डेढ़ साल के बच्चे जैसा दिमाग..नहीं जानती अबॉर्शन का दर्द दीवार पर सिर पटकती, रोकने पर काटने दौड़ती; दुष्कर्म पीड़िता की मां ने बताई कहानी
यह पीड़ा भरी कहानी उस मां की है, जिसकी नाबालिग मूक-बधिर और मानसिक दिव्यांग बेटी को किसी दरिंदे ने जिंदगीभर का दर्द दे दिया। बेटी को अहसास ही नहीं है कि उसके साथ क्या हो चुका है? उसकी उम्र 17 साल है, लेकिन दिमाग डेढ़ साल के बच्चे सा। 4 साल से परिवार से दूर इंदौर के एक आश्रम रह रही थी। इसी दौरान किसी अज्ञात शख्स ने उसके साथ रेप किया। 5 महीने की गर्भवती होने पर इसका खुलासा हुआ। अब हाल ही में उसका अबॉर्शन कराया गया है।
‘मेरी बेटी के साथ यह दरिंदगी किसने की, आज तक पता नहीं चल सका है। पुलिस ने तो फोन भी उठाने बंद कर दिए हैं, लेकिन मैं यह बता दूं कि बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से भी आगे जाना पड़ा तो जाऊंगी। आखिरी सांस तक लड़ूंगी।
मुझसे बेटी की हालत देखी नहीं जाती। उसे बिल्कुल भी अहसास नहीं है कि उसके साथ क्या हुआ है। इस घटना ने उसकी दिनचर्या को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। वो पहले जैसी शांत बिल्कुल नहीं रही।
बहुत ज्यादा चिड़चिड़ी हो गई है। कभी खुद का सिर ही दीवार पर ठोंकने लग जाती है तो कभी इधर-उधर हाथ-पैर पटकने लगती है। यदि कभी गलती से डांट दो तो हमें ही काटने दौड़ने लगती है। उसकी उम्र तो 17 साल हो गई है, लेकिन दिमाग बिल्कुल बच्चे जैसा है। हमारी पीड़ा यह भी है कि वो मानसिक रूप से दिव्यांग होने के साथ बोल, समझ भी नहीं सकती।
तमाम कोशिशें करके देख लीं, लेकिन वह कुछ बता, समझा ही नहीं पा रही है कि उसके साथ यह दरिंदगी किसने की थी। पुलिसवालों ने अब फोन उठाना बंद कर दिया है, वो भी कुछ पता नहीं कर पाई है।
मेरा पक्का यकीन है कि इंदौर के हॉस्टल में जहां वो चार साल तक रही, वहीं उसके साथ दुष्कर्म हुआ है। क्योंकि पीरियड्स नहीं आने और पेट बड़ा दिखने पर हॉस्टल संचालिका ने हमें डेढ़ महीने पहले यह सूचना दी थी। जांच में रेप और गर्भवती होने का पता चला। हॉस्टल में जेंट्स भी काम करते हैं इसलिए पूरा शक जा रहा है।
अबॉर्शन के बाद एक-दो बार उसे बुखार भी आया था, लेकिन दवाएं देने पर ठीक हो गई। उसके फिट के झटके भी आते हैं। दिन-भर ध्यान रखता पड़ता है। रात में झटके आने पर उसका भाई और पापा के साथ मिलकर काबू करना पड़ता है। देर तक नॉर्मल नहीं हो पाती है।’
पूरे वक्त घर का गेट लगाकर रखना पड़ रहा है…
‘जब बेटी को भूख लगती है तो खुद ही हाथ में थाली उठाकर घूमने लगती है। बच्ची घर से बाहर नहीं निकल जाए इसलिए पूरे वक्त गेट बंद रखना पड़ रहा है। उसे बाहर नहीं ले जा सकते। घर में इधर से उधर घूमती रहती है।
दिन में न के बराबर ही सोती है। सुबह 6-7 बजे उठने के बाद रात को ही 9-10 बजे सोती है। मोबाइल में भगवान के भजन और आरती ध्यान से सुनती रहती है। उसके लिए घर के छोटे मोबाइल (की-पेड) में भजन और आरती डाउनलोड करा दी है। उसे ही कान में लगाकर सुनती रहती है। थोड़ी देर ही सही, लेकिन उसका मन लगा रहता है, तब तक वो शांत रहती है।
बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए अपनी जान लगा दूंगी। किसी से मदद नहीं भी मिली तो मकान बेचकर बेटी का केस लडूंगी। बस उसको न्याय मिले और दोषी को सजा मिले, यही चाहती हूं।’
घर में चटनी-रोटी खा लूंगी, पर अब बेटी को दूर नहीं होने दूंगी
‘परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। बचपन से लेकर अभी तक उसके इलाज पर काफी पैसा परिवार खर्च कर चुका है। पिता की बायपास सर्जरी हुई है, वे घर पर ही रहते हैं।
बेटी जब आश्रम में रहती थी। मां सब्जी का ठेला लगाकर आजीविका चला रही थी, लेकिन बच्ची के घर आने के बाद पूरा समय उसकी देखरेख में ही गुजर रहा है। इसलिए सब्जी का ठेला लगाना बंद कर दिया है। अब घर का पूरा खर्च छोटा बेटा मजदूरी करके चला रहा है।
अब मैं अपनी बेटी को एक पल के लिए भी अपनी आंखों से दूर करने को तैयार नहीं हूं। भले ही चटनी-रोटी खा लूंगी, लेकिन बेटी साथ ही रहेगी। घटना को लेकर मोहल्ले वालों में भी आक्रोश है, वो यहां तक कहते हैं कि जो भी दोषी होगा उसे मौत की सजा होना चाहिए।’
