेमाल बीमार घायल वन्यजीवों के पुनर्वास के लिए हो। राज्य सरकार सभी अवैध निर्माण को ध्वस्त करे, इसके साथ ही जो बिजली की लाइन बिछाई गई है, उस पर भी कार्रवाई हो।
26 से 102 करोड़ पहुंचा दी थी योजना की लागत
हल्द्वानी। सीईसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पाखरो में रेस्क्यू सेंटर और सफारी बनाने की योजना बनी थी तो पहले उसकी लागत 26.81 करोड़ थी। बाद में इसकी संशोधित लागत बढ़ाकर 102 करोड़ से अधिक पहुंचा दी गई। हालांकि जब यह प्रकरण प्रमुख वन संरक्षक की अध्यक्षता में बनी कमेटी के पास पहुंचा तो उस पर कुछ स्पष्टीकरण मांगते हुए लौटा दिया गया था।
राज्य और जंगलात के अफसर मूकदर्शक बने रहे
हल्द्वानी। रिपोर्ट में वन विभाग के राज्य सरकार और वन विभाग के उच्चाधिकारियों की भूमिका को लेकर भी उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण रहा है कि अधिकारी तत्कालीन कालागढ़ वन प्रभाग के डीएफओ किशन चंद की अनियमितता को लेकर मूकदर्शक बने रहे। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह भी नहीं हो सकता कि वरिष्ठ अधिकारियों के आशीर्वाद के बिना डीएफओ स्तर का कोई भी अधिकारी इतना जोखिम लेगा और करोड़ों रुपये पर्यटन गतिविधियों पर खर्च करेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि डीएफओ किशन चंद ने अपने राजनैतिक आकाओं, विभाग और राज्य के अधिकारियों के समर्थन से खूब आनंद लिया। बाद चार्ज हैंडओवर के दौरान भी ड्रामा हुआ था।