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पुरात्तव संरक्षित क्षेत्र के आसपास रहने वालों को निर्माण में राहत देने की तैयारी

काशीपुर। पुरातत्व विभाग उत्तराखंड पुरातत्व सरंक्षित क्षेत्र में आसपास रहने वालों के लिए भवन निर्माण में राहत देने पर विचार कर रही है। इसके लिए विभागीय अधिकारियों और गर्वमेंट आर्टिटेक्ट कॉलेज चंडीगढ़ की टीम काशीपुर पुरातत्व संरक्षित क्षेत्र का 6-7 फरवरी को सर्वेक्षण करेगी। संरक्षित क्षेत्र गौविषाण टीला का सौदर्यीकरण होगा इसके लिए टीले की सफाई की जाएगी और उसमें गार्डन विकासित करने पर भी विचार चल रहा है जो अगले वित्त वर्ष में संभव होगा।

पुरातत्व विभाग पुरातत्व संरक्षित क्षेत्र के आसपास रहने वालों को पक्का विर्माण करने के लिए पुरातत्व विभाग से मंजूरी लेने पड़ती है। जिसकी प्रक्रिया काफी जटिल होने के कारण लोग बिना अनुमति के ही निर्माण करते हैं। इसलिए लोगों को राहत देने के लिए सरकार ने पुरातत्व स्मारक संरक्षण अधिनियम 1956 के अनुसाक संरक्षित क्षेत्र से 100 मीटर तक निर्माण की अनुमति नहीं है। इससे बाहर 200 मीटर पर अनुमति लेनी पड़ती है। इस नियम में बदलाव के लिए पुरातत्व सर्वेक्षण क्षेत्रों का पुनठ सर्वेक्षण करने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण की ओर से चयनित पुरातत्व विद् अधिकारियों और गर्वमेंट आर्टिटेक्ट कॉलेज चंडीगढ़ के अधिकारियों की एक टीम जो पहले जागेश्वर धाम का सर्वे कर चुकी है। वह 6 -7 फरवरी को पुरातत्व संरक्षित क्षेत्र काशीपुर का सर्वे करेगी।

पुरातत्व सर्वेक्षण के सीए नीरज मैठाणी ने बताया काशीपुर का गौविषाण टीला पुरातत्व की दृषिट से काफी महत्वपूर्ण है। विभाग इसका सौदरर्यीकरण करेगी और इसकी सफाई कर इसको गार्डन के रुप में विकसित करने की योजना बना रहा है, जो अगले वित्त वर्ष में संभव होगा। उल्लेखनीय है कि पुरातत्व की दृष्टी से गौविषाण टीला काफी महत्वपूर्ण है। भारत सरकार पुरातत्व विभाग ने वर्ष 1954, 1964 व 2005 में इसका उत्खनन किया था । उत्खनन में त्रिविक्रम, नरसिम्हा की प्रतिमा और छठी शताब्दी का पंचायती मंदिर तथा महाभारत कालीन कई महत्वपूर्ण कलाकृतियां व अवशेष मिले थे।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वर्णन में गौविषाण टीला का वर्णन एक विशाल किला और नगर के रुप में और इसी के पास स्थित तीर्थ द्रोणसागर का वर्णन हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के रुप में किया है। वर्ष 2005 में उत्खनन भगवान बुद्ध के नाखून व बाल की खोज के लिए हुआ था। पुरातत्व अधिकारियों ने गौविषाण टीले की खुदाई में चार सभ्याताओं के अवशेष पाए जाने का दावा किया है। त्रिविक्रम की प्रतिमा राष्ट्रीय संग्राहलय दिल्ली और नरससिम्हा की प्रतिमा पुरात्तव संग्रहालय जागेश्वर अल्मोड़ा में रखी गई है

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