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जब कपिल की पारी की तरह मैक्सवेल के साथी भी अपनी जगहों से नहीं हिले, जोश हेजलवुड ने किया खुलासा

कपिल देव की 175 रन की पारी के दौरान 1983 के विश्वकप में टनब्रिज वेल्स (इंग्लैंड) की वह सुबह काफी ठंडी थी। 40 साल बाद ग्लेन मैक्सवेल की 201 की रन की पारी के दौरान मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम की शाम गर्म थी, लेकिन दोनों जगहों पर एक तरह का उतार-चढ़ाव था। कपिल ने 17 पर पांच विकेट गिरने के बाद उस महान पारी को खेला था और यहां मैक्सवेल ने 91 रन पर सात विकेट गिरने के बाद वनडे इतिहास की सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक को खेल डाला। मैक्सवेल के साथी और बल्लेबाजी का इंतजार कर रहे तेज गेंदबाज जोश हेजलवुड की मानें तो उनकी पारी के दौरान एडम जम्पा को छोड़ जो जहां था वह वहीं बैठा रहा। सभी के मन में यही था कि अगर अपनी जगहों से हिले तो कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए।

25 जून, 1983 को टीम मैनेजर पीआर मान सिंह ने भी अंधविश्वास के तहत के श्रीकांत को अपनी कुर्सी से नहीं उठने दिया था, क्यों कि उस दौरान कपिल पीटर रासन और केविन करन की धुनाई लगा रहे थे। इसके बाद टीम का कोई भी सदस्य अपनी कुर्सियों से नहीं हिला। ठीक यही कहानी मैक्सवेल की पारी के दौरान भी दोहराई गई। ऑस्ट्रेलियाई खिलाडिय़ों ने तभी कुर्सी छोड़ी जब मैक्सवेल ने मुजीब उर रहमान की गेंद पर छक्का लगाकर ऑस्ट्रेलिया को जिता दिया।
हेजलवुड बताते हैं कि वह जॉर्ज बैली के साथ बैठे हुए थे और जांपा इधर-उधर से टहल रहे थे। वह काफी नर्वस थे, क्योंकि अगला बल्लेबाजी का नंबर उन्हीं का था। बाद में डे्रसिंग रूम में पूरी टीम अपनी सीटों से नहीं हिली। हेजलवुड ने कहा कि यह वनडे और विश्वकप की सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक है। मैक्सवेल ने कप्तान पैट कमिंस के साथ आठवें विकेट केलिए अटूट 202 रन की साझेदारी कर ऑस्ट्रेलिया को अफगानिस्तान के खिलाफ 3.1 ओवर शेष रहते तीन विकेट से अविश्वसनीय जीत दिलाई थी। मैक्सवेल ने 128 गेंद में 21 चौकों और 10 छक्कों की मदद से नाबाद 201 रन की पारी खेली।

हेजलवुड ने कहा कि वह तो अपनी बल्लेबाजी के बारे में सोच भी नहीं रहे थे। वह तो सिर्फ इस पारी का आनंद उठा रहे थे। उन्होंने कहा कि यह नंबर एक पारी है। हालांकि मैक्सवेल ने कुछ दिन पहले ही 40 गेंद में विश्वकप का सबसे तेज शतक लगाया है, लेकिन इस पारी का कोई मुकाबला नहीं है। मैं खुश हूं कि वह हमारी टीम में हैं। वह सूर्यकुमार यादव की तरह 360 डिग्री और जोस बटलर की तरह कहीं भी गेंद को हिट कर रहे थे।

कमिंस के अनुसार जब वह बल्लेबाजी के लिए आए और स्कोर 7 विकेट पर 91 रन था। उस दौरान उनके दिमाग में यही बात थी कि किसी तरह 200 तक पहुंचा जाए जिससे सेमीफाइनल में बने रहने के लिए नेटरन रेट अच्छा रह सके। यहां तक जब मैक्सवेल ने 76 गेंद में अपना शतक पूरा किया तब भी उनके दिमाग में कभी जीत की बात नहीं आई, लेकिन मैक्सवेल के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। जब 40 गेंद पर 40 रन का लक्ष्य रह गया तब उन्होंने जीत की उम्मीद लगाई। उस दौरान उन्होंने सोचा अगर यहां से मैक्सवेल चले भी जाते हैं तो बाकी के बल्लेबाज रन बना सकते हैं। कमिंस बताते हैं कि वह तो पूरी पारी के दौरान सिर्फ अपना विकेट बचाने के लिए खेल रहे थे।

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