मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद मतगणना को लेकर तैयारियां पूरी हो गई हैं। एक तरफ भाजपा जहां प्लानिंग में जुटी हुई है, वहीं कांग्रेस भी अपने उम्मीदवारों और एजेंट्स को ट्रेनिंग दे रही है। इस बीच दोनों ही दलों के प्रमुख नेता बहुमत के साथ सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। भाजपा अपने प्लान बी के तहत ऐसे बागी और निर्दलीय प्रत्याशियों से संपर्क करने लगी है, जिनके जीतने की संभावना बन सकती है।
भाजपा में टिकट न मिलने पर कई नेता बगावत कर निर्दलीय या दूसरी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर मैदान में उतरे थे। भाजपा के अलावा कांग्रेस के कई बागी उम्मीदवार मजबूती के साथ चुनावी रण में उतरे थे। इनमें से ज्यादातर का कहना है कि जीतने की स्थिति में वह अपनी पार्टी के ही साथ बने रहेंगे।
इन बागियों पर सभी की नजरें
भिंड से बसपा विधायक संजीव सिंह ने टिकट मिलने के आश्वासन पर ही भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। लेकिन जब उन्हें टिकट नहीं मिला, तो फिर से बसपा के उम्मीदवार बन गए। सतना सीट से भाजपा नेता रत्नाकर चतुर्वेदी शिवा बसपा के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं। इससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
टीकमगढ़ से भाजपा के पूर्व विधायक केके श्रीवास्तव निर्दलीय मैदान में उतर गए। मुरैना में भाजपा नेता और सेवानिवृत्त आईपीएस रुस्तम सिंह के बेटे बेटे राकेश भी बसपा से मैदान में थे। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्व. नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह टिकट नहीं मिलने के कारण बुरहानपुर सीट से पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरे थे। उनका कहना है कि मैं भाजपा का था और आगे भी भाजपा का ही रहूंगा।
सीधी सीट से टिकट कटने के कारण निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे भाजपा के वरिष्ठ विधायक केदार शुक्ला की भी यही राय है। वह कहते हैं कि मेरा झुकाव भाजपा की तरफ ही रहेगा। मेरे पास अन्य दलों से भी चुनाव लड़ने का विकल्प था। लेकिन मैंने तात्कालिक नाराजगी और कार्यकर्ताओं की मांग पर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरना ही पसंद किया। शुक्ला के कारण इस सीट पर मामला त्रिकोणीय हो गया है।
इधर, मालवा अंचल की धार विधानसभा सीट पर भी ऐसी स्थिति बन रही है। यहां भाजपा के बागी राजीव यादव के कारण मुकाबला रोचक हो गया है। यादव का दावा है कि मैं तो जीतने के लिए ही चुनाव लड़ा था। मैं भाजपा का था और भाजपा का ही रहूंगा।