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अतीक की पत्नी ने लिखा- योगीजी पति को बचा लीजिए

UP के बाहुबली अतीक अहमद की पत्नी ने CM योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिखकर पति की जान बचाने की गुहार लगाई है। एक वक्त ऐसा था जब अतीक पूर्वांचल में खौफ का दूसरा नाम था। खौफ ऐसा था कि 10 जजों ने उसके केस की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।

अतीक अहमद भले ही गुजरात की साबरमती जेल में बंद है, लेकिन हाल ही में प्रयागराज में हुए उमेश पाल मर्डर के चलते वह फिर से चर्चा में है। दरअसल, पूर्व विधायक राजू पाल की हत्या का उमेश मुख्य गवाह था और अतीक अहमद और उसका भाई अशरफ इस मामले में आरोपी हैं।

साल 1979 की बात है। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के चकिया का रहने वाला एक लड़का 10वीं क्लास में फेल हो गया। पिता फिरोज अहमद तांगा चलाकर परिवार चलाते थे। इसी बीच 17 साल का अतीक अहमद बदमाशों की संगत में पड़ गया। अब उस पर जल्दी अमीर बनने की सनक सवार होती है। इसी के चलते लूट, अपहरण और रंगदारी वसूलने जैसी वारदातों को अंजाम देने लगा। उसी साल अतीक पर हत्या का केस दर्ज हुआ।

उस समय इलाहाबाद के पुराने शहर में चांद बाबा का खौफ हुआ करता था। पुलिस और राजनेता चांद बाबा से परेशान से थे। ऐसे में अतीक अहमद को दोनों का साथ मिला। 7 सालों में अतीक चांद बाबा से भी ज्यादा खतरनाक हो गया था। लूट, अपहरण और हत्या जैसी खौफनाक वारदातों को लगातार अंजाम देने लगा।

जिस अतीक को पुलिस ने शह दे रखी थी, अब वही उसकी आंख की किरकिरी बन गया।

1986 में पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती है। हालांकि अतीक अपने रसूख का इस्तेमाल करता है और उस समय इलाहाबाद के कांग्रेस नेता से संपर्क करता है। नेता जी की दिल्ली तक पहुंच थी। काम हो गया, दिल्ली से फोन आया और अतीक जेल से बाहर।

अपराध की दुनिया में अतीक अब बड़ा नाम बन चुका था। साल 1989 में राजनीति में उतरता है और शहर की पश्चिमी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान करता है। इस बार मुकाबला था चिर प्रतिद्वंद्वी चांद बाबा से। ऐसे में गैंगवार तो होना ही था।

इसमें भी अतीक ने बाजी मारी और अपनी दहशत के चलते चुनाव जीत गया। कुछ महीनों बाद बीच चौराहे पर दिनदहाड़े चांद बाबा की हत्या हो गई। अब तो पूरे पूर्वांचल में अपराधी अतीक के नाम का बोलबाला था।

साल 1991 और 1993 में भी अतीक निर्दलीय चुनाव जीता। साल 1995 में लखनऊ के चर्चित गेस्ट हाउस कांड में भी अतीक का नाम सामने आया। साल 1996 में सपा के टिकट पर विधायक बना। साल 1999 में अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से चुनाव लड़ा और हार गया। फिर 2002 में अपनी पुरानी इलाहाबाद पश्चिमी सीट से 5वीं बार विधायक बना।

कई खौफनाक वारदातों के बाद अतीक का खौफ इतना ज्यादा बढ़ गया कि इलाहाबाद की शहर पश्चिमी सीट से कोई नेता चुनाव लड़ने को तैयार नहीं होता था। पार्टियां टिकट देती भी थीं तो नेता लौटा दिया करते थे। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद सपा के टिकट पर UP की फूलपुर सीट से चुनाव जीतता है। उस वक्त अतीक इलाहाबाद पश्चिम सीट से विधायक था।

सांसद बनने पर विधायकी छोड़नी पड़ी। उपचुनाव हुआ। सपा ने अतीक के छोटे भाई अशरफ को उम्मीदवार बनाया। इसी बीच अतीक का दायां हाथ माने जाने वाले राजू पाल ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया। अक्टूबर 2004 में राजू पाल चुनाव जीत जाता है। पहली बार अतीक को अपने ही इलाके में टक्कर मिली। अब बात रसूख की थी।

विधायक बनने के 3 महीने बाद 15 जनवरी 2005 को राजू पाल ने पूजा पाल से शादी कर ली। शादी के ठीक 10 दिन बाद 25 जनवरी 2005 को राजू पाल की हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में अतीक अहमद और अशरफ का नाम सामने आया।

