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कस्तूरी बढ़ाने के लिए नए मृग विहार की जरूरत

रानीखेत (अल्मोड़ा)। क्षेत्रीय आयुर्वेदीय अनुसंधान संस्थान थापला में रविवार को आयुर्वेदिक औषधि विज्ञान में कस्तूरी का महत्व एवं चुनौतियां विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया। इसमें वक्ताओं ने कहा कि प्राचीन काल से आयुर्वेद में कस्तूरी का प्रयोग किया जाता रहा है। कस्तूरी से जीवनरक्षक दवा बनती है। ऐसे में कस्तूरी मृग की आबादी बढ़ाने के लिए नए मृग विहार की स्थापना बेहद जरूरी है।

केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीसीआरएएस) के महानिदेशक प्रो. वैद्य रवि नारायण आचार्य ने सेमिनार का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि संस्थान की स्थापना के 50 वर्ष पूरा होने पर यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। बताया कि कस्तूरी मृग की आबादी बढ़ाना बेहद जरूरी है। संस्थान के प्रभारी डॉ. अचिंत्य मिश्रा ने कस्तूरी का महत्व बताया। कहा कि नर मृग में मिलने वाली कस्तूरी फली से कई जीवनरक्षक दवा बनाई जाती है। यह कामोत्तेजक गुणों से भरपूर होता है।

बताया कि महरूड़ी बागेश्वर स्थित कस्तूरी मृग विहार में कस्तूरी मृगों की संख्या निरंतर बढ़ रही है जो सुखद है। उत्तराखंड में कस्तूरी मृगों की आबादी को और अधिक बढ़ाने के लिए नए मृग विहार स्थापित करने की योजना है। अनुसंधान अधिकारी डॉ. तरुण कुमार ने संचालन किया। इस दौरान संयुक्त मजिस्ट्रेट जयकिशन, जीबी पंत विश्वविद्यालय के निदेशक प्रो. सुनील नौटियाल, सेना अस्पताल के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल एसके सिंह, कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के निदेशक डॉ. ललित मोहन तिवारी, डॉ. गजेंद्र राव, डॉ. दीपशिखा आर्य, डॉ. ऐश्वर्या सहित दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान के चिकित्सक और शोधार्थी मौजूद रहे।

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