इन दिनों पहाड़ी क्षेत्रों में खेत सरसों (तोरिया) की फसल से लहलहा रहे हैं। यह क्षेत्र के प्रमुख तिलहन फसलों में से एक है। यह फसल चक्र को बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाती है। तिलहन की आवश्यकता को भी स्थानीय स्तर पर पूरा करती है। जिसे देखते हुए वैज्ञानिकों ने अच्छे उत्पादन के लिए किसानों को छिड़काव की सलाह दी है।
कृषि विज्ञान केंद्र ढकरानी के वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार राठी ने बताया कि मक्का के बाद सरसों की फसल की बुआई की जाती है। पहाड़ी क्षेत्र में सितंबर के प्रथम सप्ताह और मैदानी क्षेत्रों में कुछ देरी से इसकी बुआई की जाती है। 35-40 दिन में फूल आने लगते हैं। प्रति हेक्टेयर 200 लीटर पानी में 4 किग्रा यूरिया और 500 ग्राम सल्फर का घोल बनाकर छिड़काव करने से फलियां अच्छी तैयार होती हैं।
उन्होंने बताया कि बीज में तेल की मात्रा बढ़ती है। पौधे की ग्रोथ अच्छी होती है। इसके लिए गंधक जरूरी होता है। छिड़काव इसकी पूर्ति करता है। उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार होता है। उन्होंने बताया कि देहरादून जिले में करीब 600-800 हेक्टेयर में सरसों की खेती होती है। कम अवधि वाली सरसों फसल चक्र को भी पूरा करती है।
सरसों की फसल लेने के बाद किसान पछेती गेंहू की फसल की बुआई नवंबर माह में शुरू कर देते हैं। ऐसा करने से फसल चक्र भी पूरा हो जाता है, जो जमीन की उर्वरा शक्ति को भी बनाए रखता है।