साल 2005 में विधायक राजू पाल हत्याकांड के बाद अतीक अहमद का बुरा वक्त शुरू हो गया। साल 2007 में UP की सत्ता बदली। मायावती सूबे की मुखिया बन गईं। सत्ता जाते ही सपा ने अतीक को पार्टी से बाहर निकाल दिया। CM बनते ही मायावती ने ऑपरेशन अतीक शुरू किया। 20 हजार का इनाम रख कर अतीक को मोस्ट वांटेड घोषित किया गया।

अतीक अहमद पर 100 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें हत्या, हत्या की कोशिश, किडनैपिंग, रंगदारी जैसे केस हैं। उसके ऊपर 1989 में चांद बाबा की हत्या, 2002 में नस्सन की हत्या, 2004 में मुरली मनोहर जोशी के करीबी BJP नेता अशरफ की हत्या, 2005 में राजू पाल की हत्या का आरोप है।

लगातार दर्ज हो रहे मुकदमों के कारण उसके राजनीतिक करियर पर भी फुल स्टॉप लगने लगा। 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त अतीक अहमद जेल में ही था। साल 2012 में उसने चुनाव लड़ने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दी। हालांकि हाईकोर्ट के 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया। 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक अहमद को जमानत मिल गई।

चुनाव में अतीक अहमद की हार हुई। उसे राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने हरा दिया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी उसने समाजवादी पार्टी के टिकट पर श्रावस्ती सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन BJP के दद्दन मिश्रा से हार गया।

इसके बाद 2019 के आम चुनाव में जेल से ही वाराणसी सीट पर मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा। इस बार फिर जमानत जब्त हो गई।

UP में अपराध की दुनिया में मुख्तार अंसारी एक बड़ा नाम है। उसे बाहुबली नेता के रूप में जाना जाता है। मुख्तार लगातार पांच बार से विधायक है और पिछले 18 सालों से जेल में बंद है। उस पर मर्डर, किडनैपिंग और एक्सटॉर्शन जैसी वारदातों में 40 से ज्यादा केस दर्ज हैं।

उसकी दबंगई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वह जेल में रहते हुए भी चुनाव जीतता था और अपने गैंग को भी चलाता है।

मुख्तार का जन्म UP के गाजीपुर जिले में हुआ था। उसके दादा इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे तो पिता कम्युनिस्ट नेता थे। मुख्तारी को छात्र जीवन से ही दबंगई पसंद थी। 1988 में मुख्तार का नाम पहली बार हत्या के एक मामले से जुड़ा।

हालांकि सबूतों के अभाव में वह बच निकला। इसके बाद 90 का दशक आते-आते वह जमीन के कारोबार और ठेकों की वजह से पूर्वांचल में अपराध की दुनिया में अपनी पैठ बना चुका था।

साल 1996 में मुख्तार ने पहली बार राजनीति की दुनिया में कदम रखा और UP की मऊ सीट से विधानसभा का चुनाव जीता। इसके बाद पूर्वांचल में मुख्तार की तूती बोलने लगी। जिसके बाद एक दूसरे गैंगस्टर ब्रजेश सिंह ने मुख्तार के काफिले पर हमला कराया, लेकिन वह बच निकला।

यह भी कहा जाता है कि मुख्तार अंसारी की हत्या के लिए ब्रजेश सिंह ने लंबू शर्मा को 6 करोड़ रुपए की सुपारी दी थी। इसका खुलासा लंबू शर्मा की गिरफ्तारी के बाद हुआ था।

2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या से भी अंसारी का नाम जुड़ा था। अक्टूबर 2005 में मऊ में भड़की हिंसा के बाद मुख्तार ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। तभी से वो जेल में बंद हैं। इस बीच मुन्ना बजरंगी, हनुमान पांडेय जैसे मुख्तार के कई कुख्यात गुर्गे एनकाउंटर या फिर गैंगवार में मारे गए।

मुख्तार का गुर्गा झुन्ना पंडित जेल में है। बीते 5 साल में मुख्तार की 400 करोड़ रुपए से ज्यादा की संपत्ति कुर्क की जा चु

मेरठ जोन के कुख्यात अपराधी बदन सिंह बद्दो पर 2.5 लाख का इनाम घोषित है। पिछले 15 महीने से पुलिस को उसका कोई सुराग नहीं मिल पाया है। दरअसल 28 मार्च 2019 को पूर्वांचल की जेल से उसे गाजियाबाद कोर्ट में पेशी के लिए ले जाया जा रहा था। तब उसने भागने के लिए प्लान बनाया और कथित तौर पर पुलिसकर्मियों से साठ-गांठ की।