हार गए एक्सपर्ट्स, अब DNA रिपोर्ट ही आखिरी रास्ता
लड़की न बोल सकती है, न कुछ समझती है। यही वजह है कि कई बार काउंसिलिंग के बावजूद मूक-बधिर से जुड़े मामलों के साइन लैंग्वेज एक्सपर्ट भी हार गए हैं। वे यह नहीं पता कर पाए कि घटना कहां हुई है और किसने की। न हुलिया पता कर पाए, न ही इशारों से किसी पर शक का खुलासा हो सका।
यह है पुलिस जांच का स्टेटस, जांच के लिए 3 महीने का समय मांगा
इस लड़की के साथ हुई ज्यादती के मामले में पुलिस के हाथ खाली हैं। ये अभी भी पहेली ही बना हुआ है कि आरोपी कौन है, केस दर्ज होने के डेढ़ महीने बाद भी कुछ पता नहीं चल पाया है। मामले में पीड़िता के परिवार ने मजिस्ट्रियल जांच की मांग हाईकोर्ट में की थी, लेकिन पुलिस अधिकारी इससे मना कर रहे हैं।
पुलिस ने कहा है कि पीड़िता विक्षिप्त बालिका है। जांच की जा रही है। मूक बधिर भी है इसलिए उसके बयान नहीं लिए जा सके हैं। मनोवैज्ञानिक की मदद से भी पीड़िता के बयान लेने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस कारण से पीड़िता की मां, भाई, मौसी और संस्थान (आश्रम) में कार्यरत कर्मचारियों के बयान लिए गए हैं। संस्थान (आश्रम) में कार्यरत पुरुष कर्मचारियों और प्रशिक्षण वाले छात्रों के ब्लड सैंपल भी लिए गए हैं। सभी के ब्लड सैंपल डीएनए जांच के लिए भेजे गए हैं।
पुलिस ने कहा कि जो कर्मचारी और छात्र रह गए थे उनके ब्लड सैंपल भी डीएनए जांच के लिए 15 मार्च 2023 को जमा करा दिए हैं। मामले में जांच चल रही है और दोषी तक पहुंचने की कोशिश की जा रही है। जांच पूरी करने के लिए कम से कम 3 महीने का समय लगने की संभावना है। वर्तमान परिस्थितियों में न्यायिक जांच की आवश्यकता नहीं है। मामले में संपूर्ण जांच के लिए पूरा अवसर दिया जाना न्यायहित में है। तीन महीने का अतिरिक्त समय जांच के लिए दिया जाए।
10 सैंपल जांच के लिए भेजे
फिलहाल मामले में विजय नगर थाने के अधिकारी भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। वे भी डीएनए रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं। पुलिस अधिकारियों की माने तो 10 सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं। परिवार वाले भी डीएनए रिपोर्ट के इंतजार में है, क्योंकि उसके बाद ही केस की तस्वीर साफ हो पाएगी।
संभावना जताई जा रही है कि इसी सप्ताह डीएनए जांच रिपोर्ट आ जाएगी। अधिवक्ता अभिजीत पाण्डे ने बताया कि हाई कोर्ट में न्यायिक जांच को लेकर शासन की तरफ से जवाब प्रस्तुत कर दिया गया है। जिसमें उन्होंने कहा है कि केस में न्यायिक जांच की आवश्यकता नहीं है। अगली तारीख पर कोर्ट में इस पर सुनवाई होगी।
आरोप निराधार घटना आश्रम से बाहर हुई
दूसरी तरफ आश्रम अनुभूति विजन सेवा संस्थान की संचालिका चंचल सलारिया पहले ही आरोपों को निराधार बता चुकी हैं। घटना को लेकर अपना पक्ष रखते हुए वो कह चुकी है कि पीड़िता को झटके आते हैं। किशोरी की तबीयत खराब होने के संबंध में परिजन को समय-समय पर सूचना दी गई।
हॉस्टल में करीब 23 लोगों का स्टाफ है, जिसमें 21 महिलाएं हैं। यहां 60 लड़कें, लड़कियां रहते हैं। लड़कियों के रहने की अलग व्यवस्था है। 6 से 14 साल के लड़कों को ही रखा जाता है। घटना संस्थान से बाहर ही हुई है। बच्ची की मां के आरोप निराधार हैं।
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घटनाक्रम सामने आने के बाद कई पेचीदगी खड़ी हो गई है। दरअसल, गर्भ 22 से 23 सप्ताह का था। अगस्त आखिरी तक लड़की आश्रम में ही थी। इसी बीच उसकी तबीयत बिगड़ गई, उसके बाद उसे घर ले जाया गया था। मां का दावा है कि लड़की के साथ आश्रम में ही गलत हुआ, जिसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ गई, लेकिन हमसे यह बात छिपाई जा रही है। मंदबुद्धि के साथ बोल-समझ नहीं पाने के अलावा बच्ची का दिमाग भी उसकी हालत बयां करने में सक्षम नहीं है।
इसके चलते पुलिस ने मूक बधिर एक्सपर्ट मोनिका राजपूत को बुलवाया। उन्होंने बच्ची से कई तरह से सवाल किए और जवाब जानने की कोशिश की, लेकिन स्पष्ट रूप से वे भी घटना से जुड़े फैक्ट्स सामने नहीं ला पाई। उसे संस्थान के लोगों सहित रिश्तेदारों के भी फोटो दिखाए गए, लेकिन पीड़िता ने रिएक्ट नहीं किया।