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लिविंग विद टाइगर्स योजना को अपनाएगा सीटीआर

रामनगर (नैनीताल)। टिहरी, पिथौरागढ़ में सफल लिविंग विद लैपर्ड की तर्ज पर कॉर्बेट लिविंग विद टाइगर्स कार्यक्रम को अपना रहा है। मानव वन्यजीव संघर्ष रोकने के लिए शुरू की जा रही योजना में ईडीसी गांवाें के 38 युवाओं को बाघ या वन मित्र बनाया है। इसे लेकर बुधवार को कॉर्बेट कार्यालय में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक धीरज पांडे ने बताया कि मानव वन्यजीव संघर्ष को रोकना बड़ी चुनौती है। हमें जंगल के आसपास बसे ग्रामीणों के साथ आपसी समन्वय कर मानव वन्यजीव संघर्ष के मामलों में कमी लानी होगी। टिहरी और पिथौरागढ़ में लिविंग विद लेपर्ड कार्यक्रम को महाराष्ट्र की तर्ज पर लागू किया गया था। इसके सार्थक परिणाम सामने आए हैं। इसी थीम पर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में भी बाघ मित्र की सोच को लेकर ग्रामीणों के साथ समन्वय बैठाकर वन्यजीवों के हमलों की घटनाओं को रोकने के प्रयास किए जाएंगे। तितली ट्रस्ट के संजय सोंधी ने अनुभव साझा करते हुए बताया कि किस तरह से बाघों के और मनुष्य के बीच होने वाले संघर्षों को रोका जा सकता है। एक फिल्म के माध्यम से बताया कि किस तरह ग्रामीण इलाकों में तेंदुए की आवाजाही होने पर इकट्ठे होकर जाने, रात को अनावश्यक घूमने, अकेले शौच जाने आदि चीजों पर स्वयं रोक लगाने से तेंदुए के हमले को कम किया जा सकता है।

जन जागरूकता अभियान चलाना जरूरी
मुंबई से ऑनलाइन जुड़े विराट सिंह ने बताया कि महाराष्ट्र में वन विभाग ने सह अस्तित्व मॉडल का उपयोग कर मनुष्य और तेंदुए के संघर्ष को रोकने में काफी सफलता हासिल की। इसलिए अब कॉर्बेट लैंडस्केप में भी लिविंग विद टाइगर का अभियान शुरू किया जाएगा। इसमें स्थानीय मीडिया, स्थानीय समुदाय, पर्यटक, होटल, वाहन सेवादाताओं आदि की मदद से जन जागरूकता अभियान चलाकर बाघ मित्र के रूप में कार्य करेंगे। बाघ का व्यवहार नहीं बदल सकते हैं तो क्यों न हम खुद को सुरक्षित रखने के लिए अपने व्यवहार को बदलने की कोशिश करें। इस दौरान पार्क वार्डन अमित ग्वासीकोटी, राजेश भट्ट, रेंजर ललित कुमार आर्य आदि भी मौजूद थे।

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