जब पुलिस रास्ते में मुकुट महल होटल में खाने के लिए रुकी तो बद्दो 6 पुलिसकर्मियों को शराब पिलाकर नशे में धुत कराने में कामयाब रहा। इसके बाद वहां से एक लग्जरी कार में भाग निकला, उसके गैंग ने पहले से इंतजाम कर रखा था। इस मामले में 6 पुलिसकर्मी सहित 18 लोग जेल जा चुके हैं।

बद्दो को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने लुक आउट नोटिस जारी किया था, लेकिन पुलिस के हाथ वह नहीं लगा। इसके बाद 28 मार्च 2020 को फिर से लुक आउट नोटिस की अवधि को आगे बढ़ाया गया। बद्दो पर करीब 40 मामले दर्ज हैं। इनमें फिरौती वसूलने से लेकर हत्या और हत्या की कोशिश, अवैध हथियार रखने और उनकी आपूर्ति करने, बैंक डकैती जैसे मामले शामिल हैं।

बद्दो के पिता 1970 में पंजाब से मेरठ आए थे और वहां ट्रांसपोर्ट का काम शुरू किया। बद्दो भी पिता के काम से जुड़ गया। सात भाइयों में सबसे छोटा बद्दो यही से अपराधियों के संपर्क में आया और उसने क्राइम की दुनिया में कदम रखा।

80 के दशक में वह मेरठ के मामूली बदमाशों के साथ मिलकर शराब की तस्करी किया करता था। इसके बाद वह पश्चिमी UP के कुख्यात गैंगस्टर रवींद्र भूरा की गैंग में शामिल हो गया।

बद्दो पर सबसे पहले 1988 में हत्या का मामला दर्ज किया गया। उसने व्यापार में मतभेद होने पर राजकुमार नामक एक व्यक्ति को दिन-दहाड़े गोली मार दी थी। हालांकि उसका क्राइम की दुनिया में नाम तब हुआ जब उसने 1996 में वकील रवींद्र सिंह की हत्या कर दी।

इसी केस में 31 अक्टूबर 2017 को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई, लेकिन वह महज 17 महीने बाद ही जेल से फरार हो गया और अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है।

वाराणसी के धौरहरा गांव के मूल निवासी बाहुबली बृजेश सिंह के खिलाफ वर्ष 1985 में हत्या का पहला मुकदमा दर्ज हुआ था। उस पर 30 से ज्यादा संगीन मामले दर्ज हैं। गैंगस्टर एक्ट के तहत हत्या, अपहरण, हत्या का प्रयास, हत्या की साजिश रचने से लेकर, दंगा-बवाल भड़काने, जमीन हड़पने जैसे मामले दर्ज हैं।

कई सालों तक फरार रहे बृजेश पर साल 2000 में उत्तर प्रदेश पुलिस ने 5 लाख रुपए का इनाम भी घोषित किया था।

बनारस के धरहरा गांव के रहने वाले बृजेश सिंह का नाम 1984 में पहली बार हत्या से जुड़ा। पिता की हत्या का बदला लेने के लिए उसने हथियार उठाया और अपने पिता के कथित हत्यारे को मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद वह फरार हो गया और उन लोगों की तलाश करने लगा जो उसकी पिता की हत्या में शामिल थे।1986 में बनारस के सिकरौरा गांव में उसने एक साथ पांच लोगों को गोलियों से भून डाला।

इसके बाद बृजेश को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में रहने के दौरान बृजेश की पहचान कई अपराधियों से हुई और क्राइम का उसका धंधा फलने- फूलने लगा। 1996 में बृजेश के निशाने पर मुख्तार अंसारी आ गया। दोनों में एक-दूसरे को दबाने की जंग छिड़ गई।

2003 में कोयला माफिया सूर्यदेव सिंह के बेटे राजीव रंजन सिंह के अपहरण और हत्याकांड में मास्टरमाइंड के तौर पर बृजेश का नाम आया।

बृजेश का नाम गैंगस्टर और डॉन के तौर पर तब स्थापित हुआ जब जेजे अस्पताल शूटआउट में उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया। हालांकि सबूतों के अभाव में वह बच निकला। साल 2008 में ओडिशा के भुवनेश्वर से बृजेश की गिरफ्तारी हुई।

22 वर्षों के उस गैप के दौरान बृजेश को किसी ने नहीं देखा। सिर्फ बृजेश के आपराधिक कारनामों की चर्चाएं ही सुनाई देती रहीं।

जेल में रहकर ही 2016 में बृजेश MLC बन गया। अब जबकि बृजेश जमानत पर जेल से बाहर है, तो उसकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह वाराणसी सीट से दूसरी बार MLC है। भतीजा सुशील सिंह चंदौली से चौथी बार विधायक चुना गया है। बृजेश सामान्य तरीके से लोगों के बीच आ-जा रहा है।

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