यह देश संविधान से चलेगा या सनातन धर्म से
अंतरिक्ष विज्ञान के सहारे हम चांद और सूरज में पहुंच रहे हैं। लेकिन हमारे प्रधानमंत्री सामाजिक व्यवस्था को सनातन धर्म के सहारे रसातल में ले जा रहे हैं। सनातन धर्म इतना श्रेष्ठ होता तो भारत के संविधान की रचना नहीं करनी पड़ती। सनातन धर्म है क्या? अर्थात कभी न बदलने वाला, अपरिवर्तनीय। लेकिन देश, समाज तो रोज बदलता है। जो पांच हजार साल पहले था वह आज नहीं। लगता है भारतीय जनता पार्टी की सरकार देश को पांच हजार साल पीछे ले जाना चाहती है। सनातन धर्म का उल्लेख वैदिक काल से ही भारतीय उपमहाद्वीप में मिलता है। मान्यता है कि भारत के प्रथम राजा मनु थे। मनु का जन्म ब्रह्मा से हुआ था और वह अर्धनारीश्वर थे। उनके शरीर से दो पुत्रों और तीन पुत्रियों का जन्म हुआ। जिनसे मनु वंश परंपरा चली। उनमें से ही एक का नाम पृथु था। जिनका पृथ्वी के प्रथम नरेश के रूप में अभिषेक हुआ। उन्ही के नाम पर भूमि का नाम पृथ्वी पड़ा। दसवें मनु के शासनकाल में महाप्रलय हुई। मनु को छोड़ प्रलय में सब डूब गया और इन्हीं से मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई।
कहा जाता है कि वहीं से मनु स्मृति अर्थात मनु संहिता का प्रादुर्भाव हुआ। सत्ता और समाज का संचालन इसी मनु संहिता से होता था। वैदिक सनातनी इसे वर्णश्रम धर्म भी कहते हैं। वर्णाश्रम धर्म के अनुसार ही सामाजिक संगठन चलता था। समाज को वर्ण और जातियों में बांट दिया गया था। ब्रह्मा के मुख से जो पैदा हुए ब्राह्मण, बाजुओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य और पैरों से जो पैदा हुए वह शूद्र कहलाए। शूद्रों का जीवन सबसे कठिन था। मृत्यु के बाद भी पाप के लिए दंड और पुण्य के लिए पुरस्कार की कल्पना कर दी गई और कहा गया पापी नरक में जाते हैं जब कि पुण्य करने वालों को स्वर्ग मिलता है। प्रमुखत: शूद्र ही अछूत और पापी थे। भिन्न जातियों के साथ विवाह और अंतर्जातीय भोजन वर्जित था। ब्राह्मण उच्च वर्गों का ही दिया हुआ भोजन खा सकते थे। विवाह के लिए जाति नहीं कुल का महत्व था। किसी भी शूद्र कन्या से ब्राह्मण चौथी पत्नी के रूप में विवाह कर सकता था लेकिन उससे उत्पन्न संतान को द्विज का पद नहीं दिया जाता था।
अपराध और दंड भी विभेदकारी था। यदि कोई ब्राह्मण हत्या और व्यभिचार का अपराध करे तो उसे अंधा कर दिया जाता था। किंतु वही अपराध कोई शूद्र करे तो उसकी संपत्ति जप्त करके उसका वध का दिया जाता था। यदि किसी ब्राह्मण को क्षत्रिय गाली दे तो 100 रूपए,वैश्य गाली दे तो 150 रुपए, यदि ब्राह्मण किसी क्षत्रीय को गाली दे तो 50 और वैश्य को दे तो 25 रूपए का अर्थ दंड निर्धारित था। परंतु यदि ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों किसी शूद्र को गाली दें तो कोई अर्थ दंड नहीं था। सूदखोरी में ब्याज दरें भी वर्ण और जाति के हिसाब से कम ज्यादा निर्धारित की गई थी। शूद्रों की तरह स्त्रियों को भी दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता था। स्त्री सिर्फ भोग्या थी। उसे पुरुषों की भांति अधिकार नहीं था। विधवा होने के बाद सती होना पड़ता था। शूद्रों को ही दास बनाया जाता था।
यह भी कहा गया है कि आत्मा अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार सुख या दुख की अधिकारी होती है। कर्म का यही सिद्धांत आज भी हिंदू विचारधारा पर हावी है। कर्म के सिद्धांत ने भी वर्ण व्यवस्था के लिए एक दार्शनिक औचित्य प्रस्तुत किया और कहा गया ऊंची या नींची जाति में जन्म भी पूर्व जन्मों के कर्मों पर आधारित है। इन मान्यताओं के बहाने सामाजिक व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था की रक्षा करना था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इसी मनु संहिता को मानता है। और सनातन धर्म के बहाने भारतीय जनता पार्टी की सरकार उसी मनु संहिता के एजेंडे पर काम कर रही है। यही वजह है कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के मंत्री पुत्र उदय निधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया, और कोरोना जैसी बीमारियों से करते हुए कहा था इसे खत्म कर देना चाहिए।
स्टालिन नें बाद में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए यह भी कहा की सनातन धर्म एक ऐसा सिद्धांत है जो जाति और धर्म के नाम पर लोगों को बांटता है, सनातन धर्म को जड़ से उखाड़ना, मानवता और समानता को कायम रखना है। यह बखेड़ा ऐसे नाजुक वक्त पर हो रहा था जब दिल्ली में जी 20 सम्मेलन में शामिल होने के लिए कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष आए हुए थे। इससे बौखलाए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रियों को निर्देश दिया कि उदयनिधि के बयान का सही ढंग से जवाब दिया जाए। इसके पालन में सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने सनातन धर्म के विरोधियों को कुष्ठ तथा एड्स रोग होने का शाप दे डाला। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत नें धमकी दी कि जो सनातन धर्म की तरफ आंख उठा कर देखेगा उसकी आंख निकाल लेंगे। सांसद और भाजपा नेता सुशील मोदी ने स्टालिन के गिरफ्तारी की मांग करते हुए कहा यह देशद्रोह का मामला है। ऐसी ही बेबुनियाद और बकवास भरी बातों से मनु संहिता भरी पड़ी है।
इसी तरह की तथाकथित सनातनी वर्ण, जाति, धर्म आधारित सामाजिक व्यवस्था, उसकी कुरीतियों, रूढ़ियों तथा अंधविश्वासों, असमानता, असहिष्णुता, अमानवीयता से निजात दिलाने के लिए भारत के संविधान की रचना की गई थी। जिसके अनुच्छेद 25 में धर्म के स्वतंत्रता की व्यवस्था है। अनुच्छेद 51 (क) में मौलिक कर्तव्य बताए गए हैं। जिसके आठवें क्रम में वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करने पर बल दिया गया है। भारत के संविधान का यही वैज्ञानिक दृष्टिकोण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा भारतीय जनता पार्टी के मनु संहिता एजेंडे में सबसे बड़ा बाधक है। इसी वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा उनकी नीतियों, सिद्धांतों के पक्षधर राहुल गांधी को निशाना बनाकर घृणा अभियान चलाया जा रहा है। यह देश संविधान से चलेगा कि सनातन धर्म से, यह जनता को तय करना होगा।